श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “सीमा पर हैं खड़े बाँकुरे… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 26 – सजल – सीमा पर हैं खड़े बाँकुरे… ☆
समांत- आया
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 30
श्रीनगर के लाल चौक पर,
आज तिरंगा मुस्कराया।
आजादी पश्चात् है देखो,
बड़ी शान से लहराया।।
जान हथेली रख कितनों ने,
फहराने की कोशिश की,
कालनेमि के षड़यंत्रों ने ,
हर पथ रोड़ा अटकाया।
घाटी में आतंकी छाए
जिसे स्वर्ग सब कहते हैं,
खून खराबा दहशतगर्दी,
कर वर्षों से उलझाया।
साँप पले थे आस्तीनों में
हाथों में पत्थर रखते थे,
अपने फौजी घायल करते
भारत का दिल दुखलाया।
दुश्मन के हाथों बिक जाते,
कुछ दो कौड़ी नेता गण,
जब चाहे वे चरण चाटते,
नहीं देश को है भाया।
मुँह काला हो गया सभी का
सपने चकनाचूर हुए,
भारत की शक्ति के आगे,
अरि की अकड़ को झुठलाया।
तीन सौ सत्तर हटा देश से,
एक राष्ट्र स्वीकार हुआ,
समाधान हो गया देश का,
भारत ने है नाम कमाया।
हर विकास की गंगा को,
लेकर भागीरथ आए हैं।
होगा नव निर्माण देश में,
स्वर्ग-गगन है हर्षाया।
काश्मीर मस्तक भारत का,
आँच कभी ना आएगी।
सीमा पर हैं खड़े बाँकुरे,
दुश्मन भी अब घबराया।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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