श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – “गंदगी”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 159 ☆
☆ लघुकथा- गंदगी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
” गंदगी तेरे घर के सामने हैं इसलिए तू उठाएगी।”
” नहीं! मैं क्यों उठाऊं? आज घर के सामने की सड़क पर झाड़ू लगाने का नंबर तेरा है, इसलिए तू उठाएगी।”
” मैं क्यों उठाऊं! झाड़ू लगाने का नंबर मेरा है। गंदगी उठाने का नहीं। वह तेरे घर के नजदीक है इसलिए तू उठाएगी।”
अभी दोनों आपस में तू तू – मैं मैं करके लड़ रही थी। तभी एक लड़के ने नजदीक आकर कहा,” मम्मी! वह देखो दाल-बाटी बनाने के लिए उपले बेचने वाला लड़का गंदगी लेकर जा रहा है। क्या उसी गंदगी से दाल-बाटी बनती है?”
यह सुनते ही दोनों की निगाहें साफ सड़क से होते हुए गंदगी ले जा रहे लड़के की ओर चली गई। मगर, सवाल करने वाले लड़के को कोई जवाब नहीं मिला।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
28-11-2021
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