श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – रिश्ते।)

☆ लघुकथा # 36 – रिश्ता श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

“दीदी तुम हर साल की तरह फिर सुबह से आ गई।”

अनु ने मुस्कुराते हुए कहा-” हां क्या करती तू ही तो मेरा एक भाई है चल जल्दी से तैयार होकर आ राखी बांधना है?”

अरुण ने कहा दीदी -“हां दीदी बस अभी थोड़ी देर में मैं आया।”

“तब तक मैं तेरे लिए चाय बना देती हूं दोनों चाय नाश्ता करेंगे।“

“अरुण बच्चे और नीता दिखाई नहीं दे रहे?”

“दीदी वह लोग कमरे में सो रहे हैं…”

कहते-कहते अरुण रुक गया।

“दीदी मुझे राखी बांधो वाह दीदी साबूदाने की खिचड़ी तुम बनाकर मेरे लिए लाई हो और हलवा इसका कोई जवाब नहीं।“

“बच्चों को मैं उठा दूँ क्या? शायद उठ गए होंगे।”

“रहने दो दीदी सब अपने मन के हो गए हैं। अब मैं तुमसे क्या कहूं चलो हम लोग मम्मी पापा के फ्लैट में चलते हैं और वहीं सुखद पुराने दिन को जीते हैं…।“

तभी नीता उठकर आती है और कहती है- “तुम भाई बहन का गिला शिकवा शुरू हो गया…कितनी बार मना किया कि मेरे फ्लैट में आकर हल्ला मत किया करो लेकिन आप सुनते ही नहीं हो?“

“नीता भाई बहन का प्यार तुम नहीं समझोगी। बहू यह रिश्ता ही अनोखा है।“

“तुम कितना भी अपमान करो पर मैं आऊंगी” अनु ने कहा और वह रोती हुई अपनी मां के पास चली गई…।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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