श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता अशोक विजयादशमी…”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # २३५ ☆

☆ # “अशोक विजयादशमी…” # ☆

कलिंग युद्ध में

लाखों लोगों की जान गई

कितने घायल, कितने आहत हुए

रणभूमि में

क्षत-विक्षत थी लाशें कई

खून की नदियां बहने लगी

घायल रणभूमि पीड़ा से

आर्तनाद करने लगी

चारों तरफ वीभत्स

नजारा था

नरसंहार का इशारा था

रक्तपात ही रक्तपात था

हर दृश्य कर रहा आघात था

दिशाएं कर रही थी विलाप

कण कण बन गया था अभिशाप

 

और अशोक –

अशोक ने पहले भी

 कई युद्ध लड़े थे

साम्राज्य बढ़ाकर

इतिहास गढ़ें थे

वह क्रूर राजा कहलाता था

उसे किसी पर

रहम नहीं आता था

 

लेकिन आज-

वह रणभूमि में खड़ा था

पूरा रण लाशों से भरा पड़ा था

यह देख वह द्रवित हो गया

अंतर मन से

विचलित हो गया

ऐसी विजय का

क्या अर्थ है ?

यह तो विनाश है

अनर्थ है

 

उसने घुटने टेके

तलवार रखी भूमि पर

चिंता की लकीरें

उभर आई

उसकी पेशानी पर

उसका फौलादी हृदय

व्यथा से चूर हुआ

उसके अश्रु बह निकले

विजय का घमंड

चकनाचूर हुआ

 

वह चिंतित, व्यथित

आगे चल पड़ा

शाक्य मुनि के  चरणों में

गिर पड़ा

उसने हिंसा छोड़

धम्म की दीक्षा ली

अहिंसा, दया,करुणा,प्रेम की

प्रतिज्ञा ली

पाटलिपुत्र में

10 दिन बाद

समारोह हुआ

महल सजा

धम्म का

दूर-दूर तक डंका बजा

 

अशोक विजयादशमी

धम्म पर चलने का

संदेश है

युद्ध छोड़

दया, करुणा, प्रेम,अहिंसा

अपनाने का

उपदेश है/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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