श्री एस के कपूर “श्री हंस”
☆ “श्री हंस” साहित्य # १७९ ☆
☆ ।। मुक्तक ।। रिश्तों की किताब, जरा खोल कर भी पढ़ते रहा करिये ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆
=1=
रिश्तों की किताब खोल कर हमेशा देखा करो।
बस मीठे बोल बोल कर भी जरा देखा करो।।
हर रिश्ता बहुत लाजवाब अपने में होता है।
प्रेम तराजू में भी जरा तोल कर देखा करो।।
=2=
रिश्तों का हिसाब प्रेम के पैमाने से होता है।
दिल से दिल तक एहसास पहुंचाने से होता है।।
रिश्ता बदलता तुरंत दिल को होता है महसूस।
रिश्तों काअर्थअपने गिरते को उठाने से होता है।।
=3=
आप बांसुरी या बांस का तीर बन सकते हैं।
रिश्तों की मिठास या बेवजह तकरीर बन सकते हैं।।
आपके अपने हाथ है रिश्तों को सहेज कर रखना।
आप चाहें खुद अपने हाथों की लकीर बन सकते हैं।।
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© एस के कपूर “श्री हंस”
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