डॉ सत्येंद्र सिंह

(वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सत्येंद्र सिंह जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। मध्य रेलवे के राजभाषा विभाग में 40 वर्ष राजभाषा हिंदी के शिक्षण, अनुवाद व भारत सरकार की राजभाषा नीति का कार्यान्वयन करते हुए झांसी, जबलपुर, मुंबई, कोल्हापुर सोलापुर घूमते हुए पुणे में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी के पद से 2009 में सेवानिवृत्त। 10 विभागीय पत्रिकाओं का संपादन, एक साझा कहानी संग्रह, दो साझा लघुकथा संग्रह तथा 3 कविता संग्रह प्रकाशित, आकाशवाणी झांसी, जबलपुर, छतरपुर, सांगली व पुणे महाराष्ट्र से रचनाओं का प्रसारण। जबलपुर में वे प्रोफेसर ज्ञानरंजन के साथ प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे और झाँसी में जनवादी लेखक संघ से जुड़े रहे। पुणे में भी कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। वे मानवता के प्रति समर्पित चिंतक व लेखक हैं। अप प्रत्येक बुधवार उनके साहित्य को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख  – “चौथी सीट“।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ ☆ सत्येंद्र साहित्य # ३८ ☆

✍ कविता – दुनिया… ☆ डॉ सत्येंद्र सिंह ☆

कहो कौन सी दुनिया की

बात करूं?

 

आज दीवाली है

खुशियों का त्यौहार है,

सब ओर छाई

प्रकाश की बहार है।

 

कहते हैं लोग

रावण का वध कर,

राम चौदह वर्ष बाद

सीता को मुक्त करा

अयोध्या आए लौटकर।

इसी खुशी में

दीवाली मनाई जाती है,

हर घर गली नगर

दीपावली

सजाई जाती है।

 

रावण

एक अत्याचारी था

व्यभिचारी था।

ऋषि मुनियों

आदिवासियों का

अपराधी था।

 

आदिवासी

उस समय भी

आदिवासी थे

और आज भी

आदिवासी हैं-

आधुनिक प्रगति से परे

शिक्षा सभ्यता से परे

झान विज्ञान चिकित्सा

से भी परे

शहरों के नजदीक बसे

पर शहरों से परे।

नर नारी के

स्वास्थ्य समस्या

से भी परे।

 

कहो तो

कौन सी दुनिया की

बात करूं-

टीवी पर हँसती,

महंगाई को रोती

चेहरे पर हँसी पोत

अंतस कुहाँसी जिंदगी।

बाजारी रौनक की

दुकानदार की बेबसी की

या खरीददार की

बेकसी की।

बंदिश पटाखों की,

मां बाप की अंतर चीख

बच्चों की बेखबर

किलकारी की ।

 

कहो

कौन सी दुनिया

की बात करूँ।

© डॉ सत्येंद्र सिंह

सम्पर्क : सप्तगिरी सोसायटी, जांभुलवाडी रोड, आंबेगांव खुर्द, पुणे 411046

मोबाइल : 99229 93647

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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डॉ. विपिन पवार

समसामयिक शानदार कविता

Latika

सच्चाई से जुड़ी अभिव्यक्ति!👌