श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ।।34।।

 

भजन यजन औ” नमन कर मन में मुझको देख

मुझे पायेगा भक्त हो मत्परायण सविवेक।।34।।

 

भावार्थ :  मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा।।34।।

 

Fix thy mind on Me; be devoted to Me; sacrifice unto Me; bow down to Me; having thus united thy whole self with Me, taking Me as the Supreme Goal, thou shalt verily come unto Me.।।34।।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे राजविद्याराजगुह्ययोगो नाम नवमोऽध्यायः ॥9॥

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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