श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।

सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ।।4।।

 

अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।

भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ।।5।।

 

बुद्धि ज्ञान शम दम क्षमा सत्य मोह व्यामोह

सुख दुख भावाभाव भय अभय काम ओै” क्रोध।।4।।

 

तुष्टि तपस्या दान यश अयश अहिंसा साम्य

होते मन में भाव ये मुझसे काम्य अकाम।।5।।

 

भावार्थ :  निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुझसे ही होते हैं।।4-5।।

 

Intellect, wisdom, non-delusion, forgiveness, truth, self-restraint, calmness, happiness, pain, birth or existence, death or non-existence, fear and also fearlessness.।।4।।

 

Non-injury, equanimity,  contentment,  austerity,  fame,  beneficence,  ill-fame-(these) different kinds of qualities of beings arise from Me alone.।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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