सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के कलाकार  : केदार शर्मा पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 11 ☆ 

☆ केदार शर्मा ☆

 

केदार शर्मा उर्फ़ केदार नाथ शर्मा (12 अप्रैल 1910 – 29 अप्रैल 1999), एक भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक और हिंदी फिल्मों के गीतकार थे। उन्हें नील कमल (1947), बावरे नैन (1950) और जोगन (1950) जैसी फिल्मों के निर्देशक के रूप में बड़ी सफलता मिली, उन्हें अक्सर बॉलीवुड के महान कलाकारों गीता बाली, मधुबाला, राज कपूर, माला सिन्हा, भारत भूषण और तनुजा के अभिनय करियर की शुरुआत के लिए याद किया जाता है।

केदार शर्मा का जन्म नारोवाल पंजाब में हुआ था।  दो भाइयों, रघुनाथ और विश्वनाथ की अल्पायु मृत्यु और उनकी बहन तारो का कम उम्र में तपेदिक से निधन हो गया, एक छोटी बहन गुरू एक छोटे भाई हिम्मत राय शर्मा बचे, जो बाद में सफल उर्दू कवि के रूप में स्थापित हुए। केदार ने अमृतसर के बैज नाथ हाई स्कूल में पढ़ाई की जहाँ वे दर्शन, कविता, पेंटिंग और फोटोग्राफी में रुचि लेने लगे। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिनेमा में अपना करियर बनाने के लिए घर से भाग कर मुंबई पहुँचे  लेकिन रोजगार हासिल करने में असफल रहे तो अमृतसर लौट आए और हिंदू सभा कॉलेज में पढ़ाई हेतु प्रवेश लिया, जहाँ उन्होंने एक कॉलेज ड्रामेटिक सोसाइटी की स्थापना की।

एक स्थानीय सुधारवादी आंदोलन के प्रमुख ने केदार के नाटकों में से एक में हिस्सा लिया और शराब की बुराइयों को दर्शाती एक मूक फिल्म का निर्माण करने के लिए उसे काम मिला। इस परियोजना से अर्जित धन का उपयोग करते हुए, उन्होंने खालसा कॉलेज, अमृतसर में एक स्थानीय थिएटर समूह में शामिल होने से पहले अंग्रेजी में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1932 में उनकी शादी हुई तब उन्होंने कमाई के बारे में गम्भीरता से सोचना शुरू किया। फिल्म निर्देशक देवकी बोस की शुरुआती बोलती फिल्म पूरन भगत (1933) को देखकर वह न्यू थियेटर्स स्टूडियो में भाग्य आज़माने की उम्मीद में कलकत्ता के लिए रवाना हुए। कई महीनों की बेरोजगारी के बाद वह न्यू थियेटर्स के एक तत्कालीन अभिनेता, पृथ्वीराज कपूर (जहाँ वह पहली बार, पृथ्वीराज के आठ वर्षीय बेटे, राज कपूर से मिले) से मिलने में कामयाब रहे। पृथ्वीराज कपूर ने केदार को अपने पड़ोसी, तत्कालीन कुंदन लाल सहगल से मिलवाया, जिन्होंने एक परिचित के माध्यम से केदार को देवकी बोस से मिलने की व्यवस्था कर दी। देबकी बोस ने केदार को फिल्म सीता (1934) के लिए मूवी स्टिल्स फोटोग्राफर के काम पर रखा था, लेकिन बैकग्राउंड स्क्रीन पेंटर और फिल्म इंकलाब (1935) के लिए पोस्टर चित्रकार के रूप में केदार को फिल्म के निर्माण में काम मिला।  उन्होंने छप्पन (1935) और पुजारिन (1936) जैसी फिल्मों पर न्यू थियेटर्स के साथ काम करना जारी रखा, और  1936 में देवदास में उनके दोस्त कुंदन लाल सहगल द्वारा अभिनीत संवाद और गीत लिखने के लिए कहा गया तो एक बड़ा ब्रेक मिला। देवदास न केवल एक हिट थी, बल्कि “बलम आयी बसो मोरे मन में” और “सुख के अब दिन बीतत नाही” जैसे गाने देश भर में लोकप्रिय हो गए। केदार ने बाद में कहा, “बिमल रॉय और मुझे, देवदास में हमारा पहला बड़ा ब्रेक मिला था,  उन्हें कैमरामैन के रूप में और मुझे लेखक के रूप में।”

केदार को 1940 में जीत, औलाद और दिल ही तो है के लिए अपनी पटकथा लिखने का मौका दिया गया, कुछ सफलता मिली। इसके बाद उन्हें चित्रलेखा (1941) का निर्देशन करने के लिए कहा गया, जो एक हिट फिल्म बन गई और केदार एक निर्देशक के रूप स्थापित हो गए। उन्होंने अपनी पहली फिल्म नील कमल में राज कपूर और मधुबाला को लेकर अपनी फिल्मों का निर्माण शुरू किया। उन्होंने गीता बाली को अपनी पहली फिल्म, सोहाग रात (1948) में कास्ट किया और बाद में उन्हें राजकपूर के साथ फिल्म बावरे नैन (1950) के लिए टीम में शामिल किया। उसी वर्ष उन्होंने नर्गिस और दिलीप कुमार अभिनीत जोगन का निर्देशन किया। 1950 के दशक के उत्तरार्ध में जवाहरलाल नेहरू ने शर्मा के गीतों को सुना था, उन्हें बुलाया और उन्हें चिल्ड्रन्स फिल्म सोसाइटी का प्रमुख निदेशक बनने के लिए कहा। केदार शर्मा ने बाल फिल्म सोसाइटी के लिए कई फिल्मों पर काम किया, जिसमें फिल्म जलदीप भी शामिल है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त हुई।  उन्होंने 1958 में शॉ ब्रदर्स स्टूडियो के लिए सिंगापुर में एक वर्ष फिल्मों का निर्देशन किया।

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

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