श्री सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  महान फ़िल्मकार : महबूब ख़ान पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 18 ☆ 

☆ महान फ़िल्मकार : महबूब ख़ान – 3 ☆

महबूब प्रोडक्शंस की स्थापना के बाद उन्होंने कई चर्चित फिल्में बनाईं। इनमें अनमोल घड़ी, अनोखी अदा, अंदाज, आन, अमर, मदर इंडिया, सन ऑफ इंडिया आदि शामिल हैं। अनमोल घड़ी में एक साथ सुरेंद्र, नूरजहाँ, सुरैया जैसे कलाकार थे वहीं अंदाज जमाने से आगे की फिल्म थी। प्रेम त्रिकोण पर आधारित यह फिल्म स्त्री-पुरुष के संबंधों को लेकर सवाल खड़ा करती है। ‘आन’ उनकी पहली रंगीन फिल्म थी, जबकि ‘अमर’ में नायक की भूमिका एंटी हीरो की थी। महबूब ने फ़िल्मी दुनिया को उन्हें पहले मौक़े देकर कई शानदार कलाकार दिए। सुरेंद्र, दिलीप कुमार, राज कपूर, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त, राज कुमार, नरगिस, निमि और नादिरा चालीस सालों तक रजत पट पर चमकने वाले किरदार रहे।

महबूब ख़ान की दो शादियाँ हुईं थीं। पहली बीबी फ़ातिमा से आयुब इक़बाल और शौक़त दो लड़के थे। उन्होंने पहली बीबी से अलग होने के बाद दूसरी शादी 1942 में प्रसिद्ध फ़िल्मी कलाकार सरदार अख़्तर से की थी। सरदार अख़्तर उनकी फ़िल्म “औरत” की हीरोईन थीं जिसे उन्होंने बाद में मदर इंडिया के रूप में बनाया था।

महबूब की सर्वाधिक चर्चित फिल्म ‘मदर इंडिया’ तो कई मामलों मे विलक्षण थी। मदर इंडिया’ जैसी कालजयी फिल्म के निर्माता महबूब खान हिन्दी फिल्मों के आरंभिक दौर के उन चुनिंदा फिल्मकारों में से एक थे, जिनकी नजर हमेशा अपने समय से आगे रही और उन्होंने मनोरंजन से कोई समझौता किए बिना सामाजिक सरोकारों को इस सशक्त ढंग से पेश किया कि उनकी कई फिल्में आज भी प्रासंगिक लगती हैं।

अब तक 3 भारतीय फिल्मों ने Best Foreign Language Film (बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्म) की कैटेगरी में ऑस्कर नामांकन हासिल किया है। उसमें से एक है मदर इंडिया। विदेशी भाषा में बनी श्रेष्ठ फिल्म श्रेणी में भारत की ओर से ‘मदर इंडिया’ भेजी गई थी। फिल्म के तकनीकी पक्ष और निर्देशक द्वारा बनाई भावना की लहर से चयनकर्ता प्रभावित थे परंतु उन्हें यह बात खटक रही थी कि पति के पलायन के बाद महाजन द्वारा दिया गया शादी का प्रस्ताव वह क्यों अस्वीकार करती है जबकि सूदखोर महाजन उसके बच्चों का भी उत्तरदायित्व उठाना चाहता है।

दरअसल, चयनकर्ता को यह किसी ने नहीं स्पष्ट किया कि भारतीय नारी अपने सिंदूर के प्रति कितनी अधिक समर्पित होती है। फिल्म भारत के सदियों पुराने आदर्श के प्रति समर्पित थी। ऑस्कर जीतने के लिए फिल्म की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करने के लिए वहां एक प्रचार विभाग नियुक्त किया जाना चाहिए था।

फिल्म के अंतिम दृश्य में एक मां अपने सबसे अधिक प्रिय पुत्र को गोली मार देती है क्योंकि वह सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ अपहरण कर रहा था। बताया जाता है कि ‘मदर इंडिया’ नरगिस द्वारा सुझाया गया नाम था।

बता दें कि मदर इंडिया तीसरे पोल के बाद महज एक वोट से ऑस्कर अवॉर्ड जीतने से चूक गई थी। उस साल बेस्ट फॉरेन फिल्म का अवॉर्ड इटालियन प्रोड्यूसर डीनो डे लॉरेन्टिस की फिल्म ‘नाइट्स ऑफ केबिरिया’ को मिला था। इसके बाद जो फिल्म ऑस्कर्स में फाइनल पांच में पहुंच पाई थी उनमें 1988 में आई मीरा नायर की फिल्म सलाम बॉम्बे और आमिर खान की 2001 में आई फिल्म लगान थी।

‘सन ऑफ इंडिया’ उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई। इसके बाद वे अगली फिल्म की तैयारी कर रहे थे कि मात्र 57 साल की उम्र में 28 मई 1964 को उनका निधन हो गया।

भारत सरकार ने 2007 में उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया था। उनकी मदर इण्डिया को अकडेमी अवार्ड के लिए नामित किया गया था। 1958 में ही मदर इण्डिया को बेस्ट फ़िल्म और बेस्ट निर्देशन का सम्मान मिला था। वे दूसरे अंतर्राष्ट्रीयफ़िल्म फ़ेस्टिवल 1961 के ज्यूरी मेम्बर रहे थे।

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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