श्री सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  महान फ़िल्मकार : के.आसिफ़ पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 19 ☆ 

☆ महान फ़िल्मकार : के.आसिफ़ 1 3 ☆

के.आसिफ़ अर्थात आसिफ़ करीम भारतीय फ़िल्म उद्योग के नामचीन निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक थे, जिन्होंने सर्वकालिक महान फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म बनाकर दुनिया के महान फ़िल्मकारों में स्थान पक्का कर लिया था। के.आसिफ़ का जन्म ब्रिटिश इंडिया के ज़िला इटावा में 14 जून 1922 को हुआ था, उनके पिता का नाम फ़ज़ल करीम था

वे महज आठवीं जमात तक पढ़े थे। पैदाइश से जवानी तक का वक्त गरीबी में गुजारा था। फिर उन्होंने भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी, भव्य और सफल फिल्म का निर्माण किया। यह इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि उन्हें सिर्फ इतना पता था कि उनकी फिल्म के लिए क्या अच्छा और महत्वपूर्ण है।

हमेशा चुटकी से सिगरेट या सिगार की राख झाड़ने वाले करीमउद्दीन आसिफ़, अभिनेता नज़ीर के भतीजे थे। शुरू में नज़ीर ने उन्हें फ़िल्मों से जोड़ने की कोशिश की लेकिन आसिफ़ का वहाँ दिल न लगा। नज़ीर ने उनके लिए दर्ज़ी की एक दुकान खुलवा दी। थोड़े दिनों में ही वो दुकान बंद करवानी पड़ी, क्योंकि ये देखा गया कि आसिफ़ का अधिकतर समय पड़ोस के एक दर्ज़ी की लड़की से रोमांस करने में बीत रहा था। नज़ीर ने तब उन्हें ज़बरदस्ती ठेल कर फ़िल्म निर्माण की तरफ़ दोबारा भेजा। बॉलीवुड के सफल फिल्म निर्माता और निर्देशकों की श्रेणी में टॉप पर रहने वाले के. आसिफ को लोग पागल फिल्म डायरेक्टर भी कहते थे।

उनकी पहली फ़िल्म फूल थी।  यह 1945 की चौथी सबसे अधिक कमाई करने वाली भारतीय फिल्म थी। इस फिल्म का निर्देशन के आसिफ ने किया था। पटकथा कमाल अमरोही ने लिखी थी। पृथ्वीराज कपूर, वीणा कुमारी, याकूब, सुरैया, दुर्गा खोटे और सितारा देवी ने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं थीं।

1951 में उन्होंने हलचल फ़िल्म बनाई। एसके ओझा द्वारा निर्देशित है। मोहम्मद शफी, सज्जाद हुसैन संगीत निर्देशक थे और साथ फ़िल्म के गीत खुमार बाराबंकवी ने लिखे थे। फिल्म में दिलीप कुमार, नरगिस, याकूब, जीवन और बलराज साहनी ने काम किया था।

के.आसिफ़ ज़िल्ले इलाही जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के निज़ाम से अभिभूत थे और हों भी क्यों न, क्योंकि अकबर ने 13 साल की आयु से 49 सालों में हिन्दोस्तान को बिखरे रजवाड़ों से एक साम्राज्य में तब्दील किया था। अकबर ने राजपूत नीति से खड़ा किया अखिल भारतीय प्रशासनिक ढाँचा 1556 से 1726 याने 170 साल अगली तीन पीढ़ी तक क़ायम रहा। अकबर शासन के तात्कालिक नियमों पर अडिग रहकर उनका सख़्ती से पालन सुनिश्चित करता था। मुग़ले आज़म सलीम-अनारकली की नहीं अपितु बादशाह अकबर की फ़िल्म है।

के.आसिफ़ ने सैयद इम्तियाज़ अली ताज के उपन्यास “अनारकली” को आधार बनाकर फ़िल्म की पटकथा लिखवाई थी। अकबर के अबुल फ़ज़ल कृत ऐतिहासिक  दस्तावेज “आइने-अकबरी” में सलीम-अनारकली के प्रेम प्रसंग से सलीम के विद्रोह और अकबर-सलीम लड़ाई का कोई ज़िक्र नहीं है। लाहौर में अनारकली नाम की कनीज़ का हवाला ज़रूर मिलता है, जिसके नाम पर अभी भी अनारकली-गली लाहौर में मौजूद है। मुग़ले आज़म के पूर्व भी अनारकली नामक फ़िल्म बन चुकी थी, जिसमें प्रदीप कुमार और बीनारॉय ने काम किया था। के.आसिफ़ ने सलीम-अनारकली की भूमिका के लिए चंद्रमोहन-नरगिस को लेने की सोचा था लेकिन चंद्रमोहन की मृत्यु हो जाने से काम रुक गया।

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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