आत्मकथ्य: मृग तृष्णा  – श्री प्रह्लाद नारायण माथुर 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

आत्मकथ्य:  ‘मृग तृष्णा’ पुस्तक समाज के विभिन्न पहलुओं पर मार्मिक कविताओं का संकलन है| प्रत्येक कविता दिल को छू लेने वाली है| ‘आजाद हो गए मोती’ में कैसे संयुक्त परिवार का बिखराव हुआ और आज सब क्या महसूस करते हैं इसका बहुत भावुक वर्णन है| ‘रिश्तों की हवेली’ में पहले रिश्ते कितने संजीदा होते थे उसका भावुक वर्णन किया है| ‘मृग तृष्णा’ कविता में दर्शाया है की इंसान जीवन भर अपनी इच्छाओं के पीछे भागता रहता है,उसके पीछे बहुत कुछ खो देता है मगर फिर भी अंतिम क्षण तक वो अपनी इच्छाओं से पार नहीं पा सकता | अन्य कविताएं मसलन ‘रिश्तों में जमी बर्फ’, ‘शब्द की गाथा’, ‘याद’, ‘खुशियों का झरना’ एवं ‘कहो तो चले अब’ दिल को अंदर तक झझकोरने वाली है| सैनिकों के सम्मान में भी कुछ कविताएं है | ‘मंजर शहीद के घर का’ देश के सैनिकों एवं उनके परिवार पर बहुत भावुक, मार्मिक एवं दिल को छू लेने वाली कविता है| पुस्तक की सभी 50 कविताऐं सामाजिक,पारिवारिक एवं देश के सैनिकों पर मार्मिक, भावुक एवं आम आदमी की जिंदगी का प्रतिबिम्ब है | लेखक का परिचय लेखक की एक सामाजिक प्रेरणा की कविता पुस्तक ‘सफर रिश्तों का’ अमेज़न पर उपलब्ध है| रंगमंच प्रकाशन की साझा संकलन-I में कविताएं प्रकशित हो चुकी है| विंग वर्ड राष्ट्रीय स्तर की कविता प्रतियोगिता में सर्टिफिकेट ऑफ़ मेरिट का अवार्ड प्राप्त किया है| अनेक रचनाएं विभिन्न पत्रिकाओं में छप चुकी हैं| लेखक की कुछ और पुस्तकें शीघ्र प्रकाशित होने जा रही है| प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  *सफर रिश्तों का* तथा* मृग तृष्णा* कविता पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रही है।
श्री यतीन्द्र गोविल, गीतकार
आपके एक गीत “ए परिंदे आसमान में दूर कहाँ तुम जाते हो” को श्री यतीन्द्र गोविल जी (उदयपुर, राजस्थान) ने स्वर दिया है। श्री गोविल जी 81 वर्ष के हैं और आपके आकाशवाणी उदयपुर से 1984 से 2000 तक गीत प्रसारित होते रहे थे।  आपके यूट्यूब और फेसबुक पर अब तक 2670 गीत उपलब्ध हैं और निरंतर बढ़ाते ही जा रहे हैं । उम्र के इस पड़ाव पर श्री यतीन्द्र गोविल जी का जज्बा निश्चित ही हमें उत्साह प्रदान करता है।
ई- अभिव्यक्ति की ओर से श्री गोविल जो को हार्दिक शुभकामनाएं। 
आप श्री माथुर जी का उपरोक्त गीत निम्न लिंक पर सुन सकते हैं –

मृग तृष्णा से एक अत्यंत भावप्रवण  कविता >>>

☆ ढूंढ़ रहा हूँ रफूगर ☆

उधड़ गयी है जिंदगी चारों तरफ से,

पैबन्द जगह-जगह मैंने खुद लगाए,

अब हर तरफ पैबन्द लगी नजर आती है जिंदगी ||

 

ढूंढ़ रहा हूँ शायद कोई रफूगर मिल जाये,

जो जिंदगी को रफू कर दे,

जगह-जगह से उधड़ी हई नज़र आती है जिंदगी ||

 

जितना ज्यादा संभल कर कदम रखता हूँ,

उतनी ही ज्यादा उलझ कर,

और ज्यादा उधड़ी हई नज़र आती है जिंदगी ||

 

काश ! कोई जिंदगी का रफूगर मिल जाता,

जो एक-एक रिश्तों को मिला कर,

रफू कर देता तो पहले सी नज़र आ जाती जिंदगी ||

 

फूलों की बजाय मैं कांटों में उलझ गया,

काश कांटों की जगह,

फूलों से उलझ जाता तो फूलों सी महक जाती जिदगी ||

 

श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी की पुस्तक सफर रिश्तों का  निम्न लिंक्स पर उपलब्ध हैं :

Amazon India(paperback and Kindle): सफर रिश्तों का
AMAZON (INTERNATIONAL) : 1।  सफर रिश्तों का  2। सफर रिश्तों का 
AMAZON (KINDLE EDITION INTERNATIONAL) : सफर रिश्तों का
KOBO.COM : सफर रिश्तों का

 

© प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
image_print
1.5 2 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments