श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – अबूझ ?

अपनी ही तस्वीरों,

अपने ही प्रशंसागान से

दबे और भरे पड़े हैं

फेसबुक, ट्विटर,

वॉट्सएप, इन्स्टाग्राम

आदि, आदि…,

लेकिन-

इस भीड़ से परे

कोई छोटी कविता,

लघुकथा, टिप्पणी,

अथवा भावाभिव्यक्ति

भीतर तक उतर जाती है,

पत्थर पर रची तस्वीर-सी

मानस पर अंकित हो जाती है..,

पता नहीं,

ये दृष्टि विपन्नता है

या दृष्टि सम्पन्नता..!

©  संजय भारद्वाज

(बुधवार दि. 30 अगस्त 2017, अप. 12:56 बजे)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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Rita Singh

सम्पन्नता की दृष्टि यही तो है।

अलका अग्रवाल

ये दृष्टि की संपन्नता ही है।