श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – समकालीन प्रश्न 

असंख्य आदमियों की तरह

आज एक और

आदमी मर गया,

अपने पीछे वे ही

अमर प्रश्न छोड़ गया,

समकालीन प्रश्न-

अब यह आदमी नहीं रहा

ऐसे में हमारा क्या होगा?

सार्वकालिक प्रश्न-

जन्म से पहले

आदमी कहाँ था,

मृत्यु के बाद

आदमी कहाँ जाएगा?

लगता है जैसे

कई तरह के प्रयोगों का

रसायन भर है आदमी,

जीवन की थीसिस के लिए

शोध और अनुसंधान का

साधन भर है आदमी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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माया

अद्भुत निष्कर्ष – जीव का आवागमन बड़ा ही रहस्यमय होता है ,
शोध का विषय भर रह जाता है ।