श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है “कुमायूं -1 – नैनीताल ”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -1 – नैनीताल ☆

पहली मर्तबा, मैं कुमायूं अचानक ही, बिना किसी पूर्व योजना के चला गया था।हुआ यों कि  सितम्बर 2018 में चारधाम यात्रा  का विचार मन में उपजा और यात्रा की सारी तैयारियां हो गई थी, टिकिट खरीड लिए गए, क्लब महिन्द्रा-मसूरी में ठहरने हेतु आरक्षण करवा लिया गया था और यात्रा  की अन्य व्यवस्थाओं के लिए एजेंट से भी बातचीत पक्की हो गई थी कि अचानक उसने  फ़ोन पर बताया  कि चारधाम से चट्टाने खिसकने व भू स्खलन की खबरें आ रही है आप अपना टूर कैंसिल कर दें। लेकिन यात्रा का मन बन चुका था सो हम चल दिए। थोड़ा परिवर्तन हुआ और हमने अगले दस दिन तक मसूरी, करनताल, नौकुचियाताल, नैनीताल, कौसानी और हरिद्वार की यात्रा की।

नैनीताल की सुंदरता का केंद्र बिंदु यहॉ पर स्थित सुंदर नैनी झील है और झील के किनारे स्थित नैनादेवी का पौराणिक मंदिर। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती की बायीं आँख गिरी थी और  मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। कोरोना काल में मंदिर खाली था तो पंडितजी ने जजमान को सपरिवार देख, पूर्ण मनोयोग से पूजन अर्चन कराया। ऐसी ही पूजा हमने एक दिन पहले हिम सुता नंदा देवी, की अल्मोड़ा स्थित मंदिर में भी की और लगभग पन्द्रह मिनट तक पूजन और दर्शन का आनन्द लिया। कभी संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) की ग्रीष्म कालीन राजधानी रहा नैनीताल चारों ओर से सात पहाडियों से घिरा है और इस शहर के तीन हिस्से तालों के नाम पर हैं ऊपर की ओर मल्ली ताल, बीच में नैनीताल और आख़री छोर तल्ली ताल। अब मल्लीताल और तल्ली ताल, सपाट मैदान हैं और यहाँ बाज़ार सजता है और नैनीताल का स्वच्छ जल शहरवासियों की प्यास बुझाता है। शायद यही कारण है कि इसमें शहर का गंदा पानी नालों से बहकर नहीं आता। सुना था कि रात होते होते जब  पहाडों के ऊपर ढलानों पर जलते बल्बों तथा झील के किनारे लगे हुए अनेक बल्बों की रोशनी नैनीताल  के पानी पर पड़ती है तो माल रोड के किनारे घूमते हुए खरीददारी करने, चाट पकोड़ी खाने  और इस बड़ी झील को निहारने का मजा कुछ और ही होता  है। लेकिन हमें तो शाम ढले नौकुचियाताल, जहाँ हम ठहरे थे, वापस जाना था इसलिए हम इस आनंद को तब न ले सके और फिर जब नवम्बर 2020  के अखीर में हम पुन: कुमायूं की यात्रा पर गए तो इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक रात कडकडाती ठण्ड में नैनीताल में रुके और पहले मल्ली ताल का तिब्बती बाज़ार घूमा और फिर  देर शाम तक  माल रोड पर चहलकदमी करते हुए, खरीददारी और बीच बीच में  नैनी ताल की जगमगाहट से भरी सुन्दरता  को देखते रहे और फिर देर रात तक होटल से इस नयनाभिराम दृश्य को देखने का सुख रात्रिभोज के साथ लेते रहे।  हमने दोनों बार शाम ढले हल्की ठण्ड  के बीच चप्पू वाली नाव से नौकायान का मजा भी लिया, नौका चालक और घोड़े वाले मुसलमान हैं लेकिन बातें वे साफगोई से करते हैं और अपने ग्राहक का दिल जीतने का भरपूर प्रयास करते हैं।

नैनीताल की सबसे ऊँची और आकर्षक चोटी है नैना पीक। इसे चीना पीक भी कहते हैं और यहाँ से डोरथी सीट से शहर व हिमालय के दर्शन होते हैं, पहली बार जब हम वहाँ गए तो  धुंध व बादलों के कारण हमारे भाग्य में यह विहंगम दृश्य नहीं था। पर दूसरी बार हमें  अंग्रेज कर्नल की पत्नी  के नाम से प्रसिद्द डोरोथी सीट से आसपास की पहाड़िया और पूरे क्षेत्र का विहंगम दृश्य हमने देखा। देवदार और चीड के घने जंगल वाली  ऊँची चड़ाई का मजा हमने घुड़सवारी कर लिया। पहली बार भले हम हिमालय को न निहार सके हों पर जब दूसरी बार गए तो पहले हिमालय दर्शन व्यू प्वाइंट से और फिर डोरोथी सीट से नंदा देवी पर्वत माला के दृश्य को अपनी दोनों आँखों में समेटा। दूध जैसी बर्फ से ढका हिमालय मन को लुभा लेनेवाला दृश्य आँखों के सामने  आजीवन तैरता रहता रहेगा । समुद्र तल से 2270 मीटर ऊँचा यह बिंदु यात्रियों के बीच बेहद लोकप्रिय स्थान है। नैनीताल से मैंने 100 किलोमीटर दूर स्थित हिमालय पर्वत की नंदा देवी पर्वतमाला के दर्शन किए। त्रिशूल पर्वत से शुरू यह लंबी पर्वत श्रृंखला मनमोहक है और लगभग 300 किलोमीटर लम्बी है । त्रिशूल पर्वत के बायीं ओर गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदार नाथ आदि पवित्र तीर्थ स्थल हैं तो दाई ओर नंदा कोट- जिसे माँ पार्वती का तकिया भी कहा जाता है, नंदा देवी  तथा इसके बाद पंचचुली की खूबसूरत चोटियाँ है जो नेपाल की सीमा तक फ़ैली हुई हैं। नंदादेवी पर्वत शिखर की उंचाई 25689 फीट है और कंचनचंघा के बाद यह भारत की सबसे ऊँची चोटी है। मैंने कश्मीर की पहलगाम वादियों से लेकर हिमाचल, उत्तराखंड और कलिम्पोंग व दार्जलिंग से हिमालय को अनेक बार निहारा है। साल 2018 के सितंबर माह में तो मसूरी और फिर कौसानी से भी हिम दर्शन का अवसर मिला। भाग्यवश कौसानी से मैंने नंदा देवी हिम शिखर व कलिमपोंग से कंचनचंघा को सूर्योदय के समय रक्तिम सौंदर्य में नहाते हुए भी देखा है। पर दुधिया रंग के चांदी से चमकते  हिमशिखर के जो  दर्शन मैंने नवंबर 2020 की कड़कड़ाती ठंड नैनीताल से किए वैसे कहीं और से देखने न मिले। यह विहंगम दृश्य मन को लुभाने वाला था। मैं भावविभोर होकर देखता ही रह गया। और जब चोटियों के बारे में समझ में न आया तो मजबूरन टेलीस्कोप वाले का सहारा लिया तथा सारे शिखरों के बारे में पूंछा, बिना टेलीस्कोप की सेवाएं लिए वह कहां बताने वाला था। उसने भी अपनी रोजी-रोटी वसूली और हमने भी न केवल हिमदर्शन किए वरन उससे फोटो भी खिंचवाई। मैं इस घड़ी को सौभाग्य का क्षण इसलिए मानता हूं कि 23नवंबर से लगातार बिनसर, अल्मोड़ा में मैं हिमालय को निहार रहा था पर पर्वत राज तो 27नवंबर को ही दिखाई दिए, मेरे पुत्र को वधु मिलने की वर्षगांठ के ठीक एक दिन पहले। डोरथी सीट के अलावा धोडी निचाई पर एक और स्थल है जहाँ से खुर्पाताल और हरे भरे दीखते हैं इन  खेतों में उम्दा किस्म का आलू पैदा होता है।पहाड़ पर एक जीरो पॉइंट भी हैं जहाँ सर्दियों में बर्फ जम जाती है तब डेढ़ महीने तक नौजवान जोड़े इस स्थान तक आते हैं क्योंकि डोरथी सीट तक जाने का रास्ता बंद हो जाता है। नीचे जहा घोड़े खड़े होते हैं वहाँ सड़क के उस पार एक और मनमोहक स्थल है लवर्स प्वाइंट जहाँ से  नैनीताल शहर की सुन्दरता देखी जा सकती है। इन पहाड़ियों से नैनी झील के अद्भुत नज़ारे दीखते हैं।

नैनीताल की खोज की भी अद्भुत कहानी है। पहाड़ी वाशिंदे, नए अंग्रेज हुकुमरानों को, अपनी इस पवित्र झील, जिसे तीन पौराणिक ऋषियों, अत्रेय,पुलस्त्य व पुलह ने अपनी प्यास बुझाने के लिए जमीन में एक छेद कर निर्मित किया था, का पता बताने के इच्छुक नहीं थे। तब अंग्रेज अफसर ने, एक पहाड़ी के सर पर भारी पत्थर रखकर, उसे नैनादेवी के मंदिर तक ले जाने का दंड दिया। कई दिनों तक अंग्रेज अफसर व उसकी टीम के अन्य सदस्यों को वह व्यक्ति, सर पर भारी पत्थर का बोझ ढोते हुए इधर उधर भटकाता रहा। अंततः हारकर अंग्रेजों की टोली को नैनीझील की ओर ले गया और इस प्रकार नैनीताल का पता उन्हें चला। अंग्रेजों को यह स्थल इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया और उनके गवर्नर का निवास, आज भी उस वैभव की याद दिलाता है।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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