श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण, विचारणीय  एवं भावप्रवण  कविता “यह कैसा छल है”। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 19 ☆ 

☆ यह कैसा छल है ☆ 

यह कैसा छल है?

रिश्ते भी क्या कमाल है

सर्वत्र रिश्तों का मायाजाल है

कुछ लोग रिश्ते जोड़ते हैं

कुछ लोग रिश्ते तोड़ते हैं

निभाता है कोई कोई

आत्मा जिसकी नहीं है सोई

यहाँ टूटते रिश्ते हर पल है

यह कैसा छल है

जिसने अपने सीने से भींचा

जिसने अपने दूध से सींचा

जिसने सर पर छांव बनाई

जीवन की दौड़ सिखाई

जिन्होंने चुभने दिया ना कांटा

भूख, प्यास दोनों ने बांटा

अन्तिम प्रहर में

वो कितने निर्बल है

यह कैसा छल है

प्रेम तो है फूलों की गंध

प्रेम भरता है जीवन में सुगंध

प्रेम के लिए जीते हैं लोग

प्रेम के लिए मरते हैं लोग

प्रेम तों है नवजीवन की आशा

प्रेम पर पहरे, घोर निराशा

प्रेम पर प्रतिबंध,

नहीं! यह तो दंगल है

यह कैसा छल है

आज झूठ सर चढ़कर

बोल रहा है

अहंकार के नशें में

डोल रहा है

आंखें रहकर भी

हम सब अंधे है

गूंगे, बहरे डरपोक

बंदे हैं

कब हम इसका प्रतिकार करेंगे

सत्य का मिलकर जयकार करेंगे

सत्य एक दिन जीतेगा

चाहें झूठ कितना भी प्रबल है

यह कैसा छल है?

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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