सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “हक़ीक़त”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 73 ☆
हक़ीक़त हमें अक्सर पसंद नहीं आती
क्योंकि वो इतनी खूबसूरत नहीं होती
जितना दिल के कोनों ने सोचा था,
और शायद इसीलिए हम अक्सर
उसपर यकीन ही नहीं करते,
बस, क़ैद रखते हैं ख़ुद को
कुछ तिलस्मी दीवारों के भीतर
और खुश होते रहते हैं!
तिलस्म तो धोके के असास* पर बसा होता है,
और जब वो दीवारें टूटती हैं न,
दर्द से आदमी तिलमिला उठता है!
जितनी जल्द हो सके
मिला लो हकीकत से हाथ,
और फिर चलो ज़िंदगी के साथ
खुशदिल से!
*असास=foundation
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈