सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता “मीनारें । )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 89 ☆

☆ मीनारें ☆

जब अपने कमरे के अन्दर चुपचाप बैठी होती हूँ

अक्सर “धडाक” और “चटक” की आवाजें आती हैं;

और मैं बाहर दौड़ पड़ती हूँ देखने कि यह कैसी आवाजें हैं?

जानना चाहती हूँ कि कहाँ से निकलीं यह आवाजें?

 

ज़िंदगी यूँ तो बड़ी छोटी है,

पर आदमी अक्सर अपने अहम की मीनारें बना लेता है,

जो कि बहुत ही ऊंची होती हैं!

 

यह मीनारें धीरे-धीरे झुकने लगती हैं,

और आदमी को पता भी नहीं चलता!

ऐसा भी नहीं है कि इनका कोण

लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा कि तरह तय हो

और उतना ही रहे यह कोण-

झुकाव बढ़ता ही जाता है!

पता भी नहीं चलता

और यह मीनारें झुकते-झुकते गिर ही जाती हैं

“धडाक” और “चटक” की आवाज़ के साथ! 

 

सुनो,

इस अहम को छोटा ही रहने दो-

इसे मीनार की तरह न बनने दो-

फिर तो

न यह गिरेगा,

न तुम चोट से तिलमिलाओगे!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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