हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – यात्रा ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – यात्रा ? ?

झूठ की नींव पर, सच की

मीनार खड़ी नहीं होती,

छोटे मन से कोई यात्रा

कभी बड़ी नहीं होती।

?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

writersanjay@gmail.com

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ 6 नवम्बर से मार्गशीर्ष साधना आरम्भ होगी। इसका साधना मंत्र होगा – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🕉️ 

🕉️ इसके साथ ही हम श्रीमद्भगवद्गीता का पारायण करेंगे। इसमें 700 श्लोक हैं। औसत 24 श्लोक या उनके अर्थ का यदि दैनिक रूप से पाठ करेंगे 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ लेखनी सुमित्र की # २५७ – बुन्देली कविता – बूँदा भर बुंदेली… ७ ☆ स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र” ☆

स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – बूँदा भर बुंदेली…।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # २५७ – बुन्देली कविता – बूँदा भर बुंदेली… ७ ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से)

बरनन तुमरे रूप की, छैंयां सौ बढ़ जात ।

कहने खों अँखियन रहत, रहत हत बहुजात ||

 *

जोबन बढ़ बढ़ लेते है, मेंगाई से होड़ ।

जिनके छोटे हाँत हो, उनखे उठे मरोड़ ||

 *

मन परबत बुड़ी रहत, तुमरे प्रेम समुन्द ।

नेंनन में छाई रहे, सदा रूप की धुन्द ||

 *

मुख छब बरनत ना बनें, की से समता होय ।

बाँचों जाँचो चन्द्रमा, हॉतन रहल सँजोय ||

 *

जात हमाई पूँछ लो, पूँछो हमरो नाँव ।

जौरें हमरे आव तौ, हम पीपर की छाँव ||

 *

पेसी पे आये सबई, नाँव लेत दरबान ।

को जाने की खों मिले, कैंसो का फरमान ||

 *

पिंगल की कविताड़ अब, है दिल्ली की कील ।

कविता की दुरगत भयी, बन गय कुकवि वकील ||

 *

जन्ता खों राजा कहें, राजा भये मजूर ।

सेवक राजा हो गये, सब कुइ कहें हजूर ।।

 *

नीत राज से अलग भइ, छितर गये, मन-भेद ।

कट्टर पन ने कर दओ, धरम-नाव में छेद ॥

मन मोरो औगुन भरो, कैसे करौं पवित्र ।

सूझ गई तरकीब जा, राखो नाम सुमित्र ||

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # २५७ – “मुँह बाये खड़ी हुई है…” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी ☆

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा, पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित। 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है। आज प्रस्तुत है आपका एक अभिनव गीत मुँह बाये खड़ी हुई है...)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # २५७ ☆।। अभिनव गीत ।। ☆

☆ “मुँह बाये खड़ी हुई है...” ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी 

कितनी क्या मीठी हो,

 यह तुम्हारी, राय में ।

उतने चम्मच शक्कर

डालूँ मैं चाय में ॥

कितनी कडुआहटें

घुली हुईं जीवन में ।

उधड़ गये टाँके सब

बचे छेद सीवन में ।

 *

भोजन नहीं सम्भव

छोटी सी आय में ।

 *

किश्तों में पनपी है

इस घरको बीमारी ।

मुँह बाये खड़ी हुई

है सब की लाचारी ।

 *

कितना समय बाकी,

रहना सराय में ॥

 *

वक्त जुटा करने को

है अपनी ऐयारी ।

हंस कर रहा बेशक

उड़ने की तैयारी ।

 *

कुछ तो हो सम्भव इस –

आखिरी उपाय में ॥

©  श्री राघवेन्द्र तिवारी

07-11-2025

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – अगुआ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – अगुआ ? ?

आहत है अगुआ,

अभ्याहत है अगुआ,

वह जानता था,

सारी आशंकाएँ मार्ग की,

सो समूह की रक्षा के लिए,

समूह के आगे चलता रहा..,

डग भरने से आई चोटें,

घिसटने से लगी खरोंचें,

पीछे चलने वालों के घात,

साथ चलने वालों के आघात,

सुनिश्चित संकटों से दो-दो हाथ,

जयचंदों के अप्रत्याशित विश्वासघात..,

रास्ता दिखाने वालों के पास,

आहत होने के सिवा

कोई विकल्प भी तो नहीं होता ना!

..पर रुको और आगे सुनो!

अव्याहत है अगुआ..!

?

© संजय भारद्वाज  

सोमवार दि. 30 .05 .2016, संध्या  7:15  बजे

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ अबुध ज़िद पर अड़े हैं…! ☆ डॉ. रामेश्वरम तिवारी ☆

डॉ. रामेश्वरम तिवारी

संक्षिप्त परिचय

  • हिंदी-प्राध्यापक(सेवानिवृत्त) महारानी लक्ष्मीबाई शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भोपाल  (म.प्र).
  • नई दुनिया, दैनिक भास्कर, वीणा, हंस, धर्मयुग, कादम्बिनी आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविता और लघुकथाएँ प्रकाशित। पुस्तकः कविता के ज़रिए,  मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित।

आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता – अबुध ज़िद पर अड़े हैं…!

☆ ॥ कविता॥ – अबुध ज़िद पर अड़े हैं…! ☆ डॉ. रामेश्वरम तिवारी

तुम  भी ग़ज़ब करते हो यार,

खुद  पर करने चलो हो वार।

*

दुश्मन से जंग को निकले हो,

हाथ में लिए दुधारी तलवार।

*

घृणा के बीज बोए जा रहे हैं,

मात्र कहने को बचा है प्यार।

*

ज्यों-ज्यों हम सभ्य हो रहे हैं,

बढ़ता ही जा रहा है दुराचार।

*

अबुध अपनी ज़िद पर अड़े हैं,

बुध को सुनने को नहीं तैयार।

© डॉ. रामेश्वरम तिवारी

सम्पर्क – सागर रॉयल होम्स, होशंगाबाद रोड, भोपाल-462026

मोबाईल – 8085014478

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ याद… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण कविता याद।)

☆ कविता – याद☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

कभी तन्हा जो होता हूं,

तुम्हारी याद आती है,

यादों की,वो यादें भी,

हमें कितना सताती हैं,

 ये मन बेचैन रहता है,

नहीं अब चैन रहता है,

तुम्हारी प्यार की बाते,

रह रह याद आती हैं,

कभी सावन के झूलों में,

कभी बागों के फूलों में,

सूनी सूनी राहों में,

तुम्हारी याद आती है,

जब ये मन भटकता है,

वक्त नहीं जब कटता है,

आंखों से आंसू गिरते हैं,

तुम्हारी याद आती है,

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # २५५ – हिंदी आरती ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी  – हिंदी आरती)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # २५५ ☆

☆ हिंदी आरती ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

भारती भाषा प्यारी की।

आरती हिन्दी न्यारी की… 

लोककी भाषा है हिंदी,

तंत्रकी आशा है हिंदी।

करोड़ों जिव्हाओं-आसीन

न कोई सकता इसको छीन।

ब्रम्ह की, विष्णु-पुरारी की

आरती हिन्दी न्यारी की।।

वाक् हिंदी का ध्वनि आधार,

पाँच वर्गों बाँटे उच्चार।

बोलते जो वह लिखते आप-

वर्तनी स्वर-व्यंजन अनुसार।

नागरी लिपि सुविचारी की…  

० 

एकता पर हिंदी बलिहार

लिंग दो वचन क्रिया व्यापार।

संधियाँ काल शक्ति हैं तीन-

विशेषण हैं हिंदी में चार।

पाँच अव्यय व्यवहारी की

आरती हिंदी न्यारी की।।

वर्ण हिंदी के अति सोहें,

शब्द मानव मन को मोहें।

काव्य रचना सुडौल सुन्दर

वाक्य लेते सबका मन हर।

छंद-सुमनों की क्यारी की

आरती हिंदी न्यारी की।।

समेटे ज्ञान-नीति-विज्ञान,

सीख-पढ़-लिख हों हम विद्वान।

विषय जो कठिन जटिल नीरस-

बना देती हिंदी रसवान। 

विश्ववाणी गुणकारी की

आरती हिंदी न्यारी की।।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – महाभारत ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – महाभारत ? ?

अपने तब भी सामने खड़े थे,

अपने अब भी सामने खड़े हैं,

समय कितने फेरे लगा आया है,

एक बड़ा अंतर अवश्य आया है,

अस्त्र-शस्त्र का तब खुला प्रदर्शन था,

शस्त्र छिपाकर घात लगाना, अब चलन है,

समय के अंतराल के अपने आयाम हैं,

तब हो या अब, महाभारत अविराम है।

?

© संजय भारद्वाज  

12: 57 बजे, 06.11.2025

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ नेता चरित मानस # ९ – कविता – क्यों ?… ☆ प्रो. डॉ. राजेश ठाकुर ☆

डॉ.राजेश ठाकुर

( प्रो डॉ राजेश ठाकुर जी का  मंतव्य उनके ही शब्दों में –पाखण्ड, अंध विश्वास, कुरीति, विद्रूपता, विसंगति, विडंबना, अराजकता, भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जन-समुदाय को जागृत करना ही मेरी लेखनी का मूल प्रयोजन है…l” अब आप प्रत्येक शनिवार डॉ राजेश ठाकुर जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं. आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “क्यों ?“.)  

? साप्ताहिक स्तम्भ ☆ नेता चरित मानस # ९  ?

? कविता – क्यों ?… ☆ प्रो. डॉ. राजेश ठाकुर  ? ?

?

तुम जो इतने पास रहे हो,

मैं धड़कन तुम साँस रहे हो।

 *

जीवन यह अँधियारा मेरा,

क्यों आलोक तलाश रहे हो।

 *

तुम जीवन की पुष्प-वाटिका,

गेंदा और पलाश रहे हो।

 *

मैं तो इक उजड़ा गुलशन हूँ,

क्यों माली बन फाँस रहे हो।

 *

मैं तो पत्रहीन तरु जैसा,

पाल घरौंदा आस रहे हो।

 *

मेरे दुख, मेरी पीड़ा का,

क्यों करते परिहास रहे हो।

 *

मेरे दरम्याँ पतझड़ हरदम

तुम बहार मधुमास रहे हो

 *

मैं निराश हूँ, मैं उदास हूँ,

फिर भी मन में वास रहे हो।

 *

तुम हो आशावादी इतने,

तम में दीप्ति तलाश रहे हो।

 *

ली न कभी ख़बर, न पूछा

क्यों ‘राजेश’ उदास रहे हो ?

© प्रो. डॉ. राजेश ठाकुर

शासकीय कॉलेज़ केवलारी

संपर्क — ग्राम -धतूरा, पोस्ट – जामगाँव, तहसील -नैनपुर, जिला -मण्डला (म.प्र.) मोबा. 9424316071

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # १८२ ☆ गीत – ।। जान लो एक दिन विश्वनायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # १८२ ☆

☆ गीत ।। जान लो एक दिन विश्वनायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

जान लो एक दिन विश्व नायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।

विश्व शान्ति का एक परिचायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।।

**

भारत महान कहलाता संस्कार संस्कृति सहयोग कारण।

शांति से रहता भारत  कभी नहीं करता युद्ध अकारण।।

अपनी नीति कारण जन-जन नायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।

जानलो एकदिन विश्व नायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।।

**

चाल चरित्र और चेहरा भारत का विश्व अनुकरण करेगा।

भारत की पहल पर विश्व आतंकवाद निराकरण जनेगा।।

तीसरी बड़ीअर्थव्यवस्था सुखदायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।

जानलो एकदिन विश्व नायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।।

**

परमाणु ऊर्जा को विनाश नहीं बल्कि उत्पादन मेंआएगा।

यदि जरूरत नभजलथल में सौ ऑपरेशन सिंदूर लाएगा।।

संपूर्ण मानवता के लिए फलदायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।

जानलो एकदिन विश्व नायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।।

**

सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत विश्व में मिसाल बेमिसाल है।

वेद पुराण गीता रामायण की भी अनूठी संस्कारी ढाल है।।

सोने की चिड़िया सा नायक कमाल मेरा हिंदुस्तान बनेगा।

जान लो एक दिन विश्व नायक मेरा हिंदुस्तान बनेगा।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेली ईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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