प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की एक भावप्रवण कविता शारदी चाँदनी । हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 13 ☆
☆ शारदी चाँदनी ☆
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारे
सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे
नैन मन की मिली योजना से, चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे
बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से
वीणा से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारे
है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना
दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे
सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे
मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से
मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारे
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈