श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  श्री आर डी आनंद जी  के  काव्य  संग्रह  “ मेरे हमराह” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )

पुस्तक चर्चा के सम्बन्ध में श्री विवेक रंजन जी की विशेष टिपण्णी :- 
पठनीयता के अभाव के इस समय मे किताबें बहुत कम संख्या में छप रही हैं, जो छपती भी हैं वो महज विज़िटिंग कार्ड सी बंटती हैं ।  गम्भीर चर्चा नही होती है  । मैं पिछले 2 बरसो से हर हफ्ते अपनी पढ़ी किताब का कंटेंट, परिचय  लिखता हूं, उद्देश यही की किताब की जानकारी अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचे जिससे जिस पाठक को रुचि हो उसकी पूरी पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता जगे। यह चर्चा मेकलदूत अखबार, ई अभिव्यक्ति व अन्य जगह छपती भी है ।
जिन लेखकों को रुचि हो वे अपनी किताब मुझे भेज सकते हैं।

         – विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 30 ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा –काव्य   संग्रह   – मेरे हमराह 

पुस्तक –  ( काव्य – संग्रह )  मेरे हमराह

लेखक – श्री आर डी आनंद

प्रकाशक –रवीना प्रकाशन, दिल्ली

 मूल्य –२५० रु प्रथम संस्करण २०१९

आई एस बी एन ९७८८१९४३०३९८५

 

 ☆ काव्य   संग्रह   – मेरे हमराह – श्री  आर डी आनंद –  चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव

स्त्री और पुरुष को एक दूसरे का विलोम बताया जाता है, यह सर्वथा गलत है प्रकृति के अनुसार स्त्री व पुरुष परस्पर अनुपूरक हैं. वर्तमान समय में स्त्री विमर्श साहित्य जगत का विचारोत्तेजक हिस्सा है.  बाजारवाद ने स्त्री देह को प्रदर्शन की वस्तु बना दिया है. स्वयं में निहित कोमलता की उपेक्षा कर स्त्री पुरुष से प्रतिस्पर्धा पर उतारू दिख रही है. ऐसे समय पर श्री आर डी आनंद ने नई कविता को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर मेरे हमराह शीर्षक से ४७ कविताओ का पहला संग्रह प्रस्तुत कर इस विमर्श में मुकम्मल दस्तक दी है. उनका दूसरा संग्रह भी इसी तरह की कविताओ के साथ तैयार है, और जल्दी ही पाठको तक पहुंचेगा.

पुस्तक से दो एक कविताओ के अंश प्रस्तुत हैं…

मैं पुरुष हूं / तुम स्त्री हो / तुम पुरुषों के मध्य घिरी रहती हो  /तुम मुझे बत्तमीज कह सकती हो /  मुझे शरीफ कहने का कोई आधार भी नही है तुम्हारे पास / अपनी तीखी नजरों को तुम्हारे जिस्म के आर पार कर देता हूं मैं

या एक अन्य कविता से..

तुम्हारी संस्कृति स्त्री विरोधी है / बैकलेस पहनो तो बेखबर रहना भी सीखो/पर तुम्हारे तो पीठ में भी आंखें हैं /जो पुरुषों का घूरना ताड़ लेती है /और तुम्हारे अंदर की स्त्री कुढ़ती है.

किताब को पढ़कर  कहना चाहता हूं  कि किंचित परिमार्जन व किसी वरिष्ठ कवि के संपादन के साथ प्रकाशन किया जाता तो बेहतर प्रस्तुति हो सकती थी क्योंकि नई कविता वही है जो  न्यूनतम शब्दों से,अधिकतम भाव व्यक्त कर सके. प्रूफ बेहतर तरीके से पढ़ा जा कर मात्राओ में सुधार किया जा सकता था. मूल भाव एक ही होने से पुस्तक की हर कविता जैसे  दूसरे की पूरक ही प्रतीत होती है. आर डी आनंद इस नवोन्मेषी प्रयोग के लिये बधाई के सुपात्र हैं.

रवीना प्रकाशन ने प्रिंट, कागज, बाईंडिंग, पुस्तक की बढ़िया प्रस्तुति में कहीं कसर नही छोड़ी है. इसके लिये श्री चंद्रहास जी बधाई के पात्र हैं. उनसे उम्मीद है कि किताब की बिक्री के तंत्र को और भी मजबूत करें जिससे पुस्तक पाठको तक पहुंचे व पुस्तक प्रकाशन का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सके.

 

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments