हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 182 ☆ नवगीत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवगीत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 182 ☆

☆ नवगीत ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

गीत पुराने छायावादी

मरे नहीं

अब भी जीवित हैं.

तब अमूर्त

अब मूर्त हुई हैं

संकल्पना अल्पनाओं की

कोमल-रेशम सी रचना की

छुअन अनसजी वनिताओं सी

गेहूँ, आटा, रोटी है परिवर्तन यात्रा

लेकिन सच भी

संभावनाऐं शेष जीवन की

चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.

बिम्ब-प्रतीक

वसन बदले हैं

अलंकार भी बदल गए हैं.

लय, रस, भाव अभी भी जीवित

रचनाएँ हैं कविताओं सी

लज्जा, हया, शर्म की मात्रा

घटी भले ही

संभावनाऐं प्रणय-मिलन की

चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.

कहे कुंडली

गृह नौ के नौ

किन्तु दशाएँ वही नहीं हैं

इस पर उसकी दृष्टि जब पडी

मुदित मग्न कामना अनछुई

कौन कहे है कितनी पात्रा

याकि अपात्रा?

मर्यादाएँ शेष जीवन की

चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गीत – मेरा भारत महान ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

☆ गीत – मेरा भारत महान  ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

चंद्रयान पहुँचा चंदा पर,तीन रंग फहराये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

*

ज़ीरो को खोजा था हमने,आर्यभट्ट पहुँचाया।

छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम,सबका मन लहराया।।

सबने मिल जयनाद गुँजाया,जन-गण-मन सब गाये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

*

मैं महान हूँ,कह सकते हम,हमने यश को पाया।

एक महागौरव हाथों में,आज हमारे आया।।

जिनको नहीं सुहाते थे हम,उनको हम हैं भाये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

*

जो कहते थे वे महान हैं,उनको धता बताया।

भारत गुरु है दुनिया भर का,यह हमने जतलाया।।

शान तिरंगा-आन तिरंगा,गीत लबों पर आये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

*

अंधकार में किया उजाला,ताक़त को बतलाया।

जो समझे थे हमको दुर्बल,उन पर भय है आया।।

जोश लिये हर जन उल्लासित,हम हर दिल पर छाये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

*

ज्ञान और विज्ञान रचे हम,हमने शशि को पाया।

आशाओं का सूरज दमका,हमने नवल रचाया।।

नया और अनुपम-मंगलमय,विजय-ध्वजा फहराये।

शान बढ़ी,सम्मान बढ़ गया,हम सारे हर्षाये।।

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – केंद्र ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – केंद्र ? ?

खींचकर एक वृत्त

बीचोंबीच बिठा दी गई औरत

घोषित कर दिया गया उसे केंद्र,

बताया गया,

वृत्त, केंद्र के इर्द-गिर्द घूमता है,

भूल गए ताली बजानेवाले हाथ

राउंडर की नोक पर

छिदने-गुदने से बनता है केंद्र,

वृत्त की परिधि छोटी-बड़ी

करता है परकार

केंद्र की नाभि पर होकर सवार,

हाँ, परकार के कृत्य का

विवश, मूक माध्यम भर बनता है केंद्र,

केंद्र आनंदित है

परिधि को विस्तृत कर दिया गया है,

केंद्र दमित है

परिधि को लगभग समेट दिया गया है,

अपने ही वृत्त में कैद औरत

आजीवन मनाती रहती है जश्न

मिलती-छिनती आज़ादी का,

उस रोज़ कोई मंच से कह रहा था

देखो हम इंसानों ने

औरत को कितनी आज़ादी दी है,

जरा मुझे बताना भाई

औरत इंसान नहीं होती क्या?

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #232 – 119 – “जनाब तुम मुश्किलें पूछते क्या हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल जनाब तुम मुश्किलें पूछते क्या हो…” ।)

? ग़ज़ल # 119 – “जनाब तुम मुश्किलें पूछते क्या हो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

पता  अब  तक नहीं बदला हमारा,

यही  हम  हैं  यही मकता हमारा।

*

जनाब  तुम मुश्किलें पूछते क्या हो,

हरेक  संघर्ष  रहा  कर्बला  हमारा।

*

हमारी  क़िस्मत महरवान ना थी,

उनके  ही पास था दहला हमारा।

*

मनाया दिल को चक्कर में न आना,

इश्क़ के लिए मन था पगला हमारा। 

*

कहें अदबी  महफ़िल में अब मिसरा,

यही  आतिश  हुआ  मतला हमारा।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 110 ☆ गीत – ।। होआदमी मिसाल बेमिसाल गिनती किरदारों में हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 110 ☆

☆ गीत – ।। होआदमी मिसाल बेमिसाल गिनती किरदारों में हो ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

होआदमी मिसाल बेमिसाल गिनती किरदारों में हो।

संवेदना सरोकार की बस  विनती हजारों में हो।।

*****

न थके ही कभी पांव न हिम्मत ही कभी तुम हारो।

देखो परखो हर दौर  तुम  सफर   जारी रहे यारो।।

हमेशा ऊंची तेरी नजर आसमान के सितारों में हो।

होआदमी मिसाल बेमिसाल गिनती किरदारों में हो।।

*****

खुशी बांट कर जीओ जिंदगी खूबसूरत बन जाती है।

चाहो गर तो मदद करने की    हर सूरत बन जाती है।।

हमारी कोशिश से बन सकती दुनिया जन्नत बहारों में हो।

होआदमी मिसाल बेमिसाल गिनती किरदारों में हो।।

*****

हर जगह अपनी जगह बना लो तुम दिल में उतर कर।

हार के बाद ही जीत  मिलती है  थोड़ा तू सबर  कर।।

यूं ही  मत गमों में ही डूबा रहे तू इन मन के टूटे तारों में।

होआदमी मिसाल बेमिसाल गिनती किरदारों में हो।।

*****

मिटें सब के दिल की दूरियां और हर कहीं अनुराग हो।

हो स्नेह प्रेम की वर्षा और न ही कहीं कोई द्वेष राग हो।।

बनो हर किसीका सहारा और पहचान शुक्रगुजारों में हो।

होआदमी मिसाल बेमिसाल गिनती किरदारों में हो।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 172 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “सफलता के लिये लक्ष्य बनाओ-कर्म करो” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “सफलता के लिये लक्ष्य बनाओ-कर्म करो। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “सफलता के लिये लक्ष्य बनाओ-कर्म करो” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

जन्म लिया दुनिया में तो कुछ लक्ष्य बनाओ जीवन का

क्रमशः उन्नति होती जग में है विधान परिवर्तन का।

बना योजना आगे बढ़ने का मन में विश्वास रखो

कदम-कदम आगे चलने का क्रमशः सतत प्रयास करो।

 *

आँखों में आदर्श कोई रख उससे उचित प्रेरणा लो

कभी आत्मविश्वास न खोओ मन में अपने धैर्य धरो।

 *

बिना किसी शंका को लाये प्रतिदिन निश्चित कर्म करो

करे निरुत्साहित यदि कोई तो भी उससे तुम न डरो।

 *

पुरुषार्थी की राह में काँटे और अड़ंगे आते हैं

यदि तुम सीना तान खड़े तो वे खुद ही हट जाते हैं।

 *

नियमित धीरे-धीरे बढ़ने वाला सब कुछ पाता है

जो आलसी कभी भी केवल सोच नहीं पा पाता है।

 *

श्रम से ईश्वर कृपा प्राप्त होती है शुभ दिन आता है।

जब कितना भी कठिन लक्ष्य हो वह पूरा हो जाता है।

 *

पाकर के परिणाम परिश्रम का मन खुश हो जाता है

अँधियारी रातें कट जातीं नया सवेरा आता है।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – मैली चाँदनी☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि –  मैली चाँदनी ? ?

गैर घरों में

झाड़ू-पोछा करती

अपने बच्चों की फीस भरती,

परायी किचन में

चपाती सेकती

अपनी रसोई चलाती,

जुआरी पति की

भद्दी गालियाँ सुनती

शराबी मर्द के

लात-घूँसे खाती,

हर रात बलत्कृत होती

फिर भी

करवा चौथ का व्रत करती!

काश! चाँद औरत होता!

इन बदनसीब कालिमाओं

के जीवन में

थोड़ी चाँदनी होती!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित साधना मंगलवार (गुढी पाडवा) 9 अप्रैल से आरम्भ होगी और श्रीरामनवमी अर्थात 17 अप्रैल को विराम लेगी 💥

🕉️ इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी करें। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना भी साथ चलेंगी 🕉️

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार # 2 – मर्यादा पुरुषोतम ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम रचना – मर्यादा पुरुषोतम

? रचना संसार # 2 – मर्यादा पुरुषोतम ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

सत्कर्मों के हैं ज्ञान -पुंज,

रघुकुल दीपक श्रीराम नमन।

शरणागत आते सुखसागर,

करते हैं आठों याम नमन।।

घट-घट वासी पालनकर्त्ता,

हनुमत साधक अंतर्यामी।

अवगुणहर्ता जीवनदाता,

मर्यादा पुरुषोत्तम स्वामी।।

हे ज्ञानवान हे शक्तिमान,

रघुकुल-भूषण सुखधाम नमन।

कौशल किशोर करुणा-निधान,

जगतारक मानस बलिहारी।

हो शोक नियंता जग रक्षक,

सीतापति राघव शुभकारी।।

अखिलेश्वर अभिनंदन करते,

हे भव्य -दिव्य हरि नाम नमन।

 *

तारी ऋषि गौतम की नारी,

वैभवदायी महिमा न्यारी।

अभिमानी रावण संहारा,

हैं शौर्यवान प्रभु धनुधारी।।

त्रेता युग में हैं अवतारे,

जपता मन है अविराम नमन।

 *

मानवता का पोषण करते,

हरते हैं जन -जन की पीरा।

जय धर्म परायण युग गौरव,

अतुलित बलशाली रघुवीरा।।

मुनिजन संतन के हितकारी,

उर बसती छवि अभिराम नमन।

 

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #227 ☆ भावना के दोहे – माँ जगदम्बे ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं भावना के दोहे –  माँ जगदम्बे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 227 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे –  माँ जगदम्बे ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

मां तुम जननी जगत की, करती जग उद्धार।

कृपा आपकी बरसती, मिलता प्यार अपार।।

*

दीप ज्ञान का जल रहा, लगता मां में ध्यान।

राह कठिन है मां करो, मेरा तुम कल्याण।।

*

ब्रह्मचारिणी मातु को, करते सभी प्रणाम।

नौ देवी की नवरात्रि, द्वितीय तेरे नाम।।

*

तप करती तपश्चारिणी, निर्जला निराहार।

हाथ जोड़कर पूजते, हो देवी अवतार।।

*

करना अंबे दया तुम, रखना मेरी लाज।

भाव भक्ति से कर रहे, माता तेरे काज।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #209 ☆ बाल गीत – सबसे न्यारा उल्लू ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बाल गीत – सबसे न्यारा उल्लू ।आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 209 ☆

☆ बाल गीत – सबसे न्यारा उल्लू  ☆ श्री संतोष नेमा ☆

उल्लू    सबसे   न्यारा  है

जो लक्ष्मी का  दुलारा  है

उल्लू   सबसे    न्यारा  है

*

लगता  वो  भोला   भाला

रूप  जिसका  है  निराला

बाहन बन कर  लक्ष्मी का

लगता   सबको  प्यारा  है

*

रिपु ज्ञान  का इसे  समझो

हाथ दिखा कभी न उलझो

सबको   उल्लू  खूब   बना

फैलाते    अँधियारा      हैँ

*

पूजा   जो   इसकी  करता

वो  मति सब उसकी हरता

बोल कभी न भाते  इसके

चीख  के  उल्लू पुकारा  है

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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