हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 207 ☆ लघुकथा – मरते मरते… ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय लघुकथा मरते मरते

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 207 ☆  

? लघुकथा – मरते मरते ?

किसी गांव के एक मुखिया थे। गांव में हर किसी को किसी न किसी तरह उन्होंने बहुत परेशान कर रखा था। लोग उनसे बेहद दुखी थे। एक दफे मुखिया बहुत बीमार पड़ गए। उन्हे समझ आ गया कि- वे अब बच नहीं सकेंगे।

मुखिया को देखने जब गांव के लोग पहुंचे तो वे बोले मैंने जीवन भर आप सब को बेहद परेशान किया है, मैं आप से विनती करता हूं की मुझे आप सब मेरे हाथ पैर बांधकर खूब पिटाई कीजिए जिससे मैं मर जाऊं, और मेरी आत्मा से आप लोगों को दुख पहुंचाने का बोझ उतर सके। पहले तो लोग इस बात पर तैयार नहीं हुए किंतु मुखिया के बारंबार अनुनय विनय करने पर भोले भाले गांव वाले मुखिया को बांधकर मारने के लिए राजी हो गए। मुखिया को खटिया से बांधकर पीटा गया। मुखिया मर गए। थानेदार तक घटना की खबर पहुंची। अब सारा गांव थाने में पकड़ लाया गया, सब मुखिया को मारने की सजा भोग रहे हैं । मरते मरते भी सारे गांव को परेशान करने में मुखिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी।

इस कहानी का किसी की कहानी से कोई रिश्ता नहीं है।

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ शाश्वत प्रेम ☆ सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा ☆

सुश्री नरेंद्र कौर छाबड़ा

(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री नरेन्द्र कौर छाबड़ा जी पिछले 40 वर्षों से लेखन में सक्रिय। 5 कहानी संग्रह, 1 लेख संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह, 1 पंजाबी कथा संग्रह तथा 1 तमिल में अनुवादित कथा संग्रह। कुल 9 पुस्तकें प्रकाशित।  पहली पुस्तक मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ को केंद्रीय निदेशालय का हिंदीतर भाषी पुरस्कार। एक और गांधारी तथा प्रतिबिंब कहानी संग्रह को महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार 2008 तथा २०१७। प्रासंगिक प्रसंग पुस्तक को महाराष्ट्र अकादमी का काका कलेलकर पुरुसकर 2013 लेखन में अनेकानेक पुरस्कार। आकाशवाणी से पिछले 35 वर्षों से रचनाओं का प्रसारण। लेखन के साथ चित्रकारी, समाजसेवा में भी सक्रिय । महाराष्ट्र बोर्ड की 10वीं कक्षा की हिन्दी लोकभरती पुस्तक में 2 लघुकथाएं शामिल 2018)

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा शाश्वत प्रेम।

☆  लघुकथा – शाश्वत प्रेम

अपनी जिंदगी का लंबा सफर मिलकर तय कर चुके हैं अशोक तथा गायत्री जी। 50 सालों के वैवाहिक जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों को महसूस करते आज भी अपने दमखम पर जीवन यापन कर रहे हैं। शाम की सैर करने के बाद जब अशोक जी घर आए तो उनके हाथ में एक पैकेट था।पत्नी को बोले- “जरा आईने के पास चलो।“ उसने हैरानी से पूछा- “क्या बात है?” अशोक जी बोले – “तुम चलो तो सही…”

 वहां जाकर उन्होंने पैकेट खोला और उसमें से फूलों का महकता गजरा निकालकर पत्नी के बालों में लगा दिया। एक लाल गुलाब का फूल उसके हाथों में थमा दिया। वे बोलीं- “ इस बुढ़ापे में यह सब क्या! “ अशोक जी बोले – “आज वैलेंटाइन डे है प्रेम का प्रतीक और प्रेम कोई जवानों की बपौती नहीं। प्रेम तो शाश्वत निर्मल धारा है जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में बहती है।“ पत्नी तो प्रेम से अभिभूत हो गई।

© नरेन्द्र कौर छाबड़ा

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – बीज ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – बीज ??

वह धँसता चला जा रहा था। जितना हाथ-पाँव मारता, उतना दलदल गहराता। समस्या से बाहर आने का जितना प्रयास करता, उतना भीतर डूबता जाता। किसी तरह से बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, बुद्धि कुंद हो चली थी।

अब नियति को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

एकाएक उसे स्मरण आया कि जिसके विरुद्ध क्राँति होनी होती है, क्राँति का बीज उसीके खेत में गड़ा होता है।

अंतिम उपाय के रूप में उसने समस्या के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना आरम्भ किया। आद्योपांत निरीक्षण के बाद अंतत: समस्या के पेट में मिला उसे समाधान का बीज।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ श्री हनुमान साधना 🕉️

अवधि – 6 अप्रैल 2023 से 19 मई 2023 तक।

💥 इस साधना में हनुमान चालीसा एवं संकटमोचन हनुमनाष्टक का कम से एक पाठ अवश्य करें। आत्म-परिष्कार एवं ध्यानसाधना तो साथ चलेंगे ही 💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – अदला बदली ☆ सुश्री अनघा जोगलेकर ☆

सुश्री अनघा जोगलेकर 

(सुश्री अनघा जोगलेकर जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। आप इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर, उपन्यासकार, लघुकथाकार, स्क्रीनप्ले /कांसेप्ट /संवाद लेखिका, अनुवादक, चित्रकार, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं की जानकार, ‘शीघ्र लेखिका’ के रूप में हिंदी में आपकी अपनी पहचान स्थापित है। आपकी कथाओं एवं लघुकथाओं का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट स्थान है। आपके उपन्यास ‘यशोधरा’ को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है। राम का जीवन या जीवन में राम, यशोधरा, बाजीराव बल्लाळ एक अद्वितीय योद्धा, अश्वत्थामा एवं देवकी शीर्षक से पांच उपन्यास प्रकाशित। प्रादेशिक व राष्ट्रीय स्तर पर उपन्यासकार के रूप में सम्मानित। लघुफिल्म,वेबसीरीज, स्क्रीन प्ले लेखन में दक्ष। सामाजिक, राष्ट्रीय, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में उत्तम कोटि के लेखन कार्य हेतु आपकी एक विशिष्ट पहचान है। हम अपने पाठको से आपकी विशिष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे।आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण एवं विचारणीय लघुकथा ‘अदला बदली’।)

☆ लघुकथा – अदला बदली ☆ सुश्री अनघा जोगलेकर

आसमान से मोतियों की झड़ी लगी थी। बड़े-बड़े सफेद मोती जो नीचे आते ही जमीन पर बिखर जाते।

आकाश निहारता उसका अबोध मन खिड़की पर ही टँगा था। भीगा-भीगा, सर्द-सा फिर भी खिला-खिला। उसकी हिरणी जैसी आँखें एकटक उन मोतियों को देख रही थीं।

उसकी उत्सुक नज़रे कह रही थीं कि आसमान में जरूर ही कोई खज़ाना है जिसका दरवाजा गलती से खुला रह गया है और सारे मोती नीचे गिर रहे हैं।

वह चहकते हुए बोली, “भगवान! इस तरह तो आपका पूरा खज़ाना ही खाली हो जायेगा!”

उसकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और फिर उसकी मासूमियत देखने लगा।

वह घर में दिन भर अकेली रहती। उसी खिड़की पर बैठी। लेकिन शाम होते तक घर मे चहल-पहल बढ़ जाती। आगंतुकों में से कोई उससे पानी मांगता तो कोई खाना। कोई कुछ तो कोई कुछ। और वह दौड़-दौड़कर सबके काम करती।

देर रात जब सब अपने कमरों में चले जाते तो वह भी सारे काम निपटा, खिड़की पर आ बैठती और तारे गिनती। कई बार तारे गिनते-गिनते उसकी आँखों से आँसू बहते जैसे उन तारों में किसी अपने को ढूंढ रही हो तो कभी खिलखिलाकर हँस देती जैसे जिसे ढूंढ रही थी वह मिल गया हो। कभी हल्के-हल्के गुनगुनाती, “ये चाँद खिला ये तारे हँसे…..”

….उसका यूँ गुनगुनाना सुन अंदर बैठी मानव आकृतियाँ फुसफुसातीं, “लगता है इस AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) रोबोट की प्रोग्रामिंग करते समय EQ (इमोशनल कोशेंट) का परसेंट कुछ ज्यादा ही फीड हो गया है।”

भावशून्य मशीन बन चुकी उन इंसानी आकृतियों के बीच वह AI (आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस) रोबोट हर पल अपना EQ (इमोशनल कोशेंट) बढ़ाने की कोशिश कर रही थी और मैं… मैं उन मशीन बन चुके इंसानों के बीच… उस रोबोट का… मशीन से इंसान बनने का इंतज़ार।

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© अनघा जोगलेकर

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ संपादक का घर ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 450 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं बारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है, जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आज प्रस्तुत है आपका  एक विचारणीय लघुकथा  ‘‘संपादक का घर।)

☆ लघुकथा – संपादक का घर ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल

मोहल्ले में जहां-तहां बिखरी कागज की चिंदिया, कतरनें देखकर कोई समझदार बोला-जरूर यहां कोई संपादक जैसा जीव रहता होगा।

‘तुम्हें कैसे मालूम’-साथी का प्रश्न उभरा।

‘यह उड़ता फिरता कचरा ही तो इसका सबूत है मियां। किसी पत्रिका के संपादक के घर जाकर माजरा देखिएगा, बैठने की जगह तक मयस्सर नहीं होगी।’

‘पर उसके बाल बच्चे ऐसे में कहां ठौर पाते होंगे भला।’

‘इसी कचरे के दरम्यां, बेचारे अपनी जगह बनाने के लिए बाध्य होते होंगे।’

साथी हक्का-बक्का था। कभी उड़ते कागज की चिंदियां, कतरनें देखकर तो कभी अपने साथी का चेहरा देखकर। किसी संपादक का घर देखने की जिज्ञासा जरूर उसके जेहन में बलवती हो रही होगी।

🔥 🔥 🔥

© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – लघुकथा ☆ धींगा मस्ती ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल ☆

डॉ कुंवर प्रेमिल

(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को  विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 450 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं बारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपने लघु कथा को लेकर कई  प्रयोग किये हैं।  आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम  साहित्यकारों  की पीढ़ी ने  उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है, जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं। आज प्रस्तुत है आपका  एक विचारणीय लघुकथा  ‘‘धींगा मस्ती।)

☆ लघुकथा – धींगा मस्ती ☆ डॉ कुंवर प्रेमिल

आसमान की सुंदर नीली जमीन पर सूरज चांद गिल्ली डंडा खेल रहे थे। एकाएक चांद फूट-फूट कर रोने लगा।

सूरज ने पूछा-छोटे भाई क्यों रो रहे हो?

सिसकियां पर सिसकियां भरकर चांद बोला-दादा, आदमी के पैर जब तब मेरी जमीन पर पड़ने लगे हैं, उसकी धींगा मस्ती अब यहां भी चालू हो जाएगी तो! यही भय मुझे भयभीत कर रहा है।

सूरज गुमसुम हो गया इसका हल तो उसके पास भी नहीं था।

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© डॉ कुँवर प्रेमिल

संपादक प्रतिनिधि लघुकथाएं

संपर्क – एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मध्यप्रदेश मोबाइल 9301822782

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – विनिमय ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – लघुकथा – विनिमय ??

…जानते हैं, कैसा समय था उन दिनों! राजा-महाराजा किसी साम्राज्य से संधि करने या लाभ उठाने के लिए अपने कुल की कन्याओं का विवाह शत्रु राजा से कर दिया करते थे। सौहार्द के नाम पर आदान-प्रदान की आड़ में हमेशा सौदे हुए।

…अत्यंत निंदनीय। मैं तो सदा कहता आया हूँ कि हमारा अतीत वीभत्स था। इस प्रकार का विनिमय मनुष्यता के नाम पर धब्बा है, पूर्णत: अनैतिक है।

…पहले ने दूसरे की हाँ में हाँ मिलाई। यहाँ-वहाँ से होकर बात विषय पर आई।

…अच्छा, उस पुरस्कार का क्या हुआ?

…हो जाएगा। आप अपने राज्य में हमारा ध्यान रख लीजिएगा, हमारे राज्य में हम आपका ध्यान रख लेंगे।

…विषय पूरा हो चुका था। उपसंहार के लिए वर्तमान, अतीत की आलोचना में जुटा था। भविष्य गढ़ा जा रहा था।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 आपदां अपहर्तारं साधना श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च को संपन्न हुई। अगली साधना की जानकारी शीघ्र सूचित की जावेगी ।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संवाद # 114 ☆ लघुकथा – जिएं तो जिएं कैसे ? ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  स्त्री विमर्श आधारित एक विचारणीय लघुकथा ‘जिएं तो जिएं कैसे ?’। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद  # 114 ☆

☆ लघुकथा – जिएं तो जिएं कैसे ? ☆ डॉ. ऋचा शर्मा ☆

कॉलबेल बजी। मैंने दरवाजा खोला, सामने एक वृद्धा खड़ी थीं। मैंने उनसे घर के अंदर आने का आग्रह किया तो बोलीं – ‘पहले बताओ मेरी कहानी पढ़ोगी तुम? ‘

अरे, आप अंदर तो आइए, बहुत धूप है बाहर – मैंने हँसकर कहा।

 ‘मुझे बचपन से ही लिखना पढ़ना अच्छा लगता है। कुछ ना कुछ लिखती रहती हूँ पर परिवार में मेरे लिखे को कोई पढ़ता ही नहीं। पिता ने मेरी शादी बहुत जल्दी कर दी थी। सास की डाँट खा- खाकर जवान हुई। फिर पति ने रौब जमाना शुरू कर दिया। बुढ़ापा आया तो बेटा तैयार बैठा है हुकुम चलाने को। पति चल बसे तो मैंने बेटे के साथ जाने से मना कर दिया। सब सोचते होंगे बुढ़िया सठिया गई है कि बुढ़ापे में लड़के के पास नहीं रहती। पर क्या करती, जीवन कभी अपने मन से जी ही नहीं सकी।‘

वह धीरे – धीरे चलती हुई अपने आप ही बोलती जा रही थीं।

मैंने कहा – ‘आराम से बैठकर पानी पी लीजिए, फिर बात करेंगे।‘ गर्मी के कारण उनका गोरा चेहरा लाल पड़ गया था और साँस भी फूल रही थी। वह सोफे पर पालथी मारकर बैठ गईं और साड़ी के पल्लू से पसीना पोंछने लगीं। पानी पीकर गहरी साँस लेकर बोलीं – ‘अब तो सुनोगी मेरी बात?’

हाँ, बताइए।

‘एक कहानी लिखी है बेटी ’ उन्होंने बड़ी विनम्रता से कागज मेरे सामने रख दिया। मैं उनकी भरी आँखों और भर्राई आवाज को महसूस कर रही थी। अपने ढ़ंग से जिंदगी ना जी पाने की कसक उनके चेहरे पर साफ दिख रही थी।

‘ मैं पचहत्तर साल की हूँ, बूढ़ी हो गई हूँ पर क्या बूढ़े आदमी की कोई इच्छाएं नहीं होतीं? उसे बस मौत का इंतजार करना चाहिए? और किसी लायक नहीं रह जाता वह? घर में सब मेरा मजाक बनाते हैं, कहते हैं- चुपचाप राम – नाम जपो, कविता – कहानी छोड़ो।‘

 कंप्यूटरवाले की दुकान पर गई थी कि मुझे कंप्यूटर सिखा दो। वह बोला – ‘माताजी, अपनी उम्र देखो।‘ जब उम्र थी तो परिवारवालों ने कुछ करने नहीं दिया। अब करना चाहती हूँ तो उम्र को आड़े ले आते हैं !

आखिर जिएं तो जिएं कैसे ?

©डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर. – 414001

संपर्क – 122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – लघुकथा – शब्दार्थ ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? संजय दृष्टि – लघुकथा – शब्दार्थ ??

मित्रता का मुखौटा लगाकर शत्रु, लेखक से मिलने आया। दोनों खूब घुले-मिले, चर्चाएँ हुईं। ईमानदारी से जीवन जीने के सूत्र कहे-सुने, हँसी-मज़ाक चला। लेखक ने उन सारे आयामों का मान रखा जो मित्रता की परिधि में आते हैं।

एक बार शत्रु रंगे हाथ पकड़ा गया। उसने दर्पोक्ति की कि मित्र के वेष में भी वही आया था। लेखक ने सहजता से कहा, ‘मैं जानता था।’

चौंकने की बारी शत्रु की थी। ‘शब्दों को जीने का ढोंग करते हो। पता था तो जान-बूझकर मेरे सच के प्रति अनजान क्यों रहे?’

‘सच्चा लेखक शब्द और उसके अर्थ को जीता है। तुम मित्रता के वेष में थे। मुझे वेष और मित्रता दोनों शब्दों के अर्थ की रक्षा करनी थी’, लेखक ने उत्तर दिया।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को समर्पित आपदां अपहर्तारं साधना गुरुवार दि. 9 मार्च से श्रीरामनवमी अर्थात 30 मार्च तक चलेगी।

💥 इसमें श्रीरामरक्षास्तोत्रम् का पाठ होगा, साथ ही गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीराम स्तुति भी। आत्म-परिष्कार और ध्यानसाधना तो साथ चलेंगी ही।💥

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 155 – माता की चुनरी ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ ☆

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श  और भ्रूण हत्या जैसे विषय पर आधारित एक सुखांत एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा “माता की चुनरी ”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 155 ☆

🌹 लघुकथा 🌹 🚩 माता की चुनरी 🚩❤️

सुशील अपनी धर्मपत्नी सुरेखा के साथ बहुत ही सुखी जीवन व्यतीत कर रहा था। सदा अच्छा बोलना सब के हित की बातें सोचना, उसके व्यक्तित्व की पहचान थी।

दोनों पति-पत्नी अपने घर परिवार की सारी जरूरतें भी पूरी करते थे। धार्मिक प्रवृत्ति के साथ-साथ सहयोग की भावना से भरपूर जीवन बहुत ही आनंदित था। परंतु कहीं ना कहीं कहते हैं ईश्वर को कुछ और ही मंजूर होता है। विवाह के कई वर्षों के उपरांत भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो सका था।. 

सुशील का प्रतिदिन का नियम था ऑफिस से छुट्टी होते ही गाड़ी पार्किंग के पास पहुंचने से पहले बैठी फल वाली एक सयानी बूढ़ी अम्मा से चाहे थोड़ा सा फल लेता, परंतु लेता जरूर था। बदले में उसे दुआएँ मिलती थी और वह उसे पैसे देकर चला जाता।

आज महागौरी का पूजन था। जल्दी-जल्दी घर पहुँचना चाह रहा था। अम्मा ने देखा कि आज वह बिना फल लिए जा रहा है उसने झट आवाज लगाई… “बेटा ओ बेटा आज बूढ़ी माँ से कुछ फल लिए बिना ही जा रहा है।” विचारों का ताना-बाना चल रहा था सुशील ने कहा…. “आज कन्या भोज है मुझे जल्दी जाना है कल ले लूंगा।”

अम्मा ने कहा… “फल तो लेता जा कन्या भोज में बांट देना।” पन्नी में दो तीन दर्जन केले वह देने लगी सुशील झुक कर लेने लगा और मजाक से बोला…. “इतने सालों से आप आशीर्वाद दे रही हो पर मुझे आज तक नहीं लगा।” कह कर वह हँसने लगा।

उसने देखा अम्मा की साड़ी का आँचल जगह-जगह से फटा हुआ है। और वह कह रही थी… “तेरी मनोकामना पूरी होते ही माता को चुनरी जरूर चढ़ा देना।”

जल्दी-जल्दी वह फल लेकर घर की ओर बढ़ चला। घर पहुँचने पर घर में कन्याएँ दिखाई दे रही थी और साथ में कुछ उनके रिश्तेदार भी दिखाई दे रहे थे।

माँ और पिताजी सामने बैठे बातें कर रहे थे और सभी को हँसते हुए मिठाई खिला रहे थे।” क्या बात है? आज इतनी खुशी हमेशा तो कन्या भोजन होता है परंतु आज इतनी सजावट और खुशहाली क्यों?” अंदर गया बधाइयों का तांता लग गया।

“बधाई हो तुम पापा बनने वाले हो!” सुशील के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा सुरेखा ने हाँ में सिर हिलाया। शाम ढलने वाली थी सुशील की भावना को समझ सुरेखा ने मन ही मन हाँ कह कर तैयारी में जुट गई।

 सुशील बाहर निकल कर गया। साड़ी की दुकान से साड़ी चुनरी और जरूरत का सामान ले वह फल वाली अम्मा के पास पहुँचा और कहा… “अभी घर पर आपको फलों की टोकरी सहित बुलाया है। चलो।” अम्मा ने कहा… “थोड़े से फल बच्चे हैं बेटा बेंच लूं।” सुशील ने कहा….. “नहीं इसी को टोकरी में डाल लो और अभी मेरे साथ गाड़ी में चलो।” उसने सोचा नेक दिल इंसान है और प्रतिदिन मेरे से सौदा लेता है। हमेशा आने को कहता है आज चली जाती हूं उनके घर।

दरवाजे पर पहुँचते ही उसकी टोकरी को रख सुशील उसे दरवाजे पर ले आया। सामने चौकी बिछी थी उसमें बिठाने लगा। वह आश्चर्यचकित थी परंतु हाथ पकड़कर उसने उसे बिठा दिया। फूलों का हार और सुंदर सी साड़ी चुनर लिए सुरेखा आई।

साड़ी भेंट कर वह हार पहना चुनर ओढा रही थी। अब तो अम्मा को सब समझ में आ गया। खुशी से वह नाचने लगी। सभी की आँखें खुशी से नम थी। सुशील की आँखों से बहते आँसू देख, अपने हथेलियों पर वह रखते हुए बोली… “मोती है इसे बचा कर रखना बिदाई पर देने पड़ेंगे।” आशय समझकर सुशील हंसने लगा। माता रानी के जयकारे लगने लगे।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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