English Literature – New Book ☆ THE LITTLE BOOK OF HAPPINESS: Simple ways to Beautify your Life ☆ Mr. Jagat Singh Bisht

☆ THE LITTLE BOOK OF HAPPINESS: Simple ways to Beautify your Life – By Jagat Singh Bisht ☆

I am happy to share with the readers and writers of e-abhivyakti that I have published a book THE LITTLE BOOK OF HAPPINESS: Simple ways to Beautify your Life on Amazon

About the book:

  • This book is about simple ways to beautify your life.
  • You can create your own happiness. It is hassle-free and you can do it yourself.
  • This book describes activities derived from the modern science of happiness as well as ancient spirituality, based on years of study and practical sessions with people.
  • You will learn about flow, work-happiness, mindfulness, laughter meditation, and happiness activities. There are beautiful parables and inspirational quotes inside.
  • You can experience new joy and freedom on reading the book.

Preview of the book:

This is a free preview of the book. Just click on the link, then the book cover, and flip through the pages. You can read from the pages of the book:

Amazon Kindle Link: >>>> 

The Preview: THE LITTLE BOOK OF HAPPINESS

Available on Amazon.

Excerpt from the Book:

HAPPINESS MANTRA

  • Do yoga and meditation every morning or go for a walk in the park and exercise.
  • Smile and be kind to all.
  • Spend quality time with family and friends.
  • Engage deeply in work, study, play, love, and parenting.
  • Connect with a meaningful cause.

Mr. JAGAT SINGH BISHT

Author, Blogger, Laughter Yoga Master Trainer, Behavioural Science Trainer, and National Science Talent Scholar.

Founder: LifeSkills

He is a Laughter Yoga Master Trainer of international repute and has been propagating happiness and well-being among people for the past twenty years.

He served in a bank for thirty-five years and has published five books, including ‘CULTIVATING HAPPINESS: A Guide to Practices that do Wonders’.

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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English Literature – New Book ☆ CULTIVATING HAPPINESS: A Guide to Practices that do Wonders ☆ Mr. Jagat Singh Bisht

☆ CULTIVATING HAPPINESS: A Guide to Practices that do Wonders – By Jagat Singh Bisht ☆

I am happy to share with the readers and writers of e-abhivyakti that I have published a book CULTIVATING HAPPINESS: A Guide to Practices that do Wonders on Amazon.

Below you will find basic information about the book and you can also preview some chapters of the book.

A short video about the book:

(Mr. Jagat Singh Bisht)

YouTube Link  >>>  CULTIVATING HAPPINESS: A GUIDE TO PRACTICES THAT DO WONDERS – YouTube

About the book:

A right understanding of happiness and well-being, and the pathways to achieve them is the subject matter of the book.

You will discover inside, a unique confluence of positive psychology, yoga, laughter yoga, meditation, and spirituality.

It outlines twelve set of proven practices that are known to do wonders.

Each chapter begins with a description of the practice, takes you through step-by-step instructions on how to do it, and provides deep insights from experienced practitioners.

The practices covered include:

Evidence based happiness activities from the modern science of happiness,

Experiencing flow in life,

Nurturing positive relationships,

Taking care of mind, body, and soul, through yoga, meditation, and the Five Tibetans,

And how to find meaning and cultivate spirituality.

You can transform your life by adopting these wonderful practices.

Preview of the book:

This is a free preview of the book. Just click on the link, then the book cover, and flip through the pages. You can read from the pages of the book:

Amazon Kindle Link: >>>>  Book preview: CULTIVATING HAPPINESS

Book description:

LEARN PRACTICES TO FIND MEANING, PEACE AND WELL-BEING

You can change your life if you have the right understanding and adopt proven practices for creating happiness. This is a comprehensive guide on the art of living and the science of being, based on years of study and practical sessions. It includes a step-by-step guide to twelve sets of exercises and a treasure trove of timeless wisdom.

The book is a unique confluence of positive psychology, laughter yoga, yoga, meditation, and spirituality. It is the right place for beginners to take the first steps and for the advanced learners to add more skills to their repertoire. You will experience cheerful health, authentic happiness, and everlasting peace once you adopt these practices.

Mr. JAGAT SINGH BISHT

Author, Blogger, Laughter Yoga Master Trainer, Behavioural Science Trainer, and National Science Talent Scholar.

Founder: LifeSkills

He is a Laughter Yoga Master Trainer of international repute and has been propagating happiness and well-being among people for the past twenty years. He served in a bank for thirty-five years and has published four books.

≈  Blog Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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मराठी साहित्य – कवितेचा उत्सव ☆ सेतू – कवी स्व वसंत बापट  ☆  कवितेचे रसग्रहण सौ.अमृता देशपांडे

स्व वसंत बापट

जन्म – 25 जुलाई 1922

मृत्यु – 17 सितम्बर 2002

☆ कवितेचा उत्सव ☆ सेतू ☆ कवी स्व वसंत बापट  ☆  प्रस्तुति – सौ. अमृता देशपांडे ☆ 

शरदामधली पहाट आली तरणीताठी

हिरवे हिरवे चुडे चमकती दोन्ही हाती

शिरि मोत्याचे कणिस तरारुन झुलते आहे

खांद्यावरती शुभ्र कबूतर खुलते आहे

 

नुक्ते झाले स्नान हिचे ते राजविलासी

आठ बिचा-या न्हाऊ घालित होत्या दासी

निरखित अपुली आपण कांती आरसपानी

थबकुन उठली चाहुल भलती येता कानी

 

उठली तो तिज जाणवले की विवस्त्र आपण

घे सोनेरी वस्त्र ओढुनी कर उंचावुन

हात दुमडुनि सावरता ते वक्षापाशी

उभी राहिली क्षण ओठंगुन नीलाकाशी

 

लाल ओलसर पाउल उचलुन तशी निघाली

वारा नखर करीत भवती

रुंजी घाली

निळ्या तलावाघरचे दालन उघडे आहे

अनिश्चयाने ती क्षितिजाशी उभीच आहे

 

माथ्यावरती निळी ओढणी तलम मुलायम

गालावरती फुलचुखिने व्रण केला कायम

पायाखाली येइल ते ते

खुलत आहे

आभाळाची कळी उगिच

उमलत आहे

 

झेंडू डेरेदार गळ्याशी

बिलगुन बसले

शेवंतीचे स्वप्न सुनहरी

आजच हसले

निर्गंधाचे रंग पाहुनी

गहिरे असले

गुलाब रुसले, ईर्षेने

फिरुनि मुसमुसले

 

फुलांफुलांची हनु कुरवाळित

अल्लड चाले

तृणातृणाशी ममतेने ही

अस्फुट बोले

वात्सल्य न हे! हे ही

यौवन विभ्रम सारे

सराईताला कसे कळावे

मुग्ध इशारे

 

दिसली ती अन् विस्फारित

मम झाले नेत्र

स्पर्शाने या पुलकित झाले

गात्र नि गात्र

ही शरदातिल पहाट…..

की……ती तेव्हाची  तू?

तुझिया माझ्या मध्ये

पहाटच झाली सेतु

 

कवी – स्व वसंत बापट 

(चित्र साभार लोकमत https://www.lokmat.com/maharashtra/todays-memorial-day-vasant-bapat/)

(या कवितेचे रसग्रहण काव्यानंद मध्ये दिले आहे.)

सौ अमृता देशपांडे

पर्वरी- गोवा

9822176170

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 70 ☆ व्यंग्य – साहित्यिक किसिम के दोस्त ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है एक  अतिसुन्दर व्यंग्य रचना  ‘साहित्यिक किसिम के दोस्त’।  इस सार्थक व्यंग्य  के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 70 ☆

☆ व्यंग्य – साहित्यिक किसिम के दोस्त

सबेरे सात बजे फोन घर्राता है। आधी नींद में उठाता हूँ।

‘हेलो।’

‘हेलो नमस्कार। पहचाना?’

‘नहीं पहचाना।’

‘हाँ भई, आप भला क्यों पहचानोगे! एक हमीं हैं जो सबेरे सबेरे भगवान की जगह आपका नाम रट रहे हैं।’

‘हें, हें, माफ करें। कृपया इस मधुर वाणी के धारक का नाम बताएं।’

‘मैं धूमकेतु, दिल्ली का छोटा सा कवि। अब याद आया? सन पाँच में लखनऊ के सम्मेलन में मिले थे।’

याद तो नहीं आया,लेकिन शिष्टतावश वाणी में उत्साह भरकर बोला,’अरे, आप हैं? खू़ब याद आया। वाह वाह। कहाँ से बोल रहे हैं?’

‘यहीं ठेठ आपकी नगरी से बोल रहा हूँ।’

‘कैसे पधारना हुआ?’

‘विश्वविद्यालय ने बुलाया था एक कार्यशाला में।’

‘वाह! मेरा फोन नंबर कहाँ से मिला?’

‘अब यह सब छोड़िए। जहाँ चाह वहाँ राह। हमें आपसे मुहब्बत है, इसीलिए हमने हाथ-पाँव मारकर प्राप्त कर लिया।’

‘वाह वाह! क्या बात है!तो फिर?’

‘तो फिर, भई, यहाँ तक आकर आपसे मिले बिना थोड़इ जाएंगे। आपके लिए पलकें बिछाये बैठे हैं।’

मुझे खाँसी आ गयी। गला साफ करके बोला,’कहाँ रुके हैं?’

‘यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में। कमरा नंबर 15 ।’

‘ठीक है। मैं आता हूँ।’

‘ऐसा करें। शाम को कहीं बैठ लेते हैं। शहर के चार छः साहित्यिक मित्रों को बुला लें। परिचय हो जाएगा और चर्चा भी हो जाएगी। एक दो पत्रकारों को भी बुला लें तो और बढ़िया। आकाशवाणी वाले आ जाएं तो सोने में सुहागा। इतनी व्यवस्था कर लें तो मेरा आपके नगर में आना सार्थक हो जाए। मैं शाम छः बजे के बाद आपका इंतजार करूँगा। जैसे ही आप आएंगे, मैं चल पड़ूँगा।’

मैं चिन्ता में पड़ गया। कहा,’ठीक है, मैं कोशिश करता हूँ।’

‘अजी, कोशिश क्या करना! आप फोन कर देंगे तो शहर के सारे साहित्यकार दौड़े आएंगे। आपकी कूवत को जैसे मैं जानता नहीं। आप के लिए क्या मुश्किल है? तो फिर मैं शाम को आपका इंतजार करूँगा।’

‘ठीक है।’

मैंने फोन रखकर पहले अपने संकोची स्वभाव को जी भरकर कोसा, फिर अपने दिमाग़ को दबा दबा कर उसमें से धूमकेतु जी को पैदा करने की कोशिश में लग गया। बड़ी जद्दोजहद के बाद एक झोलाधारी कवि की याद आयी जो लखनऊ सम्मेलन में सब तरफ घूमते और खास लोगों को अपना कविता-संग्रह बाँटते दिखते थे। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो भारी से भारी सम्मेलन में भी अपने तक ही कैद रहते हैं—अपनी चर्चा, अपनी प्रशंसा, अपनी कविता। धूमकेतु जी भी पूरी तरह आत्मप्रचार में लगे थे। तभी उनसे संक्षिप्त परिचय हुआ था। फिर दिल्ली के अखबारों में कभी कभी उनकी कविताएँ देखी थीं।

मैं फँस गया था। आयोजन-अभिनन्दन के मामले में मैं बिलकुल फिसड्डी हूँ और शायद इसीलिए अब तक लोगों ने मुझे अभिनन्दन के लायक नहीं समझा।

लेकिन साहित्य के क्षेत्र में संभावनाओं की कमी नहीं है। बहुत से साहित्यकर्मी चन्दन-अभिनन्दन को ही असली साहित्य समझते हैं। इसलिए मैंने एक स्थानीय स्तर के साहित्यकार ज्ञानेन्द्र को इन्तज़ाम का सारा भार सौंप दिया और उन्होंने सहर्ष कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार भी कर लिया। उन्होंने एक सांध्यकालीन अखबार के प्रतिनिधि को भी खानापूरी के लिए पकड़ लिया। मैं निश्चिंत हुआ।

शाम को धूमकेतु जी की सेवा में उपस्थित हुआ तो उन्होंने दोनों बाँहें फैलाकर मुझे भींच लिया। फिर अपना बाहुपाश ढीला करके बोले, ’हमारे प्यार की कशिश देखी? हमने आपको ढूँढ़ ही निकाला। वो जो चाहनेवाले हैं तेरे सनम, तुझे ढूँढ़ ही लेंगे कहीं न कहीं।’

हमने उनके मुहब्बत के जज़्बे की दाद दी, फिर उन्हें कार्यक्रम की तैयारी की रिपोर्ट दी। वे प्रसन्न हुए, बोले, ’स्थानीय लोगों से मेल-मुलाकात न हो तो कहीं जाने का क्या फायदा?’

मैं उन्हें स्कूटर पर लेकर रवाना हुआ। कार्यक्रम-स्थल पर आठ दस भले लोग आ गये थे। हर शहर में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो हर साहित्यिक कार्यक्रम की शोभा होते हैं। कार्यक्रम के आयोजक उन्हें याद करना कभी नहीं भूलते। वे हर कार्यक्रम को संभालने वाले स्तंभ होते हैं। उड़ती हुई सूचना भी उनके लिए पर्याप्त होती है। ऐसे ही तीन चार रत्न इस कार्यक्रम में भी डट गये थे।

कार्यक्रम बढ़िया संपन्न हुआ। ज्ञानेन्द्र ने धूमकेतु जी को कोने में ले जाकर उनका बायोडाटा लिख लिया था। धूमकेतु जी ने मुहल्ला-स्तर से लेकर अपनी सारी उपलब्धियों का विस्तृत ब्यौरा लिखा दिया था। उनको गुलदस्ता भेंट करने के बाद उनका परिचय हुआ और फिर आज की कविता पर उनका वक्तव्य हुआ। फिर जनता की फरमाइश पर उन्होंने अपनी पाँच छः कविताएं सुनायीं जिन पर हमने शिष्टतावश भरपूर दाद दी। फिर कुछ श्रोताओं ने हस्बमामूल उनके कृतित्व के बारे में कुछ सवाल पूछे और इस तरह कार्यक्रम  सफलतापूर्वक मुकम्मल हो गया। धूमकेतु जी गदगद थे। विदा होते वक्त एक बार फिर मुझे भींचकर उन्होंने इज़हारे-मुहब्बत किया। जाते वक्त हाथ हिलाकर बोले, ’स्नेह-भाव बनाये रखिएगा।’

पाँच छः माह बाद दिल्ली जाने का सुयोग बना। पहुँचकर मैंने उमंग से धूमकेतु जी को फोन लगाया। उधर से उनकी आवाज़ आयी,’हेलो।’

मैंने कहा,’मैं सूर्यकान्त। जबलपुर वाला।’

वे स्वर में प्रसन्नता भर कर बोले,’अच्छा,अच्छा। कहाँ से बोल रहे हैं?’

मैंने कहा, ’दिल्ली से ही। काम से आया था।’

वे बोले, ’वाह! बहुत बढ़िया! तो कब मिल रहे हैं?’

मैंने कहा, ’जब आप कहें। मैंने तो पहुँचते ही आपको फोन लगाया।’

वे जैसे कुछ उधेड़बुन में लग गये। थोड़ा रुककर बोले,’अभी तो मैं थोड़ा काम से निकल रहा हूँ। आप शाम चार बजे फोन लगाएं। मैं आपको बता दूँगा।’

मेरा उत्साह कुछ फीका पड़ गया। चार बजे फिर फोन लगाया। उधर से धूमकेतु जी की आवाज़ आयी,’हेलो।’

मैंने कहा,’मैं सूर्यकान्त।’

आवाज़ बोली, ’मैं धूमकेतु जी का बेटा बोल रहा हूँ। पिताजी एक साहित्यिक कार्य से अचानक बाहर चले गये हैं।’

मैंने कहा,’लेकिन यह आवाज़ तो धूमकेतु जी की है।’

जवाब मिला,’धूमकेतु जी की नहीं, धूमकेतु जी जैसी है। हम पिता पुत्र की आवाज़ एक जैसी है। कई लोग धोखा खा जाते हैं।’

मैंने पूछा,’कब तक लौटेंगे?

आवाज़ ने पूछा,’आप कब तक रुकेंगे?’

मैंने कहा,’मैं परसों वापस जाऊँगा।’

आवाज़ ने कहा,’वे परसों के बाद ही आ पाएंगे। प्रणाम।’

उधर से फोन रख दिया गया। मैं खासा मायूस हुआ।

जबलपुर वापस पहुँचा कि दूसरे ही दिन धूमकेतु जी का फोन आ गया—‘क्यों भाई साहब! दिल्ली आये और बिना मिले लौट गये? ऐसी भी क्या बेरुखी।’

मैंने कहा,’आपसे मिलना भाग्य में नहीं था, इसीलिए तो आप बाहर चले गये थे।’

वे बोले,’चले गये थे तो आप एकाध दिन हमारी खातिर रुक नहीं सकते थे? कैसी मुहब्बत है आपकी?’

मैंने कहा,’हाँ, लगता है हमारी मुहब्बत में कुछ खोट है।’

वे दुखी स्वर में बोले,’हमने सोचा था कि आपके सम्मान में छोटी मोटी गोष्ठी कर लेते। कुछ आपकी सुनते, कुछ अपनी सुनाते।’

मैंने कहा,’क्या बताऊँ! मुझे खुद अफसोस है।’

वे बोले,’खैर छोड़िए। वादा कीजिए कि अगली बार दिल्ली आएंगे तो मिले बिना वापस नहीं जाएंगे।’

मैंने कहा,’पक्का वादा है,भाई साहब। आपसे मिले बिना नहीं लौटूँगा। आप दुखी न हों।

वे बोले,’चलिए ठीक है। स्नेह बनाये रखें।’

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष – गांधी-150 (गांधी वादी मित्रों का आत्म चिंतन) ☆ श्री राकेश कुमार पालीवाल

श्री राकेश कुमार पालीवाल

(सुप्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक श्री राकेश कुमार पालीवाल जी  वर्तमान में  प्रधान मुख्या आयकर आयुक्त ( प्रिंसिपल  चीफ कमिश्नर) मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पद पर पदासीन हैं। गांधीवादी चिंतन के अतिरिक्त कई सुदूरवर्ती आदिवासी ग्रामों को आदर्श गांधीग्राम बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान है। आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें  ‘कस्तूरबा और गाँधी की चार्जशीट’ तथा ‘गांधी : जीवन और विचार’ प्रमुख हैं।

हम आदरणीय श्री राकेश कुमार पालीवाल जी की  फेसबुक वाल से  गांधीजी के जन्मोत्सव पर एक सार्थक  एवं विचारणीय कविता प्रस्तुत कर रहे हैं – गांधी – 150 (गांधी वादी मित्रों का आत्म चिंतन))

☆ गांधीजी के जन्मोत्सव पर विशेष ☆ 

☆ गांधी – 150 (गांधी वादी मित्रों का आत्म चिंतन)  ☆

 

बीत गया गांधी – एक सौ पचास भी

अब दो अक्तूबर दो हजार बीस में

दी जा रही है उसे अंतिम श्रद्धांजलि

 

इसकी शुरुआत में

गांधी वादी संस्थाओं ने

की थी बड़ी बड़ी घोषणाएं

मसलन एक सौ पचास गांवों को

बनाएंगे आदर्श गांधी गांव गांधी के सपनों के

और, और भी न जाने बनाई थी

कितनी भारी भरकम महत्वाकांक्षी योजनाएं

ठीक उसी तरह जैसे बनाते हैं बड़े बड़े घोषणापत्र

राजनीतिक दलों के बडबोले नेतागण

 

पदों की भूल भुलैया में

गांधी की संस्थाओं में जमे लोग

भूल गए हैं सहज सरल गांधी मार्ग

जिसमें कथनी करनी में अंतर नहीं होता

और कहने से पहले किए जाते हैं काम निस्वार्थ

 

गांधीवादी संस्थाओं के पदाधिकारियों को

अब इंतजार रहेगा गांधी एक सौ पचहत्तर का

तब तक बर्फ सा जमे रहना है गांधीवादी संस्थाओं में

भले ही शरीर साथ नहीं दे उम्र के नवें दशक में पहुंचकर

पद से गोंद सा चिपके रहना है हर हालत में हर मौसम में

 

गांधी एक सौ पचहत्तर में बनेंगी

और बड़ी योजनाएं गांधीवादी संस्थाओं में

भले ही उनका अंतिम हस्र भी

वैसा ही होगा जैसा हुआ है

गांधी एक सौ पच्चीस और एक सौ पचास में !

 

© श्री राकेश कुमार पालीवाल

भोपाल

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शेखर साहित्य # 8 – कवितेशी बोलू काही ☆ श्री शेखर किसनराव पालखे

श्री शेखर किसनराव पालखे

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेखर साहित्य # 8 ☆

☆ कवितेशी बोलू काही ☆

अनामिक हे सुंदर नाते

तुझ्यासवे ग जुळून यावे

तुझ्याच साठी माझे असणे

तुलाच हे ग कळून यावे

आनंदाने हे माझे मन

सोबत तुझ्या ग खुलून यावे

दुःखाचे की काटेरी हे क्षण

कुशीत तुझ्या ग फुलून यावे

भेटावी मज तुझी अशी ही

घट्ट मिठी ती हवीहवीशी

अथांगशा या तुज डोहाची

अचूक खोली नकोनकोशी

रुजावेस तू मनात माझ्या

प्रेमळ नाजूक सुजाणतेने

तूच माझे जीवन व्हावे

अन तुच असावे जीवनगाणे

 

© शेखर किसनराव पालखे 

पुणे

05/06/20

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Book-Review – Lines of Fate – Ms. Neelam Saxena Chandra

Lines of Fate

Amazon Link – >>>> Lines of Fate

e-abhivyakti.com congratulates Ms. Neelam Saxena Chandra ji for this most successful book released on 20th June 2020.  Excerpts from the Amazon as on 18th July 2020 itself describes the success story of less than one month.

Amazon Bestsellers Rank: #644

Ms Neelam Saxena Chandra

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division. )

☆ Book Review – Lines of Fate: First Love and Other Stories by Ms. Neelam Saxena Chandra

Lines of Fate: First Love and Other Stories by AKS Publishing House written by Ms. Neelam Saxena Chandra

Often a simple encounter on the path of life can change one’s entire future. “Lines of Fate” by Neelam Saxena Chandra is a collection of such selected, distinctive and unique tales from different walks of life. She has come with this unique collection of short stories to entertain the readers.

When a dice is rolled, one does not know what the outcome will be. Similarly, in an encounter between people, the aftermath is simply indefinite and unidentifiable. Maybe, the lines of fate decide the final outcome. Twists and turns are a part and parcel of each of these stories, written in simple, easy-to-read and lucid language.

We are pleased to reproduce the Book Review by an enlightened reader Mr Javvad Rizvi, Age 33, Bhopal. He is GIS executive at MAPIT Center Bhopal.

Review:

My Ratings – ⭐⭐⭐⭐/5

Quote of the Day –

There are two types of people who will tell you that you cannot make a difference in this world: those who are afraid to try and those who are afraid you will succeed…….

Synopsis –

Lines of Fate by Neelam Saxena is a Short book contains 16 short stories. As I usually prefer reading short fiction this is the perfect book for short story lovers. In this book, the Author did a great job of explaining her point of view in the form of short tales that can be read by anybody without experiencing any boredom. Each and every story has lots of twists and turns in it. Out of 16 stories, I found some of them are really heart touching for me but some are just Okay but those stories contain some morals or messages for readers.

Each and every story comprises of lots of feelings and emotions which either makes you Happy or makes you Cry. Author plot each story in a very unique manner to catch their readers until the end of the book. The characterization of the personalities in this book has plotted very clearly by the Author. The twists and turns in every story make it more engaging and intriguing.

Each and every story seems realistic. This is the perfect book for beginners in the field of reading. I am really impressed with Authors work of writing this great book and never get enough of it. I must say i want more from the writer of this book to write more stories like this and entertain the readers with your writing concept.

Here’s a summary of some really good stories from this book.

First Love – This is the story about Sukriti and Bhushan and their little daughter Surili. They both love each other very much. Everything was going perfectly in their life until surili starts acting weirdly.
Their life changed after that incident.

The Book Store – This is the Story about a Book store owner name Mr. Gidlani and their costumers named Waheeda and Martin who loves each other. 10 years later they come to the same book store to thank Mr. Gidlani for supporting them. Their Love story started in his Book store in front of Mr. Gidlani.

The Second Chance – This is the story about College fellows named Toshi and Tushar. Toshi started feeling for Tushar after seeing a love note for her in his notebook but she never discusses this with anyone not even with Tushar due to her reserved nature. Years after her graduation she Met with Tushar again. What happened next is still hidden in this book.

There were more interesting stories in this book to read.

To read more, You have to grab this book and enjoy it till the end page of the book.

Amazon Link – >>>> Lines of Fate

Youtube Link >>>>   Neelam Saxena Chandra

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

Additional Divisional Railway Manager, Indian Railways, Pune Division, Pune

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ तन्मय साहित्य # 52 – तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें….☆ डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है इस सदी की त्रासदी को बयां करती  भावप्रवण रचना तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें….। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 52 ☆

☆ तुमको भी कुछ सूत्र सिखा दें…. ☆  

 

अपना यशोगान करना

पहचान हमारी

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।

 

थोड़े से गंभीर

मुस्कुराहट महीन सी

संबोधन में भ्रातृभाव

ज्यों नीति चीन की,

हो शतरंजी चाल

स्वयं राजा, खुद प्यादे

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

 

हो निशंक, अद्वैत भाव

मैं – मैं, उच्चारें

दिनकर बनें स्वयं

सब, शेष पराश्रित तारे,

फूकें मंत्र, गुरुत्व

भेद, शिष्यत्व लिखा दें

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

 

बुद्ध, प्रबुद्ध, शुद्धता के

हम हैं पैमाने

नतमस्तक सम्मान

कई, बैठे पैतानें,

सिरहाना,सदियों का सब

भवितव्य बता दे

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

 

हों विचार वैविध्य,साधते

सभी विधाएं

अध्ययन, चिंतन, मनन

व्यर्थ की, ये चिंताएं,

जो मन आये लिखें और

मंचों पर बाँचें

आओ तुमको भी अचूक

कुछ सूत्र सिखा दें।।

सुरेश तन्मय

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

12/06/2020

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ -12 ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ चुप्पियाँ – 12 ☆

मेरे शब्द

चुराने आए थे वे,

चुप्पी की मेरी

अकूत संपदा देखकर

मुँह खुला का खुला

रह गया…..,

समर्पण में

बदल गया आक्रमण,

मेरी चुप्पी में

कुछ और पात्रों का

समावेश हो गया!

# दो गज़ की दूरी, है बहुत ज़रूरी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(प्रातः 8:07 बजे, 2.9.18)
(कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 1 – स्वप्नपाकळ्या ☆ ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है होली के अवसर पर उनकी कविता “होळीचा रंग “.) 

(दिनांक २३-०२-२०२०ला राज्यस्तरीय साहित्य व संस्कृती महोत्सव २०२०चे कवि कट्टा मंचाचे अध्यक्ष पद स्विकारतांना , कविंना प्रमाणपत्र व सन्मानचिन्ह प्रदान करतांना श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 1 ☆

☆ कविता – होळीचा रंग  ☆ 

रंग खेळू, रंग उधळू, उधळू गुलाल

रंगात रंगू या, निळ्या पिवळ्या लाल ।।

 

काही रंग ओले, काही सुकलेले रंग

जीवनाच्या अंतरंगी, वेगळे  तरंग

माणुसकीचे काही, काही चवचाल।।

रंगात रंगू या…….

 

होळीच्या निमित्ताने, खरे खरे बोलू

रंगलेल्या चेह-याची, आज पोल खोलू

मानू नका वाईट, ही होळीची धमाल।।

रंगात रंगू या…….

 

मित्रांनो धुता येईल, तन रंगलेले

कसे धुता येईल हो, मन मळलेले

होळीच्या गुलालात, आहे ही कमाल ।।

रंगात रंगू या…..

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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