सौ. सुजाता काळे

((सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की पर्यावरण और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक भावप्रवण कविता  “समय की रेत।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 17 ☆

☆ समय की रेत

समय की रेत छूटती जाए,
रे मनुज तेरे हाथों से…!
ये तो पल पल घटता जाए,
कण कण तेरे हाथों से….!

चढ़ता सूरज ढलता जाए,
तू क्यों सोचे बीता कल?
वर्तमान को देख ज़रा,
कण कण बीता तेरा कल।

तू समेट ले अपना मन,
अग्रसर हो ध्येय की ओर,
समय समय की राह चलेगा,
तू समय की राह पर चल।

© सुजाता काळे,

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684
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