श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “परिंदे संवेदना के…” ।)

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 29 ☆ परिंदे संवेदना के… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

अब नहीं आती ख़बर

अमराइयों से

मर चुके हैं

परिंदे संवेदना के।

 

फूल-पत्ते सिसकते हैं

पेड़-डाली हैं उदास

उग नहीं पाते ज़रा भी

बंजरों में अमलतास

 

कटे पर लेकर उजाले

जीते पल आलोचना के।

 

प्रकृति के पालने में

ध्वंस के सजते हैं मंच

झाँकते वातायनों से

अँधेरों के छल-प्रपंच

 

सुनाई देते नहीं हैं

स्वर कोई आराधना के।

(परिंदे संवेदना के से साभार)

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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