डॉ. ऋचा शर्मा

(हम  डॉ. ऋचा शर्मा जी  के ह्रदय से आभारी हैं जिन्होंने हमारे  सम्माननीय पाठकों  के लिए “साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद” प्रारम्भ करने के हमारे आग्रह को स्वीकार किया. डॉ ऋचा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  मिली है.  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी . उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं.  अब आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे. आज प्रस्तुत है उनकी ऐसी ही एक अनुकरणीय लघुकथा “खरा सौदा ”)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 2 ☆

 

☆ लघुकथा – खरा सौदा  ☆ 

 

गरीब किसानों की आत्महत्या की खबर उसे द्रवित कर देती थी।  कोई दिन ऐसा नहीं होता कि समाचार-पत्र में किसानों की आत्महत्या की खबर न हो।  अपनी माँगों के लिए किसानों ने देशव्यापी आंदोलन किया तो उसमें भी मंदसौर में कई किसान मारे गए। राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने आश्वासन दिए लेकिन उनके कोरे वादे किसानों को आश्वस्त नहीं कर पाए और आत्महत्या का सिलसिला जारी रहा।

कई बार वह सोचता कि क्या कर सकता हूँ इनके लिए ? इतना धनवान तो नहीं हूँ कि किसी एक किसान का कर्ज भी चुका सकूँ ।  बस किसी तरह दाल – रोटी चल रही है परिवार की।  क्या करूं कि किसी किसान परिवार की कुछ तो मदद कर सकूं।  यही सोच विचार करता हुआ वह घर से सब्जी लेने के लिए निकल पड़ा।

सब्जी मंडी बड़े किसानों और व्यापारियों से भरी पड़ी  थी।  उसे भीड़ में एक किनारे बैठी हुई बुढ़िया दिखाई दी जो दो – चार सब्जियों के छोटे – छोटे ढेर लगा कर बैठी थी।  इस भीड़- भाड़ में उसकी ओर कोई देख भी नहीं रहा था।  वह उसी की तरफ बढ़ गया।  पास जाकर बोला सब्जी ताजी है ना माई ?

बुढ़िया ने बड़ी आशा से पूछा-  का चाही बेटवा ?  जमीन पर बिछाए बोरे पर रखे टमाटर के ढेर पर नजर डालकर वह बोला –  ऐसा करो ये सारे टमाटर दे दो, कितने हैं ये ? बुढ़िया ने तराजू के एक पलड़े पर बटखरा रखा और दूसरे पलडे पर बोरे पर रखे हुए टमाटर उलट दिए, बोली – अभी तौल देते हैं भैया।  तराजू के काँटे को देखती हुई   बोली –  2 किलो हैं।

किलो क्या भाव लगाया माई ?

तीस रुपया ?

तीस रुपया किलो ? एकबारगी वह चौंक गया।  बाजार भाव से कीमत तो ज्यादा थी ही टमाटर भी ताजे नहीं थे।  वह मोल भाव करके सामान खरीदता था।  ये तो घाटे का सौदा है ? पता नहीं कितने टमाटर ठीक निकलेंगे इसमें, वह सोच ही रहा था कि उसकी नजर बुढ़िया के चेहरे पर पड़ी जो कुछ अधिक कमाई हो जाने की कल्पना से खुश नजर आ  रही थी।  ऐसा लगा कि वह मन ही मन कुछ हिसाब लगा रही है।  शायद उसके परिवार के लिए शाम के खाने का इंतजाम हो गया था।  उसने कुछ और सोचे बिना जल्दी से टमाटर थैले में डलवा लिए।

वह मन ही मन मुस्कुराने लगा, आज उसे अपने को ठगवाने में आनंद आ रहा था।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा,

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

13 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Mukta Mukta

बहुत उम्दा।

ऋचा शर्मा

धन्यवाद मुक्ता जी

राहुल अस्थाना

मर्मस्पर्शी कहानी। किसानों की सामयिक स्थिति को रेखांकित करती यह कहानी समाज से प्रश्न करती है।ऐसी उम्दा रचना हेतु आपको हम पाठकों का आभार।

GOVIND KANOJIYA

मार्मिक दृश्य आंखो के सामने आया। बहुत ही सुंदर।

सोपान दहातोंडे

मर्मस्पर्शी कहानी दो टुक रोटी के लिए तरसते गरीब किसान ,खेतिहर मजदूरों की व्यथा को अभिव्यक्त करती हुई लघु कथा। कम शब्दों में जटिल सामाजिक आर्थिक समस्या का वर्णन और साथ ही समस्या के उपाय का भी दर्शन लघु कथा के माध्यम से होता है ।आम आदमी के छोटी सी प्रयास भी किसानों की जिंदगी सुखकर कर सकते हैं। लघुकथा का शीर्षक अत्यंत सार्थक है। कहानी की प्रेरणा से सभी ने ऐसे ही खरे सौदे करने चाहिए

डॉ गोविंद शिवशेट्टे

बेशक यह लघुकथा देश के किसानों की व्यथा को संक्षिप्तिकरण के माध्यम से विस्तारीत भावाभिव्यक्ती दी है।

Pragati Tipnis

आपने बहुत ही बेहतरीन लहजे में छोटे किसानों और उनकी मनोव्यथा का वर्णन किया है। साथ ही यह भी दर्शाया है कि आदर्शवादिता व्यक्ति भी वास्तविकता से रूबरू होने पर डगमगा सा जाता है अपने फ़ायदे की तरफ़। बेहतरीन लघुकथा, ऋचा जी।

Chetan Raveliya

अभिव्यक्ति ,भाषा, विषय, संदेश, सभी दृष्टियों से उत्कृष्ट रचना |

ईश्वर

किसानी जीवन की वर्तमान स्थितियोँ को पूर्णतः सच्चे दिल और दिमाग से अभिव्यक्त किया है । धन्यवाद ।

सोपान दहातोंडे

मर्मस्पर्शी कहानी दो टुक रोटी के लिए तरसते गरीब किसान ,खेतिहर मजदूरों की व्यथा को अभिव्यक्त करती हुई लघु कथा। कम शब्दों में जटिल सामाजिक आर्थिक समस्या का वर्णन और साथ ही समस्या के उपाय का भी दर्शन लघु कथा के माध्यम से होता है ।आम आदमी के छोटी सी प्रयास भी किसानों की जिंदगी सुखकर कर सकते हैं। लघुकथा का शीर्षक अत्यंत सार्थक है। कहानी की प्रेरणा से सभी ने ऐसे ही खरे सौदे करने चाहिए

भारत चव्हाण

किसान जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ती हैं यह कहानी ।

Pragati Tipnis

आपने बहुत ही बेहतरीन लहजे में छोटे किसानों और उनकी मनोव्यथा का वर्णन किया है। साथ ही यह भी दर्शाया है कि आदर्शवादिता व्यक्ति भी वास्तविकता से रूबरू होने पर डगमगा सा जाता है अपने फ़ायदे की तरफ़। बेहतरीन लघुकथा, ऋचा जी।

Ekta Thadani

Bohot sundar lagukatha hai…