हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 143 – “रेकी हीलिंग …” – रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ जी द्वारा रचित पुस्तक  “रेकी हीलिंग पर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 143 ☆

☆ “रेकी हीलिंग …” – रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा 

पुस्तक – रेकी हीलिंग

लेखक – रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ

प्रकाशक – नोशन प्रेस

संस्करण – २०२१

पृष्ठ – २५४, मूल्य – ५९९ रु

पुस्तक चर्चा… विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल  

जान है तो जहान है. अर्थात शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर  हमेशा से मनीषियों के चिंतन का चलता रहा है.  आयुर्वेद, यूनानी दवा पद्धती, ऐलोपैथी, सर्जरी, होमियोपैथी,योग चिकित्सा, कल्प, अनेकानेक उपाय सतत अन्वेषण के केंद्र रहे हैं. रेकी भी इन्हीं में से एक विकसित होता विज्ञान है जिसे अब तक प्रामाणिक वैज्ञानिक मान्यता नहीं मिल सकी है. मानवता के व्यापक हित में होना तो यह चाहिये कि एक ही छत के नीचे सारी चिकित्सा पद्धतियों की सुविधा सुलभ हों और समग्र चिकित्सा से मरीज का इलाज हो सके. किन्तु वर्तमान समय भटकाव का ही बना हुआ है.

साहित्यिक पुस्तको पर तो मेरे पाठक हर सप्ताह किसी किताब की मेरी चर्चा पढ़ते ही हैं. किताब के कंटेंट पर बातें करता हूं, पाठको की प्रतिक्रियायें मिलती हैं, जिन्हें पुस्तक चर्चा में कुछ उनके काम का लगता है वे किताब खरीदते हैं.

इस सप्ताह मेरे सिराहने  रेकी हीलिंग पर रेकी ग्रेंड मास्टर संजीव शर्मा और रेकी ग्रेंड मास्टर मंजू वशिष्ठ की नोशन प्रेस से प्रकाशित किताब थी. नोशन प्रेस ने सेल्फ पब्लिशिंग के आप्शन के साथ हिन्दी किताबों को भी बड़ा प्लेटफार्म दिया है. मेरी अमेरिका यात्रा के संस्मरणो की किताब “जहां से काशी काबा दोनो ही पूरब में हैं” मैंने नोशन प्रेस से ही प्रकाशित की है.

इस पुस्तक रेकी हीलिंग के कवर पेज पर ही सेकेंड हेडिंग है अवचेतन का दिव्य स्पर्श. दरअसल रेकी जापान में फूला फला एक आध्यात्मिक विज्ञान है.हमारे कुण्डलिनी जागरण, स्पर्श चिकित्सा, टैलीपेथी का मिला जुला स्वरुप कहा जा सकता है. नकारात्मक विचार, क्रोध, असंतोष, असहिष्णुता जैसे अप्राकृतिक विचार हमारे मन और शरीर में तरह तरह की व्याधियां उत्पन्न करते हैं. रेकी आत्म उन्नयन कर मानसिक ऊर्जा के संचयन से स्वयं का तथा किसी दूसरे की भी बीमारी ठीक करने की क्षमता का विकास करती है. फिल्म मुन्ना भाई एम बी बी एस में जादू की झप्पी का जादू हम सब ने देखा है. मां के स्पर्श से या पिता के आश्वासन और हौसले से रोता चोटिल बच्चा हंस पड़ता है, अर्थात स्पर्श और भावों के संप्रेषण का हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है यह तथ्य प्रमाणित होता है. वैज्ञानिक सत्य है कि ऊर्जा अविनाशी है, हर पिण्ड में ऊर्जा होती ही है, तथा ” यत्पिण्डे तत ब्रम्हाण्डे ” हम सब में वह ऊर्जा विद्यमान है, उसे ईश्वर कहें या कोई अविनाशी वैज्ञानिक शक्ति. हर दो पिण्ड परस्पर एक ऊर्जा से एक दूसरे को खींच रहे हैं यह वैज्ञानिक प्रमाणित सत्य है. इस ऊर्जा के इंटीग्रेशन और डिफरेंशियेशन को ही केंद्रीय विचार बनाकर रेकी में रेकी मास्टर स्वयं की धनात्मक ऊर्जा को बढ़ाकर, ॠणात्मक ऊर्जा के चलते बीमार व्यक्ति का इलाज करता है यही रेकी हीलिंग है.

इस किताब में रेकी के इतिहास का वर्णन है. रेकी के सात चक्र मूलाधार, स्वाधिष्टान, मणिपुर चक्र, अनाहत या हृदय चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्त्रधार चक्र परिकल्पित हैं ये लगभग उसी तरह हैं जिस तरह हमारे यहां कुण्डलनी जागरण के चक्र हैं. किताब में  स्वयं पर रेकी, तथा दूसरों पर रेकी का वर्ण किया गया है. रेकी ध्यान अर्थात मेडीटेशन, प्रभा मण्डल अर्थात औरा के विषय में भी बताया गया है. ओम के चिन्ह को ऊर्जा का प्रतिक बताया गया है.इसके साथ ही अन्य प्रतीक चिन्हों का भी विशद वर्णन है. शक्तिपात अर्थात एट्यूनमेंट को ग्रैंडमास्टर स्तर की दीक्षा बताया गया है. टेलीकाईनेसिस के जरिये दूरस्थ व्यक्ति तक शांत चित्त होकर एकाग्र ध्यान से ऊर्जा पहुंचा कर रेकी हीलिंग की जा सकती है.

रेकी विज्ञान के क्षेत्र में प्रारंभिक रुचि रखने वालों को यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी लगेगी.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 142 – “चित्त शक्ति विलास…” – स्वामी मुक्तानन्द ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है स्वामी मुक्तानन्द जी द्वारा रचित पुस्तक  चित्त शक्ति विलासपर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 142 ☆

☆ “चित्त शक्ति विलास…” – स्वामी मुक्तानन्द ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा 

चित्त शक्ति विलास

स्वामी मुक्तानन्द

गुरुदेव शक्ति पीठ, गणेशपुरी

 चर्चा विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

जीवन क्या है, क्यों है, क्या भगवान कहीं ऊपर एक अलग स्वर्ग की दुनियां में रहते हैं, परमात्मा प्राप्ति का तरीका क्या है, ऐसी जिज्ञासायें युगों युगों से बनी हुई हैं. जिन तपस्वियों को इन सवालों के किंचित उत्तर मिले भी, उन्हें इस ज्ञान की प्राप्ति तक इतने दिव्य अनुभव हो जाते हैं कि वे उस ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाने में रुचि खो देते हैं, कुछ अपने मठ या चेले बनाकर इस ज्ञान को एक संप्रदाय में बदल देते हैं. आशय यह है कि यह परम ज्ञान जिसमें हम सब की रुचि होती है, हम तक बिना तपस्या के पहुंच ही नहीं पाता. “चित्त शक्ति विलास” में इस तरह के सारे सवालों के उत्तर सहजता से मिल जाते हैं. भगवान कहीं और नहीं हमारे भीतर ही रहता है. हम भगवान के ही अंश हैं.

गृह्स्थ जीवन में रहते हुये जीवन के इस अति आवश्यक तत्व से आम आदमी अपरिचित ही बना रह जाता है. किन्तु सिद्ध मार्ग के अनुयायी स्वामी मुक्तानन्द के गुरू स्वामी नित्यानंद थे. गुरु के शक्ति पात से स्वामी मुक्तानन्द का कुण्डलनी जागरण हुआ. इस किताब को माँ कुण्डलिनी का वैश्विक विलास कहा गया है. १९७० में प्रथम संस्करण के बाद से अब तक इस किताब की ढ़ेरों आवृत्तियां छप चुकी हैं. यह मेरे पढ़ने में आई यह मुझ पर परमात्मा की कृपा ही है. इसकी किताब की चर्चा केवल इसलिये जिससे जिन तक यह दिव्य ज्ञान प्रकाश न पहुंच सका हो वे भी उससे अवंचित न रह जायें.

सत्य क्या है ? ” शास्त्र प्रतीति, गुरू प्रतीति, और आत्म प्रतिति में अविरोध ही सत्य है.

“मैं, मेरी जाती रहे अल्प भावना, हृद्य में उदय चित्त ज्ञान हो ” यही प्रार्थना स्वामी मुक्तानन्द अपने गुरुदेव से करते हैं, हमें भी इसका अनुसरण करना चाहिये.

आमुख में ही वे इस दिव्य ज्ञान को उजागर करते हुये स्वामी मुक्तानन्द लिखते हें कि “

संसारी जन अपने सभी व्यवहारों के साथ सिद्ध योग का अभ्यास सहजता से कर सकते हैं. यह मार्ग सभी के लिये खुला है. यह कुण्डलिनी शक्ति पदावरूपिणी महादेवी है। इसे कुण्डलिनी के नाम से पुकारते हैं, जो मूलाधार कमल के गर्भ में मृणाल मालिका के समान निहित है। यह कुण्डल आकार में रहती है. वह स्वर्णकान्तियुक्त, तेजोमय है। यह परंशिव की परम निर्भय शक्ति है। वही नर या नारी में जीवरूपिणी शक्ति है। यह प्राणरूप है। मानव अपनी इस अन्तरंग शक्ति को जानकर संसार में रहते हुए उसका उपयोग कर सके इसी उद्देश से मैं इस शक्ति का वर्णन कर रहा हूँ। कुण्डलिनी प्राणवस्वरूप है। उस पारमेश्वरी कुण्डलिनी शक्ति के जग जाने पर जो संसार रुखा, सूखा, रसहीन, असन्तोषयुक्त दिखता है वही रसवान, हराभरा, पूर्ण सन्तोषरूपी बन जाता है।

जो आल्हादिनी, विश्वविकासिनी, पारमेश्वरी शक्ति है, जो चिति भगवती है। वही कुल-कुण्डलिनी है। वह कुण्डलाकार में मूलाधार में स्थित होकर हमारे सर्वांग के व्यवहारों को नियमबद्ध करती है। वह श्रीगुरुकृपा द्वारा जागकर सर्वाग- सहित मानव के इस संसार को उसके अदृष्टानुरूप विकसित करके संसार के जनो में एक दूसरे के प्रति परम मैत्रीपूर्ण ‘परस्पर देवो भव’ की भावना का उदय करते हुए, संसार को स्वर्गमय बनाती है। संसार में जो कुछ भी अपूर्ण है उसे पूर्ण करती है।

यह पारमेश्वरी शक्ति जिस पुरुष में अनुग्रहरूप से जगती है, उसका कायापलट हो जाता है। यह ज्ञान न कल्पित है और न केवल मुक्तानन्द का ही श्रुतिवाक्य है। रुद्रहृदयोपनिषद् का एक सत्य, प्रमाण-मन्त्र है :

 “रुद्रो नर उमा नारी तस्मै तस्यै नमो नमः।”

अर्थात इससे ऐसा ज्ञान उदित होता है कि जो आदि-सनातन सत्य, साक्षी परमेश्वर, जगत का मूल कारण, परमाराध्य, निर्गुण, निराकार एवं अज है, वही नर है।

नाम प्रकट परमात्मा है। इसलिये भगवान नाम जपो। नाम ध्याओ’ नाम गाओ । नाम का ही ध्यान करो। नाम जप होता है या नहीं इतना ही ध्यान बहुत है। नाम जपसाधना में रुचि और गुरू में प्रेम पूर्ण | ध्यान की कला देता है। प्रेम की प्रतीति देता है। नाम चिन्ता मणि है। नाम कामधेनु है। नाम कल्पतरू है। दाता है। सच पूछों तो भगवान का नाम वह मंत्र है जो तुमको गुरु से मिला है।

किताब में पहले खण्ड में सिद्धमार्ग के अंतर्गत परमात्मा प्राप्ति के उपाय बताये गये हैं. संसार सुख के लिये ध्यान की आवश्यकता समझाई गई है. जो जिसका ध्यान करेगा उसे वही प्राप्त होता है. परमात्मा का ध्यान करें तो परमात्मा ही मिलेंगे. हर व्यक्ति व स्थान का एक आभा मण्डल होता है अतः एक ही स्थान पर ध्यान करना चाहिये तथा उस स्थान की आभा बढ़ाते रहना चाहिये. स्वामी जी ने उनके साधना काल की अनुभूतियों का भी विशद वर्णन किया है. द्वितीय खण्ड में सिद्धानुशासन के अंतर्गत स्पष्ट बताया गया है कि भगवतत् प्राप्ति के लिये संसार मेंरहते हुये भी मैं और मेरा का त्याग करो, घर का नहीं. सिद्ध विद्यार्थियों के अनुभव भी परिशिष्ट में वर्णित हैं.

यह एक दिव्य ग्रंथ है जो जन सामान्य गृहस्थ को कुण्डलिनी जागरण से परमात्मा प्राप्ति के अनुभव करवाता है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 141 – “टिकाऊ चमचों की वापसी…” – श्री अशोक व्यास ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अशोक व्यास जी की संपादित पुस्तक  “टिकाऊ चमचों की वापसीपर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 141 ☆

☆ “टिकाऊ चमचों की वापसी...” – श्री अशोक व्यास ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा 

टिकाऊ चमचों की वापसी

श्री अशोक व्यास

भावना प्रकाशन, दिल्ली

संस्करण २०२१

अजिल्द, पृष्ठ १२८, मूल्य १९९ रु

चर्चा. . . विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

टिकाऊ चमचों की वापसी वैचारिक व्यंग्य संग्रह है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

किताब की शुरुवात लेखक के मन में उद्भूत विचारों से होती है. लेखक लिखता है. कम्पोजर कम्पोज करता है. अक्षर शब्द और शब्द वाक्य बन जाते हैं, भाव मुखर हो उठते हैं. प्रकाशक छापता है. समारोह पूर्वक किताबों के विमोचन होते हैं. समीक्षक चर्चा करते हैं. किताब विक्रेता से होते हुये पाठक तक पहुंचती है. पाठक जब पुस्तक पढ़कर लेखक की वैचारिक यात्रा में बराबरी से भागीदारी करता है, तब किंचित यह यात्रा गंतव्य तक पहुंचती लगती है. रचना के दीर्घगामी प्रभाव पड़ते हैं. लेखक सम्मानित होते हैं, पाठक रचनाकार के प्रशंसक, या आलोचक बन जाते हैं. अर्थात किताब की यात्रा सतत है, लम्बी होती है. अशोक व्यास व्यंग्य के मंजे हुये प्रस्तोता हैं. टिकाऊ चमचों की वापसी उनकी दूसरी किताब है. सुस्थापित लोकप्रिय, भावना प्रकाशन से यह कृति अच्छे गेटअप में प्रकाशित है.

सूर्यबाला जी ने प्रारंभिक पन्नो में अपनी भूमिका में पाया है कि लेखक अपने व्यंग्य कर्म में कहीं भी असावधान नहीं है. लालित्य ललित ने संग्रह के व्यंग्य पढ़कर आशा व्यक्त की है कि अपने आगामी संग्रहों में लेखक की चिंताये और व्यापक व अंतर्राष्ट्रीय हों. इस संग्रह में बत्तीस व्यंग्य हैं. पाठको के लिये विषयों पर सरसरी नजर डालना जरूरी है. अंग्रेजी घर पर है?, अजब गजब मध्य प्रदेश, अध्यक्ष जी नहीं रहे. अध्यक्ष जी अमर रहें, आइए सरकार, जाइए, आभासी दुनिया का वास्तविक बन्दा, कलयुग नाम अधारा आपका आधार कार्ड, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का भारतीय तरीका, कोरोना कल्चर का प्रभाव, कोरोना की कृपा, गोद ग्रहण समारोह, जा आ आ जा आ आ दू! जा आ आ दू, टिकाऊ चमचों की वापसी, ताली बजाओ ताल मिलाओ, दामाद बनाम फूफाजी, बुरा नहीं मानेंगे. . . चुनाव है, भारत निर्माण यात्रा, मध्यक्षता करा लो. . . मध्यक्षता, रंगबाज राजनीति, लिव आउट अर्थात् छोड़ छुट्टा, विश्व युद्ध की संभावना से अभिभूत, सड़क बनाएँ, गड्ढे खोदें, सतर्क मध्यमार्गी, सत्तर प्लस का युवा गणतन्त्र, साहित्यमति का बाहुबली साहित्यकार, सेवा के लिए प्रवेश, ज्ञान के लिए प्रस्थान, सोशल मीडिया के ट्रैफिक सिग्नल, हलवा वाला बजट, हाँ. मैं हूँ सुरक्षित!, होली के रंग बापू के संग, ईश्वर के यहाँ जल वितरण समस्या, जैसे दूरदर्शन के दिन फिरे, और पोस्ट वाला ऑफिस डाकघर शीर्षकों से हजार, पंद्रह सौ शब्दों में अपनी बात कहते व्यंग्य लेखों को इस पुस्तक का कलेवर बनाया गया है. टाइटिल लेख टिकाऊ चमचों की वापसी से यह अंश उधृत करता हूं, जिससे आपको रचनाकार की शैली का किंचित आभास हो सके. ” प्लास्टिक के चमचों की जगह फिर धातुओ के चम्मचों का इस्तेमाल पसंद किया जा रहा है, यूज एण्ड थ्रो के जमाने में स्थायी और टिकाउ चमचों की वापसी स्वागत योग्य है. वह चमचा ही क्या जो मंह लगाने के बादस फेंक दिया जाये. . . जैसे स्टील के चमचों के दिन फिरे ऐसे सबकें फिरें. . . . अशोक व्यास अपने इर्द गिर्द से विषय उठाकर सहज सरल भाषा में व्यंग्य के संपुट के संग थोड़ा गुदगुदाते हुये कटाक्ष करते दिखते हैं.

परसाई जी ने लिखा था ” बलात्कार कई रूपों में होता है. बाद में हत्या कर दी जाती है. बलात्कार उसे मानते हैं जिसकी रिपोर्ट थाने में होती है. पर ऐसे बलात्कार असंख्य होते हैं जिनमें न छुरा दिखाया जाता है न गला घोंटा जाता है, न पोलिस में रपट होती है “

अशोक जी ने हम सबके रोजमर्रा जीवन में हमारे साथ होते विसंगतियों के ऐसे ही बलात्कारों को उजागर किया है, जिनमें हम विवश यातना झेलकर बिना कहीं रिपोर्ट किये गूंगे बने रहते हैं. उनकी इस बहुविषयक रिपोर्टो पर क्या कार्यवाही होगी ? कार्यवाही कौन करेगा ? सड़क पर लड़की की हत्या होती देखने वाला गूंगा समाज ? व्हाटस अप पर क्रांति फारवर्ड करने वाले हम आप ? या प्यार को कट पीसेज में फ्रिज में रखकर प्रेशर कुकर में प्रेमिका को उबालकर डिस्पोज आफ करने वाले तथाकथित प्रेमी ? हवा के झोंके में कांक्रीट के पुल उड़ा देने वाले भ्रष्टाचारी अथवा सत्ता के लिये विदेशों में देश के विरुद्ध षडयंत्र की बोली बोलने वाले राजनेता ? इन सब के विरुद्ध हर व्यंग्यकार अपने तरीके से, अपनी शैली में लेखकीय संघर्ष कर रहा है. अशोक व्यास की यह कृति भी उसी अनथक यात्रा का हिस्सा है. पठनीय और विचारणीय है.

मैं कह सकता हूं कि टिकाऊ चमचों की वापसी वैचारिक व्यंग्य संग्रह है. अशोक व्यास संवेदना से भरे, व्यंग्यकार हैं. संग्रह खरीद कर पढ़िये आपको आपके आस पास घटित, शब्द चित्रों के माध्यम से पुनः देखने मिलेगा. हिन्दी व्यंग्य को अशोक व्यास से उम्मीदें हैं जो उनकी आगामी किताबों की राह देख रहा है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – पुस्तक चर्चा ☆ “सूर्यांश का प्रयाण”… – श्री महेश श्रीवास्तव ☆ श्री प्रियदर्शी खैरा ☆

श्री प्रियदर्शी खैरा

पुस्तक चर्चा ☆ “सूर्यांश का प्रयाण”… – श्री महेश श्रीवास्तव ☆ श्री प्रियदर्शी खैरा ☆

पुस्तक – सूर्यांश का प्रयाण

रचनाकार – श्री महेश श्रीवास्तव

प्रकाशक – इंदिरा पब्लिशिंग हाउस, भोपाल

मूल्य – ₹165

☆ गागर में सागर – सूर्यांश का प्रयाण ☆ श्री प्रियदर्शी खैरा  ☆

पत्रकारिता के पुरोधा, मध्य प्रदेश गान के रचयिता श्री महेश श्रीवास्तव के नव प्रकाशित प्रबंध काव्य “सूर्यांश का प्रयाण” को आत्मसात करने के लिए आपको उसी भाव भूमि पर उतरना होगा, जिसमें खोकर कवि ने सृजन किया है। साहित्यकारों एवं कलाकारों को कर्ण का चरित्र सदा से ही आकर्षित करता रहा है। किंतु,कवि ने उसे यहां नई दृष्टि से देखा है। मृत्यु शैया पर लेटे कर्ण के मस्तिष्क में उठ रहे विचारों को व्यक्त करना अपने आप में विलक्षण कार्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि मृत्यु के समय बीता हुआ जीवन चलचित्र की भांति समक्ष में दिखाई देने लगता है। इस स्तर पर रचना करने के लिए आपका विशद अध्ययन एवं अनुभव आवश्यक है और उसे काव्य में अभिव्यक्त करना और भी दुश्कर कार्य है। इस प्रबंध काव्य में कवि का अध्ययन,अनुभव, चिंतन,मनन एवं विषय पर पकड़ स्पष्ट झलकती है।

कवि ने “सूर्यांश का प्रयाण” को पांच खंडो में विभाजित किया है, यथा कुंती, द्रोपदी, युद्ध, दान और विदा, संक्षेप में कहें तो जन्म से मृत्यु।

कुंती ने जन्म दिया, द्रोपदी,युद्ध और दान के बीच जिया और अंत में कवि ने उसके जीवन को चार पंक्तियों में समेटे हुए विदा दी-

     विदा-कुंवारी मां के प्रायश्चित की पीड़ा

     विदा-त्याज्य को पुत्र बनाने वाली माता  

     विदा- लालसा भरे, नीति रीते दुर्योधन

     विदा- अस्मिता की रक्षा की अग्नि शलाका।

यदि पांच सर्गों का दार्शनिक विश्लेषण करें तो पंचतत्व की भांति कुंती सर्ग पृथ्वी है, द्रोपदी जल, तो युद्ध अग्नि, दान  वायु और विदा आकाश। इन सभी में गूढार्थ छिपे हैं,जिन का विस्तृत विश्लेषण किया जा सकता है। कवि का दार्शनिक अध्ययन भी कई स्थानों पर दृष्टिगत होता है-

   दुख मत कर मां

   सभी को कब मिला सब

   सुख पक्षी हैं उड़ेंगे घोंसलों से।

   बांधती जो डोर सुख की पोटली को

   वह स्वयं बनती दुखों की ही बटों से।

एक और उदाहरण देखिए-

    किसी के हाथ में है सूत्र

    हम तो मात्र अभिनेता, नियंत्रित पात्र

    बंधन में बंधे कर्तव्य के

    अभिनय निभाना है

    स्वयं की भावना इच्छा

    किसी आकांक्षा का मूल्य क्या

    बहती नदी में पात

    हमको डूबते, तिरते

    कभी मझधार में बहते

    कभी तट से लिपटते

    उस विराट समुद्र तक

    चुपचाप जाना है।

देखिए इन चार पंक्तियों में कैसा दर्शन छिपा है-

    क्षमा,दंड, प्रशस्ति, लाभ अलाभ हो

    अंत सबका मृत्यु के ही हाथ में

    और जीव ही केवल न मरता मृत्यु में

    मृत्यु की भी मृत्यु होती साथ में।

इस प्रकार के कितने ही प्रसंग इस पुस्तक में आए हैं। कर्ण, कृष्ण से प्रभावित है। हर सर्ग में कृष्ण किसी न किसी रूप में उपस्थित हैं। कृष्ण की तरह कर्ण का जन्म कुंती की  कोख से हुआ तो पालन पोषण राधे मां ने किया। कर्ण की यह व्यथा कुंती सर्ग में परलक्षित होती है।

कर्ण पर  तीन महिलाओं का विशेष प्रभाव रहा है, जननी कुंती, ममत्व और अपनत्व देने वाली राधे मां और चिर प्रतिक्षित द्रोपदी । द्रोपदी सर्ग में प्रश्न और उनके समाधान को प्राप्त करता हुआ कर्ण, अपनी पूर्ण प्रखरता के साथ प्रस्तुत हुआ है। इस खंड में महाभारत काल में महिला अधिकारों की बात कवि ने की है जो आज भी प्रासंगिक है –

    स्वयंवर में वस्तु वधू होती नहीं

    स्वयं का चुनने भविष्य स्वतंत्र

    खूंटे से बंधी निरीह

    बलि पशु सी विवश होती नहीं।

           अथवा

     हां किये स्वीकार मैंने पांच पति

     देह मन मेरे मुझे अधिकार है

     धर्म सत्ता सब पुरुष के पक्षधर

     स्त्री द्रोही नियम अस्वीकार है

युद्ध खंड में कवि और भी मुखर हुआ है। उसने धर्म युद्ध पर भी प्रश्न उठाया है-

     प्राण लेना लूटना है युद्ध तो

     मृत्यु तब बलिदान कैसे हो गई

     युद्ध सत्ता के लिए जाता लड़ा

     क्रूर हत्या धर्म कैसे हो गई।

दान खंड की इन पंक्तियों में कृष्ण और द्रोपदी

 के प्रति कर्ण के विचार प्रकट हुए हैं-

    —तुम्हारे प्रति गुप्त श्रद्धा

    द्रोपदी के प्रति असीमित प्रेम के हित

   स्वयं के हाथों स्वयं बलदान अपना कर दिया है।

विदा खंड में कर्ण कृष्ण को पहचान गया है-

    जब भी देखा लगा स्वयं तुम चमत्कार हो

    सम्मोहन का मंत्र,मुक्ति के सिंहद्वार हो

    तुम अनंत के छंद, देह होकर विदेह हो

    मुक्त चेतना में जैसे तुम आर पार हो।

यह काव्य मुक्त छंद में लिखा गया है। पर कविता में लय है,गति है, माधुर्य है। कविता नदी की तरह कलकल बहती हुई बढ़ती है, आनंद देती है और सोचने को विवश करती है। कवि  महाभारत में आए कर्ण से संबंधित  प्रसंगो को स्पर्श करते हुए आगे बढ़ता है।कवि ने गागर में सागर भरने का सफल प्रयास किया है।यही कवि की सफलता है। यह पुस्तक हिंदी साहित्य जगत में मील का पत्थर साबित होगी।

चर्चाकार… श्री प्रियदर्शी खैरा

ईमेल – [email protected]

मो. – 9406925564

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 140 – “मौन के अनुनाद से भरा मैं”. . .” – श्री अजय श्रीवास्तव “अजेय” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री अजय श्रीवास्तव “अजेय” जी की संपादित पुस्तक  मौन के अनुनाद से भरा मैंपर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 140 ☆

☆“मौन के अनुनाद से भरा मैं”. . .” – श्री अजय श्रीवास्तव “अजेय” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक चर्चा

मौन के अनुनाद से भरा मैं

अजय श्रीवास्तव “अजेय”

हिन्द युग्म ब्लू , दिल्ली 

संस्करण २०१९

सजिल्द , पृष्ठ १२८, मूल्य २००रु

चर्चा … विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल 

अजय बने हुये कवि नहीं हैं. वे जन्मना संवेदना से भरे, भावनात्मक रचनाकार हैं ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

किताब के बहाने थोडी चर्चा प्रकाशक की भी. वर्ष २००७..२००८ के आस पास की बात होगी. हिन्दी ब्लागिंग नई नई थी. इंजी शैलेष भारतवासी और साथियों ने हिन्द युग्म ई प्लेटफार्म को विकसित करना शुरू किया था. काव्य पल्लवन नाम से दिये गये विषय पर पाक्षिक काव्य प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी. इंटरनेट के जरिये बिना परस्पर मिले भी अपने साहित्यिक कार्यों से युवा एक दूसरे से जुड़ रहे थे. काव्य पल्लवन के लिये कई विषयों का चयन मेरे सुझाव पर भी किया गया. फिर दिल्ली पुस्तक मेले में हिन्द युग्म ने भागीदारी की. वहां मैं मण्डला से पहुंचा था, जिन नामों से कम्प्यूटर पर मिला करता था उनसे प्रत्यक्ष भेंट हुई. हिन्द युग्म साहित्यिक स्टार्टअप के रूप में स्थापित होता चला गया. आज की तरह लेखक के व्यय पर किताबें छापने का प्रचलन तब तक ढ़ंका मुंदा ही था, पर हिन्द युग्म ने सत्य का स्पष्ट प्रस्तुतिकरण किया. स्तरीय सामग्री के चयन के चलते प्रकाशन बढ़ चला. और आज हिन्दयुग्म स्थापित प्रकाशन गृह है, जो रायल्टी भी देता है और पारदर्शिता से लेखकों को मंच दे रहा है. नई वाली हिन्दी स्लोगन के साथ अब तक वेअनेक लेखको की ढ़ेर किताबें प्रायः सभी विधाओ में छाप चुके हैं. अस्तु पेशे से इंजीनियर पर मन से सौ फीसदी कवि अजय श्रीवास्तव “अजेय” की यह कृति “मौन के अनुनाद से भरा मैं ” भी हिन्द युग्म से बढ़िया गेटअप में प्रकाशित है.

डा विष्णु सक्सेना ने किताब की सारी कविताओ को बारीकी से पढ़कर विस्तृत समालोचना की है जो किताब के प्रारंभिक पन्नो में शामिल है. इसे पढ़कर आप कविताओ का आनंद लेने से पहले कवि को समझ सकते हैं. पुस्तक में ५१ दमदार मुक्त छंद शैली में कही गई प्रवाहमान नई कवितायें शामिल हैं. मुझे इनमें से कई कविताओ को अजय जी के मुंह से उनकी बेहद प्रभावी प्रस्तुति में सुनने समझने तथा आंखे बन्द कर कविता से बनते चित्रमय आनंद लेने का सुअवसर मिला है. यह श्रीवास्तव जी का तीसरा कविता संग्रह है. स्पष्ट है कि वे अपनी विधा का जिम्मेदारी से निर्वाह कर रहे हैं. भूमिका में अजय लिखते हैं कि ” मेरी कवितायें आंगन के रिश्तों की बुनियाद पर कच्ची दीवारों सी हैं जिन पर कठिन शब्दों का मुलम्मा नहीं है. वे बताते हैं कि हर कविता के रचे जाने का एक संयोग होता है, हर कविता की एक यात्रा होती है.”

सचमुच अपने सामर्थ्य के अनुसार अनुभवों और परिवेश को कम से कम शब्दों में उतारकर श्रोता या पाठक के सम्मुख शब्द चित्र संप्रेषित कर देने की अद्भुत कला के मर्मज्ञ हैं अजय जी. कविताये पढ़ते हुये कई बार लगा कि अजय कवि बड़े हैं या व्यंग्यकार ? वे समाजशास्त्री हैं या मनोविज्ञानी ?

पीठ पर बंधा

नाक बहाता

चिल्लाता नंगा बच्चा

या

आत्म शुद्धि करता हूं

दिल दिमाग का

और आत्म शुद्धि करता हूं

दिल और दिमाग का

मन के गटर में सड़ांध मारते

गहरे तले में बैठे

बुराइयों को ईर्ष्या को डाह को साफ करता हूं.

अपनी कविताओ से वे सीधे पाठक के अंतस तक उतरना जानते हैं. विष्णु सक्सेना लिखते हैं कि इन कविताओ के भाव पक्ष इतने प्रबल हैं कि पढ़ते हुये आंखे नम हो जाती हैं. यह नमी ही रचनाकार और रचना की सबसे बड़ी सफलता है.

शीर्षक कविता से अंश पढ़िये…

मौन उस काले जूते का, उस चश्में का

उस छाते का

जिसे बाउजी चुपचाप छोड़ गये.

उनकी रचनाओ में सर्वथा नयी उपमायें,नये प्रतिमान सहज पढ़ने मिलते हैं….

पानी में तैरते

दीपों के अक्स

प्रतिबिंबित होते हैं

आसमान पर

छिटक छिटक कर

या

घूमती रहती हे पृ्थ्वी

मंथर गति से

सांस की तरह

और मैं

एक ठोस,

इकट्ठे सूरज की तलाश में

उलझ जाता हूं.

मैं कह सकता हूं कि अजय बने हुये कवि नहीं हैं. वे जन्मना संवेदना से भरे, भावनात्मक रचनाकार हैं. यह संग्रह खरीद कर पढ़िये आपको कई स्वयं के देखे किन्तु संवेदना के उस स्तर की कमी के चलते ओझल दृश्य पुनः शब्द चित्रों के माध्यम से देखने मिलेंगे. अजय से हिन्दी नई कविता को बेहिसाब उम्मीदें हैं.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 141 ☆ काव्य समीक्षा – शब्द अब नहीं रहे शब्द – डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा डॉ राजकुमार तिवारी ”सुमित्र’ जी की कृति “आदमी तोता नहीं” की काव्य समीक्षा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 141 ☆ 

☆ काव्य समीक्षा – शब्द अब नहीं रहे शब्द – डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

काव्य समीक्षा

शब्द अब नहीं रहे शब्द(काव्य संग्रह)

डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

प्रथम संस्करण २०२२

पृष्ठ -१०४

मूल्य २५०/-

आईएसबीएन ९७८-९३-९२८५०-१८-९

पाथेय प्रकाशन जबलपुर

शब्द अब नहीं रहे शब्द :  अर्थ खो हुए निशब्द – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

*

[, काव्य संग्रह, डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’, प्रथम संस्करण २०२२, पृष्ठ १०४, मूल्य २५०/-, आईएसबीएन ९७८-९३-९२८५०-१८-९, पाथेय प्रकाशन जबलपुर]

*

 कविता क्या है?

 

कविता है

आत्मानुभूत सत्य की

सौ टंच खरी शब्दाभिव्यक्ति।

 

कविता है

मन-दर्पण में

देश और समाज को 

गत और आगत को

सत और असत को

निरख-परखकर

कवि-दृष्टि से

मूल्यांकित कार

सत-शिव-सुंदर को तलाशना।

 

कविता है

कल और कल के

दो किनारों के बीच

बहते वर्तमान की

सलिल-धार का 

आलोड़न-विलोड़न।

 

कविता है

‘स्व’ में ‘सर्व’ की अनुभूति

‘खंड’ से ‘अखंड’ की प्रतीति

‘क्षर’ से ‘अक्षर’ आराधना

शब्द की शब्द से

निशब्द साधना।

*

कवि है

अपनी रचना सृष्टि का

स्वयंभू परम ब्रह्म

‘कविर्मनीषी परिभू स्वयंभू’।

 

कवि चाहे तो

जले को जिला दे।

पल भर में  

शुभ को अमृत

अशुभ को गरल पिला दे।

किंतु

बलिहारी इस समय की

अनय को अभय की

लालिमा पर

कालिमा की जय की।

 

कवि की ठिठकी कलम

जानती ही नहीं

मानती भी है कि

‘शब्द अब नहीं रहे शब्द।’

 

शब्द हो गए हैं

सत्ता का अहंकार

पद का प्रतिकार    

अनधिकारी का अधिकार

घृणा और द्वेष का प्रचार

सबल का अनाचार

निर्बल का हाहाकार।

 

समय आ गया है

कवि को देश-समाज-विश्व का

भविष्य उज्जवल गढ़ने के लिए

कहना ही होगा शब्द से 

‘उत्तिष्ठ, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत’

उठो, जागो, बोध पाओ और दो

तुम महज शब्द ही नहीं हो

यूं ही ‘शब्द को ब्रह्म नहीं कहा गया है।’३  

*

‘बचाव कैसे?’४

किसका-किससे?

क्या किसी के पास है

इस कालिया के काटे का मंत्र?

आखिर कब तक चलेगा 

यह ‘अधिनायकवादी प्रजातन्त्र?’१५

‘जहाँ प्रतिष्ठा हो गई है अंडरगारमेंट

किसी के लिए उतरी हुई कमीज।‘१६

‘जिंदगी कतार हो गई’ १७

‘मूर्तियाँ चुप हैं’ १८

लेकिन ‘पूछता है यक्ष’१९ प्रश्न

मौन और भौंचक है

‘खंडित मूर्तियों का देश।’१९

*

हम आदमी नहीं हैं

हम हैं ‘ग्रेनाइट की चट्टानें’२०

‘देखती है संतान

फिर कैसे हो संस्कारवान?’२१

मुझ कवि को

‘अपने बुद्धिजीवी होने पर

घिन आती है।‘२३

‘कैसे हो गए हैं लोग?

बनकर रह गए हैं

अर्थहीन संख्याएँ।२४

*

रिश्ता

मेरा और तुम्हारा

गूंगे के गुड़ की तरह।२६

‘मैं भी सन्ना सकता हूँ पत्थर२८

तुम भी भुना सकते हो अवसर,

लेकिन दोस्त!

कोई उम्मीद मत करो

नाउम्मीद करने-होने के लिए। २९ 

तुमने 

शब्दों को आकार दे दिया  

और मैं

शब्दों को चबाता रहा। ३०

किस्से कहता-

‘मैं भी जमीन तोड़ता हूँ,

मैं कलम चलाता हूँ।३१

*

मैं

शब्दों को नहीं करता व्यर्थ।

उनमें भरता हूँ नित्य नए अर्थ।

मैं कवि हूँ

जानता हूँ

‘जब रेखा खिंचती है३२

देश और दिलों के बीच

कोई नहीं रहता नगीच।

रेखा विस्तार है बिंदु का

रेखा संसार है सिंधु का

बिंदु का स्वामी है कलाकार।‘३३ 

चाहो तो पूछ लो

‘ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार?’

 समयसाक्षी कवि जानता है

‘भ्रष्टाचार विरोधी जुलूस में

वे खड़े हैं सबसे आगे

जो थामे हैं भ्रष्टाचार की वल्गा।

वे लगा रहे हैं सत्य के पोस्टर

जो झूठ के कर्मकांडी हैं।३६

*

लड़कियाँ चला रही हैं

मोटर, गाड़ी, ट्रक, एंजिन

और हवाई जहाज।

वे कर रही हैं अंतरिक्ष की यात्रा,

चढ़ रही हैं राजनीति की पायदान

कर रही हैं व्यापार-व्यवसाय

और पुरुष?

आश्वस्त हैं अपने उदारवाद पर।३७

क्या उन्हें मालूम है कि

वे बनते जा रहे हैं स्टेपनी?

उनकी शख्सियत

होती जा रही है नामाकूल फनी। 

मैं कवि हूँ,

मेरी कविता कल्पना नहीं

जमीनी सचाई है।  

प्रमाण?

पेश हैं कुछ शब्द चित्र

देखिए-समझिए मित्र!

ये मेरी ही नहीं

हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे और

ख़ास-उल-खास की

जिंदगी के सफे हैं। 

 

‘जी में आया 

उसे गाली देकर

धक्के मारकर निकाल दूँ

मगर मैंने कहा- आइए! बैठिए।४४  

 

वे कौन थे

वे कहाँ गए

वे जो

धरती को माँ

और आकाश को पिता कहते थे

 

दिल्ली में

राष्ट्रपति भवन है,

मेरे शहर में

गुरंदी बाजार है।४७ 

 

कलम चलते-चलते सोचती है

काश! मैं

अख्तियार कर सकती

बंदूक की शक्ल।

 

मेरे शब्द

हो गए हैं व्यर्थ।

तुम नहीं समझ पाए

उनका अर्थ। ५२

 

आज का सपना

कल हकीकत में तब्दील होगा

जरूर होगा।५३

 

हे दलों के दलदल से घिरे देश!

तुम्हारी जय हो। 

ओ अतीत के देश

ओ भविष्य के देश

तुम्हारी जय हो।

*

ये कविताएँ

सिर्फ कविताएँ नहीं हैं,

ये जिंदगी के

जीवंत दस्तावेज हैं। 

ये आम आदमी की

जद्दोजहद के साक्षी हैं।

इनमें रची-बसी हैं

साँसें और सपने

पराए और अपने

इनके शब्द शब्द से

झाँकता है आदमी। 

ये ख़बरदार करती हैं कि

होते जा रहे हैं

अर्थ खोकर निशब्द,

शब्द अब नहीं रहे शब्द।

*

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२६-५-२०२३, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 140 ☆ काव्य समीक्षा – आदमी तोता नहीं – डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा डॉ राजकुमार तिवारी ”सुमित्र’ जी की कृति “आदमी तोता नहीं” की काव्य समीक्षा।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 140 ☆ 

☆ काव्य समीक्षा – आदमी तोता नहीं – डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

काव्य समीक्षा

आदमी तोता नहीं (काव्य संग्रह)

डॉ। राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

प्रथम संस्करण २०२२

पृष्ठ -७२

मूल्य १५०/-

आईएसबीएन ९७८-९३-९२८५०-१२-७

पाथेय प्रकाशन जबलपुर

☆ आदमी तोता नहीं : खोकर भी खोता नहीं – आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

*

महाकवि नीरज कहते हैं-

‘मानव होना भाग्य है

कवि होना सौभाग्य।

 

कवि कौन?

वह जो करता है कविता।

 

कविता क्या है?

काव्य ‘रमणीय अर्थ प्रतिपादक’।

‘ध्वनि आत्मा’, कविता की वाहक।

‘वाक्य रसात्मक’ ही कविता है।

‘ग्राह्य कल्पना’ भी कविता है।

‘भाव प्रवाह’ काव्य अनुशीलन।

‘रस उद्रेक’ काव्य अवगाहन।

कविता है अनुभूति सत्य की ।

कविता है यथार्थ का वर्णन।

कविता है रेवा कल्याणी।

कविता है सुमित्र की वाणी।

*

कवि सुमित्र की कविता ‘लड़की’

पाए नहीं मगर खत लिखती।

कविता होती विगत ‘डोरिया’

दादा जिसे बुन करते थे,

जिस पर कवि सोता आया है

दादा जी को नमन-याद कर।

अब के बेटे-पोते वंचित

निधि से जो कल की थी संचित

कल को कैसे दे पाएँगे?

कल की कल  कैसे पाएँगे?

*

कवि की भाषा नदी सरीखी

करे धवलता की पहुनाई।

‘शब्द दीप’ जाते उस तट तक

जहाँ उदासी तम सन्नाटा। 

अधरांगन बुहारकर खिलता

कवि मन कमल निष्कलुष खाँटा।

‘त्याज्य न सब परंपरा’ कवि मत

व्यर्थ न कोसो, शोध सुधारो’

‘खोज’ देश की गाँधीमय जो  

‘काश!’ बने ऊसर उपजाऊ।

‘रिश्ते’ रिसने लगे घाव सम

है आहत विश्वास कहो क्यों?

समझ भंगिमा पाषाणों की

बच सकता है ‘गुमा आदमी’।

है सरकार समुद जल खारा

कैसे मिटे प्यास जनगण की?

*

कवि चिंता- रो रहे, रुला क्यों?

जाति-धर्म लेबिल चस्पा कर।

कवि भावों का शब्द कोश है।

शब्द सनातन, निज न पराए।

‘संस्कार’ कवि को प्रिय बेहद

नहिं स्वच्छंद आचरण भाए।

‘कवि मंचीय श्रमिक बंधुआ जो 

चाट रहे चिपचिपी चाशनी

समझौतों की स्वाभिमान तज।

कह सुमित्र कवि-धर्म निभाते।

कभी निराला ने नेहरू को

कवि-पाती लिखकर थी भेजी।

बहिन इंदिरा ने सुमित्र को

कवि-पाती लिख सहज सहेजी। 

*

‘मनु स्मृति’ विवाद बेमानी

कहता है सुमित्र का चिंतक।

‘युद्ध’ नहीं होते दीनों-हित

हित साधें व्यापारी साधक।

रुदन न तिया निधन पर हो क्यों?

 ‘प्रथा’ निकष पर खरी नहीं यह।

‘हद है’ नेक न सांसद मंत्री

‘अद्वितीय वह; समझे खुद को।

मंशाराम! बताओ मंशा

क्या संपादक की थी जिसने

लिखा नहीं संपादकीय था

आपातकाल हुआ जब घोषित?

*

युगद्रष्टा होता है कवि ही

कहती हर कविता सुमित्र की।

शब्द कैमरे देख सके छवि

विषयवस्तु जो थी न चित्र की।

भूखा सोता लकड़ीवाला

ढोता बोझ बुभुक्षा का जो

भारी अधिक वही लकड़ी से

सार कहे कविता सुमित्र की।

तोड़ रहा जंजीर शब्द हर

गोड़ जमीन कड़ी सत्यों की

कोई न जाने कितना लावा

है सुमित्र के अंतर्मन में?

चलें कुल्हाड़ी, गिरें डालियाँ

‘क्या बदला है?’ समय बताए।

पेड़ न तोता अंतरिक्ष में

ध्वनि न रंग न रस तरंग ही।

*

ये कविताएँ शब्द दूत हैं ।

भाषा सरल, सटीक शब्द हैं।

सिंधु बिन्दु में सहज न भरना

किन्तु सहज है यह सुमित्र को।

बिम्ब प्रतीक अर्थगर्भित हैं।

नवचिंतन मन को झकझोरे।

पाठक मनन करे तो पाता

समय साक्षी है सुमित्र कवि।

बात बेहिचक कहता निर्भय

रूठे कौन?, प्रसन्न कौन हो?

कब चिंता करते हैं चिंतक?

पत्रकार हँस आँख मिलाते।

शब्द-शब्द में जिजीविषा है,

परिवर्तन हित आकुलता है।

सार्थक काव्य संकलन पढ़ना

युग-सच पाठक पा सकता है।

तब तक तोता नहीं आदमी

जब तक खोता नहीं आदमी।

सपने बोता रहे आदमी

 कविता कहता रहे आदमी।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२९-५-२०२३, जबलपुर

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलमा की कलम से # 66 ☆ पुस्तक चर्चा – “भज-नात” (सर्वधर्मिक) – आत्मकथ्य – “भावाभिव्यक्ति” ☆ डॉ. सलमा जमाल ☆

डॉ.  सलमा जमाल 

(डा. सलमा जमाल जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। रानी दुर्गावती विश्विद्यालय जबलपुर से  एम. ए. (हिन्दी, इतिहास, समाज शास्त्र), बी.एड., पी एच डी (मानद), डी लिट (मानद), एल. एल.बी. की शिक्षा प्राप्त ।  15 वर्षों का शिक्षण कार्य का अनुभव  एवं विगत 25 वर्षों से समाज सेवारत ।आकाशवाणी छतरपुर/जबलपुर एवं दूरदर्शन भोपाल में काव्यांजलि में लगभग प्रतिवर्ष रचनाओं का प्रसारण। कवि सम्मेलनों, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी । विभिन्न पत्र पत्रिकाओं जिनमें भारत सरकार की पत्रिका “पर्यावरण” दिल्ली प्रमुख हैं में रचनाएँ सतत प्रकाशित।अब तक 125 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार/अलंकरण। वर्तमान में अध्यक्ष, अखिल भारतीय हिंदी सेवा समिति, पाँच संस्थाओं की संरक्षिका एवं विभिन्न संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन।

आपके द्वारा रचित अमृत का सागर (गीता-चिन्तन) और बुन्देली हनुमान चालीसा (आल्हा शैली) हमारी साँझा विरासत के प्रतीक है।

आप प्रत्येक बुधवार को आपका साप्ताहिक स्तम्भ  ‘सलमा की कलम से’ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी सद्य प्रकाशित पुस्तक “भज-नात” (सर्वधर्मिक) पर आपका आत्मकथ्य – “भावाभिव्यक्ति”। 

✒️ साप्ताहिक स्तम्भ – सलमा की कलम से # 66 ✒️

?  पुस्तक चर्चा – “भज-नात” (सर्वधर्मिक)- आत्मकथ्य – भावाभिव्यक्ति ✒️  डॉ. सलमा जमाल ?

सभी जानते हैं कि मेरी परवरिश गंगा-जमुनी तहजीब में हुयी । परिवार (मैका व ससुराल) में धर्म भी था और कर्म भी । घर में धर्म के साथ-साथ कर्मों पर विशेष बल दिया जाता था । क़दम उठाने से पहले यह सोचा जाता था कि कही गुनाह तो नहीं हो रहा ।

मेरी खुशकिस्मती थी कि ससुराल भी इन्हीं विचारों की मिली । मेरे पिता नेक दिल इन्सान

थे । हमको सुबह को नमाज के लिये उठा देते थे । रोज़े भी रखने पड़ते थे । वो कहते थे कि “मन्नते मानों तो रोजे, नमाज की मानो, ताकि जिस्म पर जोर पड़े । पैसे से तो सभी जन्नत खरीद सकते है। पास के मन्दिर में हम बच्चे भजन सुनने पहुँच जाते थे। हिन्दु, मुस्लिम का फर्क, बस दीवाली व ईद में चलता था । बाकी सब दिन बराबर । हमारे यहाँ सभी धर्मो का आदर किया जाता था। और आज भी है ।

विद्वानों ने संगीत को 3 भागों में विभाजित किया है- . शास्त्रीय संगीत 2. सुगम संगीत 3. लोक संगीत।

भजन को सुगम संगीत की श्रेणी में रखा गया है। हम इसे शास्त्रीय संगीत व लोक संगीत की श्रेणी में रख सकते हैं। लेकिन भजन मूल रूप से देवी-देवताओं की प्रसंशा में गाया जाने वाला गीत है, जिसे ईश्वर की आराधना, उपासना की शैली में भी रखते हैं।

सभी भारतीय पद्धतियों में इसका उपयोग भक्ति-भाव के रूप में किया जाता है।

भजन मन्दिरों में भी गाये जाते है भजन को आमतौर पर हिन्दू अपने सर्वशक्तिमान को याद करके इबारत के रूप में गाते हैं।

हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग भजन, कीर्तन पूजा के द्वारा, अपने ईश्वर की प्राप्ति के लिये इनका रास्ता अपनाते हैं। प्रार्थना करते हैं और अज्ञात शक्ति उसे पूरा करती है। भजन व कीर्तन के द्वारा की गयी प्रार्थना बहुत जल्द पूरी होती है। व्यक्ति ज्ञान, कर्म, और भक्ति के मार्गो से ईश्वर को पाने का प्रयास करता है। भजन, ईश्वर प्राप्ति का सबसे सरल सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ।

भजन व कीर्तन में थोड़ा फ़र्क होता है । भजन एक गीत है और कीर्तन किसी मंत्र विशेष का उच्चारण है। जो कुछ भी है, सब ईश्वर को पाने के लिये है ।

नात का अर्थ होता है – नाता, नातेदार, सम्बन्ध। नात उर्दू साहित्य में एक इस्लामी पद्य रूप है। जिसमें पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब की तारीफ़ करते हुए लिखी जाती है। नात को बड़े अदब वे एहतिराम से गाया जाता है। अक्सर नात ए शरीफ लिखने वाले आम शायर को नात गो शायर कहते हैं, और गाने वाले को नात ख़्वां कहते हैं। नात भी एक तरह से दिल को सुकून और खुद को पैगम्बर साहब के क़रीब होने का अहसास दिलाती है। सूफ़ी सन्त इसे इबादत का जरिया मानते हैं। दूसरा जरिया कव्वाली है।

उर्दू में हम्द व सना लिखी जाती है। हम्दो सना ख़ुदा की तारीफ में लिखी जाती है। इस्लाम धर्म को मानने वाले मुस्लिम लोग इसे तरन्नुम में गाते हैं।

क्रिश्चियन लोग कारोल के माध्यम से प्रभु की प्रशंसा करते हैं। ऐसे ही सिक्ख धर्मावलम्बी संगत के द्वारा वाहे गुरू की गाकर प्रसंशा करते है। अरदास (प्रार्थना) करते हैं ।

हम कह सकते है कि भारत एक ऐसा गुलदस्ता या चमन है, जिसमें तरह-तरह के रंग-बिरंगे, खुशबू के जाति धर्म के फूल खिले हैं। मगर सभी की जमीन एक है। फिर हम अलग-अलग कैसे हो सकते हैं। हम हिन्दुस्तान के चमन के फूल हैं। अलग-अलग भाषा, प्रान्त, जाति, संस्कृति, धर्म हैं। मगर हमारी जड़े एक ही जमीन जिसका नाम हिन्दोस्तान है, से जुड़ी हुई है। जिस दिन मुस्लिम भजन और हिन्दू, नात का आदर करते हुये स्वयं को एक-दूसरे की संस्कृति, धर्म को सम्मान सहित अपनायेंगे । उस इबादत को हम भजन + नात – भजनात कहेंगे । मेरा सपना है कि हम भारतीयों में यह गंगा-जमुनी तहजीब का ईजाद हो। हम प्यार मुहब्बत से रहे। नफ़रतों की फ़सल काटें, मुहब्बत के बीज बोयें।  शायद यही एक सच्चे देशभक्त का, साहित्यकार का मजहब है। गुरुनानक देव ने कहा है।

अवल अल्लाह नूर उपाइया, क़ुदरत के सब बन्दे ।

एक नूर से सब जग उपजया, को भले को मंदे ।।

मेरा सपना है, एक दिन ऐसा आये, जब हमारा धर्म से ज्यादा कर्म पर जोर हो। तब शायद हम ना होंगे । परन्तु इसका सुख हमारी भावी नस्‍लें उठायेंगी ।

मैं अपने परिवार- बेटे-बहू, बेटी-दामाद, नाती-नातिनों, पोता-पोती को इस मार्ग पर चलते देखना चाहती हूं। सभी साहित्यकार को, भाई-बहिनों को, मेरे सरपरस्त वरिष्ठ जनों को, मित्रों -सहेलियों , पड़ोसियों को धन्यवाद देती हूँ । जिनके प्यार से मुझे ताकत मिली और मैं भज-नात पुस्तक की रचना करने में सफ़ल हुई ।

सभी वरिष्ठ जनों का मुझपर आशीष बना रहे ।

धन्यवाद

© डा. सलमा जमाल

298, प्रगति नगर, तिलहरी, चौथा मील, मंडला रोड, पोस्ट बिलहरी, जबलपुर 482020
email – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 139 – “सकारात्मकता से संकल्प विजय का”. . .” – सम्पादन – सुश्री मंजु प्रभा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है सुश्री मंजु प्रभा जी की संपादित पुस्तक  सकारात्मकता से संकल्प विजय कापर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 139 ☆

☆“सकारात्मकता से संकल्प विजय का”. . .” – सम्पादन – सुश्री मंजु प्रभा ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक चर्चा

सकारात्मकता से संकल्प विजय का

संपादन मंजु प्रभा

दधीची देहदान समिति

प्रभात प्रकाशन नई दिल्ली

मूल्य चार सौ रुपये, पृष्ठ १८०, प्रकाशन वर्ष २०२२

चर्चा. . . विवेक रंजन श्रीवास्तव

☆ स्वास्थ्य विमर्श पर साहित्य की यह किताब अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

वर्ष २०२० के पहले त्रैमास में ही सदी में होने वाली महामारी कोरोना का आतंक दुनिया पर हावी होता चला गया. दुनिया घरो में लाक डाउन हो गई. कोरोना काल सदी की त्रासदी है. वर्तमान पीढ़ी के लिये यह न भूतो न भविष्यति वाली विचित्र स्थिति थी. आवागमन बाधित दुनियां में संपर्क के लिये इंटरनेट बड़ा सहारा बना. दूसरी कोरोना लहर के कठिन समय में मोबाइल की घंटी से भी किसी अप्रिय सूचना का भय सताने लगा था. अंततोगत्वा शासन और आम आदमी के समवेत प्रयासो की, जीवंतता की, सकारात्मकता का संघर्ष विजयी हुआ. रचनात्मकता नही रुकी. मानवीयता मुखरित हुई. कोरोना काल साहित्य के लिये भी एक सक्रिय रचनाकाल के रूप में जाना जायेगा. इस कालावधि में एकाकीपन से निपटने लेखन के जरिये लोगों ने अपनी भावाभिव्यक्ति की. इंटरनेट के माध्यम से फेसबुक, गूगल मीट, जूम जैसे संसाधनो के प्रयोग करते हुये ढ़ेर सारे आयोजन हुये. यू ट्यूब इन सबसे भरा हुआ है.

विगत पच्चीस बरसों से दिल्ली एन सी आर में सक्रिय समाजसेवी संस्था दधीची देहदान समिति ने भी स्वस्फूर्त कोरोना से लड़ने का बीड़ा उठाकर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किये. जब आम आदमी विवशता में मन से टूट रहा था, सकारात्मकता के विस्तार की आवश्यकता को समझ कर एक आनलाइन व्याख्यानमाला आयोजित की गई. हमेशा से वैचारिक पृष्ठभुमि ही जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है. सकारात्मक विचार ही जीवन संबल बनते हैं. दस दिनो तक कोरोना की विषमता से निपटने के लिये जन सामान्य में मानसिक ऊर्जा का नव संचार मनीषियों के चिंतन पूर्ण वैचारिक संप्रेषण से संभव हुआ. आन लाइन व्याख्यान की तात्कालिक पहुंच भले ही दूर दूर तक होती है, किन्तु वे शाश्वत संबोधन भी तब तक चिर जीवी संदर्भ नहीं बन पाते जब तक उन व्याख्यानो को पुस्तक का स्थाई स्वरूप न मिले. मंजु प्रभा जी ने यह जिम्मेदारी कुशलता पूर्वक उठाकर यह कृति “सकारात्मकता से संकल्प विजय का “ प्रस्तुत की है. इस द्विभाषी पुस्तक में हिन्दी और अंग्रेजी में स्थाई महत्व की सामग्री चार खण्डो में संग्रहित है. पहले खण्ड में तत्कालीन उप राष्ट्रपति एम वैंकैया नायडू का देहदानियों के सम्मान उत्सव के अवसर पर संबोधन संपादित स्वरूप में शामिल है, उनका यह कहना महत्वपूर्ण है कि- अंगदान से न केवल आप दूसरे के शरीर में जीवित बने रहते हैं बल्कि मानवता को भी जीवित रखते हैं. शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती जी ने अपने व्याख्यान में अशोक वाटिका में सीता जी के हतोत्साहित मन में सकारात्मकता के नव संचार करने वाले हनुमान जी के सीता जी से संवाद वाले प्रसंग की व्याख्या की है. मोहन भागवत जी ने अपने लेख में ” सक्सेज इज नाट फाइनल, फेल्युअर इज नाट फेटल, द करेज टु कंटीन्यू इज द आनली थिंग दैट मैटर्स “ की विशद व्याख्या की है. उन्होंने चर्चिल को उधृत किया है “वी आर नाट इंटरेस्टेड इन पासिबिलिटीज आफ डिफीट, दे डू नाट एक्जिस्ट “. अजीज प्रेम जी ने आव्हान किया है ” कम टुगेदर एन्ड दू एवरी थिंग वी कैन “. उन्होने कहा कि ” दि कंट्री मस्ट कम टुगेदर एज वन. “ सदगुरु जग्गी वासुदेव जी ने विवेचना करते हुये बताया कि ” दि प्राबलेम इज दैट वी आर मोर डेडीकेटेड टु आवर लाइफ स्टाइल देन अवर लाइफ इटसेल्फ “. उन्होनें समझाया कि ” हाउ वी कैन बी पार्ट आफ द सोल्यूशन “. श्री श्री रविशंकर जी ने कहा कि इस वक्त हमें करनी होगी वही बात कि निर्बल के बल राम. ईश्वर पर विश्वास ही हमको मानसिक तनाव से दूर रखता है. उन्होंने बताया कि योग, प्राणायाम, ध्यान और समुचित आहार ही जीवन का सही रास्ता है.

साध्वी ॠतंभरा के कथन का सार था कि “शुभ कर्मो के बिना कभी भी हुआ नहीं निस्तारा, जीत लिया जिसने मन उसने जीत लिया जग सारा, ५ स दुनियां का सार एक है नित्य अबाध रवानी, अपनी राह बना लेता है, खुद ही बहता पानी “

महंत संत ज्ञानदेव सिंह जी ने अपने व्यक्त्व्य में संदेश दिया “उठो जागो और अपने स्वरूप को पहचानो “. मुनि प्रमाण सागर जी ने मन को प्रबल बनाये रखने कासंदेश दिया उन्होने कहा कि तन की बीमारी को कभी भी मन पर हावी न होने दें. प्रसिद्ध नृत्यांगना सोनल मानसिंग ने कला को संबल बताया, हमारी हाबी ही हमें मानसिक शारीरिक व्याधियों से बचाकर निकाल लाती है. उन्होंने पाजीटिविटी, ग्रेच्युटी, और प्रेयर का महत्व प्रतिपादित किया. निवेदिता भिड़े जी ने कहा कि जो विष धारण करने की क्षमता विकसित कर लेता है, अंततोगत्वा वही जीतता है और अमृत पीता है. उन्होंने स्वामी विवेकानंद की पुस्तक पावर्स आफ द माइंड का उल्लेख किया. श्री रामरक्षा स्तोत्र  तथा विष्णु सहस्त्र नाम का भी उन्होने महात्म्य समझाया.

समाज के विभिन्न क्षेत्रो की आइकानिक हस्तियों को एक मंच पर इकट्ठा करके एक विषय पर केंद्रित आलेखों का उनका यह संग्रह एक संदर्भ कृति बन गया है. आलोक कुमार जी का आलेख कोरोना और युगधर्म पठनीय है. पुस्तक के दूसरे खण्ड “वे लड़े कोरोना से” में उन कुछ व्यक्तियों की चर्चा है जिन्होंने इस लड़ाई में अपना योगदान दिया है, यद्यपि कहना होगा कि यह खण्ड ही अत्यंत वृहत हो सकता है, क्योंकि हर शहर ऐसे विलक्षण समर्पित जोशीले लोगों से भरा हुआ था तब तो हम कोरोना को हरा सके हैं, किन्तु जो भी सात आठ प्रासंगिक उल्लेख पुस्तक में समावेशित हो सका वह एक प्रतिनिधी चित्र तो अंकित करता ही है. तीसरा खण्ड कथाएं अनुपम त्याग की में समिति के मूल उद्देश्य अंग दान को लेकर महत्वपूर्ण सामग्री है. प्रायः हमें अखबारों में भागते वाहनो में अंग प्रत्यारोपण के लिये ग्रीन कारीडोर की कबरें पढ़ने मिलती हैं. हमारा देश दधीचि का देश है, राजा शिवि का देश है. अंगदान को प्रोत्साहन देता यह खण्ड चिंतन मनन के लिये विवश करता है. चौथे खण्ड में दधीची देहदान समिति के कार्यों का वर्णन है. बीच बीच में समिति के क्रिया कलापों, आयोजनो आदि के चित्र व टेस्टीमोनियल्स भी लगाये गये हैं. एक समीक्षक की दृष्टि से मेरा सुझाव है कि बेहतर होता यदि ये चारों ही खण्ड प्रत्येक स्वतंत्र पुस्तक के रूप में प्रस्तुत हो पाता. इसी तरह हिन्दी तथा अंग्रेजी के आलेख एक साथ रखने की अपेक्षा उनके अनुवादित तथा संपादित आलेख तैयार करके दोनो भाषाओ की दो अलग अलग पुस्तकें बनाई जातीं. यद्यपि यह खिचड़ी प्रयोग भी नवाचारी है. अस्तु मैं दधीची देहदान समिति के इस स्तुत्य साहित्यिक प्रयास की मन से अभ्यर्थना करता हूं. स्वास्थ्य विमर्श पर साहित्य की यह किताब अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारियों के साथ प्रस्तुत करने के लिये मंजु प्रभा जी को हार्दिक बधाई और पुस्तक प्रकाशन हेतु वित्त सुलभ करवाने हेतु लाला दीवान चंद ट्रस्ट तथा प्रकाशन के लिये प्रभात प्रकाशन का भी आभार. यह किताब कोरोना संकट के मानसिक तनाव से उबरने का दस्तावेज बन पड़ी है, पठनीय और संदर्भो के लिये संग्रहणीय है.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक की पुस्तक चर्चा # 138 – “नासै रोग हरे सब पीरा. . .” – पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

 

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है पं अनिल कुमार पाण्डेय जी की पुस्तक  “नासै रोग हरे सब पीरा” पर पुस्तक चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 138 ☆

☆ “नासै रोग हरे सब पीरा. . .” – पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

पुस्तक चर्चा

नासै रोग हरे सब पीरा. . .

श्री हनुमान चालीसा की विस्तृत विवेचना

लेखक – पं अनिल कुमार पाण्डेय

आसरा ज्योतिष केंद्र, साकेत धाम कालोनी, मकरोनिया, सागर

मूल्य २५० रुपये, पृष्ठ १८४, प्रकाशन वर्ष २०२३

☆ श्री हनुमान चालीसा की यह विस्तृत विवेचना अपूर्व है. पठनीय है ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

गोस्वामी तुलसीदास सोलहवीं शती के एक हिंदू कवि-संत और दार्शनिक थे. उन्होंने भगवान राम के प्रति अपनी अगाध भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. तत्कालीन आक्रांताओ से पीड़ित भारतीय सामाजिक स्थितियों में उन्होंनें समकालीन भक्ति धारा में रामचरित मानस जैसे वैश्विक ग्रंथ की रचना कर लोक भाषा में की. उनकी लेखनी के प्रभाव से हिन्दू धर्मावलंबी राम नाम का आसरा लेकर तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी जीवंत बने रहे. यही नही जब गिरमिटिया देशो में भारतीयो को मजदूरों को रूप में ले जाया गया तो मानस जैसे ग्रंथों के कारण ही परदेश में भी भारतीय संस्कृति और राम कथा का विस्तार हुआ. आज भी यह इन सूत्र भारत को इन राष्ट्रों से जोड़े हुये है.

इस कृति में पंडित अनिल पांडेय जी तर्क सम्मत तथ्य रखते हैं की हनुमान चालीसा की रचना तुलसीदास जी ने गुरु सानिध्य में की थी यद्यपि किवदंति है कि एक बार अकबर ने गोस्वामी जी का प्रताप सुनकर उन्हें अपनी राज सभा में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ. तुलसीदास जी ने उत्तर दिया कि भगवान श्री राम केवल अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं. यह सुनते ही अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को कारागार में बंद करवा दिया.

कारावास में ही गोस्वामी जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा की रचना की. जैसे ही हनुमान चालीसा लिखने का कार्य पूर्ण हुआ वैसे ही पूरी फतेहपुर सीकरी को बन्दरों ने घेरकर धावा बोल दिया. अकबर की सेना बन्दरों का आतंक रोकने में असफल रही. तब अकबर ने किसी मन्त्री के परामर्श को मानकर तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त कर दिया. जैसे ही तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त किया गया, बन्दर सारा क्षेत्र छोड़कर वापस जंगलो में चले गये. इस अद्भुत घटना के बाद, गोस्वामी तुलसीदास जी की महिमा दूर-दूर तक फैल गई और वे एक महान संत और कवि के रूप में जाने जाने लगे.

श्री हनुमान चालीसा अवधी में लिखी एक लघुतम काव्यात्मक कृति है. इसमें प्रभु श्री राम के महान भक्त एवं सदा हमारे साथ जीवंत स्वरूप में विद्यमान श्री हनुमान जी के गुणों एवं कार्यों का मात्र चालीस चौपाइयों में विशद वर्णन है. इस लघु रचना में पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर विनय स्तुति व भावपूर्ण वन्दना की गई है. हनुमान चालीसा में प्रभु श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में वर्णित है. अजर-अमर भगवान हनुमान जी वीरता, भक्ति और साहस की प्रतिमूर्ति हैं. शिव जी के रुद्रावतार माने जाने वाले हनुमान जी को बजरंगबली, पवनपुत्र, मारुतीनन्दन, केसरी नन्दन, महावीर आदि नामों से भी जाना जाता है. हनुमान जी का प्रतिदिन ध्यान करने और उनके मन्त्र जाप करने से मनुष्य के सभी भय दूर होते हैं. श्री हनुमान चालीसा अवधी भाषा में लिखे गये सिद्ध मंत्र ही हैं. जिनका पाठ समझ कर, या श्रद्धापूर्वक बिना गूढ़ार्थ समझे भी जो भक्त करते हैं उन्हें निश्चित ही मनोवांछित फल प्राप्त होते देखा जाता है.

ऐसी सर्वसुलभ सहज सूक्ष्म चालीसा की बहुत टीकायें नही हुई हैं. गीत संगीत नृत्य चित्र आदि विविध विधाओ में श्री हनुमान चालीसा को भक्ति भाव से समय समय पर विविध तरह से अवश्य प्रस्तुत किया गया है. विद्वान कथा वाचकों ने जीवन मंत्रों के रूप में अपने प्रवचनो में हनुमान चालीसा के पदों की व्याख्यायें अपनी अपनी समझ के अनुरूप की हैं. श्री बागेश्वर धाम के पं धीरेंद्र शास्त्री जी तो श्री बालाजी हनुमान जी की ही महिमा प्रचारित कर रहे हैं. मैंने कुछ विद्वानो को मैनेजमेंट की शिक्षा के सूत्रों के साथ श्री हनुमान चालीसा के पदों से तादात्म्य बनाकर व्याख्या करते भी सुना है. सच है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी. स्वयं मैंने विश्व में जहां भी मैं गया श्री हनुमान चालीसा के जाप मात्र से सकारात्मक प्रभाव अनुभव किया है.

पं अनिल कुमार पाण्डेय सचमुच हनुमत चरण सेवक हैं. वे आजीवन मानस, वाल्मीकी रामायण, यथार्थ गीता, भगवत गीता, पुराणो, ज्योतिष के ग्रंथो, गुरु ग्रंथ साहब आदि आदि महान ग्रंथो के अध्येता रहे हैं. “नासै रोग हरे सब पीरा. . . ” नाम से उन्होंने श्री हनुमान चालीसा के प्रत्येक पद, प्रत्येक शब्द की सविस्तार व्याख्या करते हुये इन सभी ग्रंथों से प्रासंगिक उद्धवरण देते हुये विवेचना की है. अनेक कवियों ने जिनमें मेरे पिताजी पूज्य प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव जी ने भी हनुमत स्तुतियां रची हैं. भगवान हनुमान जी पर मैंने श्री अमरेंद्र नारायण जी, श्री सुशील उपाध्याय जी, की किताबें पढ़ी हैं. मैं दावे से कह सकता हूं कि पं अनिल कुमार पाण्डेय जी द्वारा की गई श्री हनुमान चालीसा की यह विस्तृत विवेचना अपूर्व है. पठनीय है. मनन करने को प्रेरित करती है. पाठक को चिंतन की गहराई में उतारती है. प्रायः हिन्दू परिवारों में स्नान के उपरांत प्रतिदिन लोग श्री हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. बहुतों को यह कंठस्थ है. नये इलेक्ट्रानिक संसाधनो यू ट्यूब आदि के माध्यम से मंदिरों में श्री हनुमान चालीसा गाई बजाई जाती है. धार्मिक मूढ़ता और राजनैतिक उन्माद में श्री हनुमान चालीसा को अस्त्र के रूप में प्रयोग करने से भी लोग बाज नहीं आ रहे. मेरा सदाशयी आग्रह है कि एक बार इस पुस्तक का गहन अध्ययन कीजीये, स्वतः ही जब आप गूढ़ार्थ समझ जायेंगे तो विवेक जागृत हो जायेगा और आप श्री हनुमान चालीसा जैसे सिद्ध मंत्र का श्रद्धा भक्ति और भावना से सकारात्मक सदुपयोग करेंगें तथा श्री हनुमान चालीसा के अवगाहन का सच्चा गहन आनंद प्राप्त कर सकेंगे. 

खरीदिए और पढ़िये किताब अमेजन पर सुलभ है. aasra. jyotish@gmail. com पर आप लेखक से सीधा संपर्क भी कर सकते हैं. जय जय श्री हनुमान.

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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